मासिक पत्रिका ‘द डे आफ्टर मंथ’ के दो साल पूरे होने और सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर के 103वें जन्म दिन पर विशेष आयोजन किया गया। इस अवसर पर विष्णु प्रभाकर पर केन्द्रित ‘द डे आफ्टर मंथ’ के विशेषांक का लोकापर्ण मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार और समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट, बिड़ला फाउंडेशन के निदेशक और साहित्यकार डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण और प्रेमपाल शर्मा द्वारा किया गया। इस समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में मॉरीशस से पधारे प्रह्लाद रामशरण, पंजाब नेशनल बैंक के क्षेत्रीय महाप्रबंधक एसआर शर्मा और मुंगेर(बिहार) से पधारे महंत भगवतीनंदन उपस्थित थे।
‘द डे आफ्टर मंथ’ के दो साल पूरे होने पर ‘मीडिया साहित्य संस्कृति और भाषा’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पंकज बिष्ट ने विष्णु प्रभाकर से जुड़े कॉफी हाउस के संस्मरणों की बात करते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा नवोदित रचनाकारों को आगे लाने का प्रयास किया। हम उनके लेखन के माध्यम से उनके उदार विचारों से वाकिफ होते हैं। उनके लेखन में समाज की तमाम विसंगतियां देखने को मिलती है। उन्होंने कहा कि संस्कृति को बचाने में राष्ट्रभाषा हिन्दी का अहम् योगदान है। द डे आफ्टर मंथ जैसी छोटी पत्र-पत्रिकाओं द्वारा की गई पहल से हम साहित्य और संस्कृति को बचाने में कामयाब हो सकते हैं।
बिष्ट ने कहा कि आज इलेक्ट्रानिक मीडिया हमारी संस्कृति पर लगातार हमले कर रही है। इससे हम एक ही पक्ष से वाकिफ होते हैं। जबकि प्रिंट मीडिया सोचने को मजबूर करता है और दूसरे पक्ष को जानने का अवसर देता है। सबसे महत्वपूर्ण ये जानना है कि मीडिया के सरोकार क्या हैं? इस दिशा में सार्थक प्रयास होने चाहिए। उच्च मध्यवर्ग के कारण अंगेजी का दवाब बढ़ रहा हैं। त्रिभाषा प्रणाली लागू नहीं हो पायी है। सभी को मातृभाषा में ही शिक्षा हासिल करने का अधिकार होना चाहिये।
मुख्य वक्ता प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि साहित्य ही नहीं साहित्यकारों की स्मृतियां भी गुम हो रही है। मीडिया की खबरों की ओर इशारा करते हुए उन्होने कहा अब यह सुर्खियां है कि हिन्दी लादी जा रही है। राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण हिन्दी की यह स्थिति रही है। यह दुखद है कि आज राष्ट्रभाषा हिन्दी की पहचान लघुबोली के रूप में हो रही हैं। यह चिंता का विषय है।
अध्यक्षीय उद्गार व्यक्त करते हुए बिड़ला फाउंडेशन के निदेशक और साहित्यकर डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा कि विष्णु प्रभाकर ऐसे साहित्यकार थे जो नई पीढ़ी की आहट को जानते थे। उन्होंने कहा कि हिन्दी का सवाल अहम् है। भाषा गयी तो संस्कृति भी गयी। उन्होने फिजी, त्रिननाद सहित विभिन्न देशों में हिन्दी के संदर्भ में हो प्रयासों की चर्चा की।
इस अवसर पर उपलब्धियों और प्रोत्साहन के लिए साहित्य समाज सेवा और पत्रकारिता के क्षेत्र की योग्य प्रतिभाओं में शूमार कुमार कृष्णन, संतोष मिश्रा, अमृता शर्मा राजीव तनेजा, सोमा विश्वास, सज्जन कुमार गगर्, सुशील जोशी, अरुण शर्मा अनंत, बीएन मिश्रा और अनिल कुमार बाली को मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित किया गया।
समारोह में पत्रिका ‘द डे आफ्टर मंथ’ के प्रधान संपादक अशोक झा ने कहा कि यह चिंता की बात है कि आज पत्र- पत्रिकाओं में साहित्य और संस्कृति को बहुत कम महत्व दिया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि अपने देश में हिन्दी पत्रकारिता को स्थापित करने में साहित्य और संस्कृति से जुड़े पुरोधाओं का ही योगदान रहा है। अगर साहित्य और संस्कृति का प्रवाह बहता रहे तो इससे समाज न सिर्फ समृद्ध होता है बल्कि इसे दिशा भी मिलती है। उन्होंने घोषण की कि समय-समय पर उन साहित्यकारों पर विशेषांक निकाला करेंगे जो अपनी जन्मशती पूरी कर चुके हैं। इसी क्रम में ‘द डे आफ्टर मंथ’ के जून का अंक विष्णु प्रभाकर पर केन्द्रित है।
विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के सचिव अतुल कुमार ने कहा विष्णु प्रभाकर की सोच थी कि नये लेखको को आगे लाया जाए और इसके लिए उन्होंने काफी कुछ किया। वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने साहित्य और संस्कृति के सवालों को रखा और मौजूदा परिवेश को रेखांकित किया।
इस अवसर पर कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन में इन्दु सिंह, सुशील जोशी, संतोष सौम्य, सरोज सिंह, रूकू अवूजा, अनिल कुमार वाली, राहुल उपाध्याय, अरूण शर्मा अनंत, सोमा विश्वास, निवेदिता झा मिश्रा, हर्षवर्द्धन आर्य तथा अन्य कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ कर भाव बोध को अभिव्यक्ति प्रदान की। कवि सम्मेलन का संचालन किरण आर्या ने किया। समारोह में गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह, गांधी दर्शन एवं स्मृति समिति की निदेशक मणिमाला, डॉ. गंगेश गुंजन, अनिता प्रभाकर, अनुराधा सहित राजधानी के प्रवुद्ध लोगों की भागीदारी रही। पत्रिका की महाप्रबंधक सारिका ने कवियों को सम्मानित किया और धन्यवाद ज्ञापन दिया।