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सियासत

मनमोहन की विदाई और मोदी के आने के महज आठ साल के भीतर एक बार फिर भारत कंगाल बनने की तरफ़ बढ़ रहा!

अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-

भारत जिस तरह के आर्थिक संकट में घिरता नजर आ रहा है , यह देश को उसी तरफ ले जा रहा है, जैसा संकट हमने 1991 में देखा था। तब पीवी नरसिंहराव को चंद्रशेखर और अन्य पूर्व प्रधानमंत्री से विरासत में भारी कर्ज, खाली खजाना और खाली विदेशी मुद्रा भंडार मिला था।

चंद्रशेखर सरकार ने तो महज तीन हफ्ते के खर्च के लिए बचे सरकारी खजाने को थोड़ा सा भरने के लिए देश का सोना तक गिरवी रख दिया था।

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इसके बाद नरसिंहराव ने प्रधानमंत्री बनते ही मनमोहन सिंह को तत्काल ही वित्त मंत्री बना दिया। यह वही दिन था, जिसके बाद देश ने चंद्रशेखर जैसा दौर दोबारा नहीं देखा और एक के बाद एक कदम उठाकर मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण का जैसा स्वर्णिम अध्याय लिखना शुरू किया, वह मुकम्मल तब हुआ जब मनमोहन सिंह दो कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बने।
यही वह स्वर्णिम अध्याय है, जिसमें मनमोहन के आने के वक्त के कंगाल भारत के मनमोहन की राजनीतिक विदाई के वक्त अमेरिका और चीन के लिए चिंता का सबब बनने की गौरवमई गाथा दर्ज है।

तब अमेरिका और चीन तो इस कदर घबरा रहे थे कि कहीं भारत की आर्थिक तरक्की बहुत जल्द दुनिया में भारत को शीर्ष पर पहुंचा कर उन्हें पीछे न धकेल दे।

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लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि मनमोहन चले गए और मोदी आ गए। मनमोहन की विदाई और मोदी के आने के महज आठ साल के भीतर अब भारत एक बार फिर चंद्रशेखर के दौर यानी 1991 का कंगाल भारत बनने की तरफ़ बढ़ता नजर आ रहा है।

ऐसे हालात में देश को फिर एक बार मनमोहन जैसा वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री चाहिए लेकिन अब शायद ही कभी दोबारा ऐसा हो पाए। क्योंकि हमारे देश की गंदी राजनीति कभी भी ऐसे सरल, विद्वान, मेहनतकश, विनम्र और ईमानदार व्यक्ति को प्रधानमन्त्री तो क्या एक पार्षद के पद तक नहीं जाने देती है।

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मनमोहन तो इस वजह से प्रधानमंत्री बन पाए थे क्योंकि तब नेहरू परिवार में सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा बीजेपी ने तूल पकड़ा रखा था और राहुल/ प्रियंका अनुभवहीन और कम उम्र थे।

इसी वजह से मनमोहन को एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर भी कहा जाता है। मनमोहन ने अपने वित्त मंत्री के कार्यकाल और फिर प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कोई राजनीति, गुटबाजी या कुछ भी ऐसा नहीं किया, जिससे उनकी कुर्सी या कद की ताकत पार्टी या सरकार में बढ़े।

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वह अपने पद और कुर्सी के लिए पहले नरसिंहराव फिर सोनिया के हमेशा ही मोहताज रहे। जाहिर है, उन्हें उस पद पर रहकर जो काम करना था, बस वह वही पूरी ईमानदारी से करते रहे। यानी मनमोहन को नेता की बजाय नौकरशाह ही कहा जा सकता है।

अब कौन भला सिर्फ काम करने अर्थात किसी नौकरी की मानसिकता वाले व्यक्ति को किसी ताकतवर पद पर बने रहने देगा? लिहाजा मनमोहन सिंह जैसा काबिल व्यक्ति बतौर प्रधानमंत्री तो अब देश को शायद कभी मिलेगा नहीं।

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रही बात, आर्थिक संकट दूर करने का फ्री हैंड भारतीय मूल के किसी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञ को या पैनल को देने की तो मोदी सरकार वह भी नहीं करेगी। क्योंकि देश की सवा सौ करोड़ की आबादी के साथ-साथ अदानी, अंबानी, गुजराती लॉबी, पार्टी फंड और भाजपा नेताओं और उनके बाल- बच्चों के उद्यम/ रोजी- रोटी/ कमाई की चिंता का सारा बोझ भी मोदी जी के ही नाजुक कंधों पर है। फिर अपना पद/ कद भी तो उनको इन्हीं लोगों की मदद से बचाना और बढ़ाना है।

इसलिए पूरी आशंका इसी बात की है कि पूरी दुनिया पर मंडरा रहे आर्थिक संकट का असर भारत पर कम पड़े, ऐसा चमत्कार यह सरकार नहीं कर पाएगी। बाकी मोदी हैं तो नामुमकिन तो कुछ भी नहीं है… 1991 जैसे आर्थिक संकट की वापसी भी नहीं…

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कुछ खबरें ऐसी आ रही हैं कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार, जो पहले ही काफी घट चुका है अब अगले कुछ महीनों बाद घटकर आधा रह जाएगा। उसकी वजह यह बताई जा रही है कि देश को विदेशी मुद्रा भंडार की लगभग आधी रकम को विदेशी कर्ज चुकाने में खर्च करना पड़ेगा।

यूं तो रुपए के लगातार गिरने से आयात बिल और राजस्व घाटा भी बढ़ता जा रहा है इसलिए विदेशी मुद्रा भंडार के आधे रह जाने की इस खबर को काफी चिंताजनक माना जाना चाहिए। लेकिन मोदी जब तक हैं, हमें घबराने की खास जरूरत है नहीं।

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दुनिया मंदी की तरफ बढ़ रही है और भारत का खजाना खाली होता जा रहा है , फिर भी देश के आर्थिक भविष्य को उज्जवल बताया जा रहा है तो जरूर मोदी जी के पास कोई न कोई नया मास्टरस्ट्रोक होगा। भक्तों की तरह हमें भी मोदी जी पर अगाध श्रद्धा रखनी चाहिए।

हो सकता है कि आने वाले समय में मोदी जी की कोई नई लीला देखकर देश एक बार फिर गदगद हो जाए।

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इससे पहले भी मोदी जी ने नोटबंदी का मास्टरस्ट्रोक खेलकर जो लीला दिखाई थी, उसने एक- दो बरस के लिए देश की जीडीपी को भले ही रसातल में पहुंचा दिया हो लेकिन भक्तों के दिल पर उसके बाद से मोदी जी का प्रभाव और बढ़ गया।

दिल एक ही है और मोदी जी उसे बार- बार जीतकर जिस तरह अभी तक देश में आर्थिक ‘खुशहाली‘ की बयार लाए हैं, उससे तो यही लगता है कि हमें इस तरह के डराने वाले आर्थिक आंकड़ों को देखना ही नहीं चाहिए। श्रद्धा भाव से मोदी मोदी करते हुए 2024 में भी अपना वोट मोदी जी को ही दे आना चाहिए। आंकड़ों का क्या है, यह तो बदले भी जा सकते हैं।

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फिर धर्म को बचाने के लिए अगर हमें श्रीलंका गति को भी प्राप्त होना पड़े तो कोई बड़ी कुर्बानी इसे नहीं माना जाएगा।

हमें तो श्रीलंका वालों से सबक लेना चाहिए कि किस तरह देश के पूरी तरह से आर्थिक रूप से बर्बाद होने तक वहां की जनता आंख मूंद कर अपने सिंहली गौरव की लड़ाई तमिलों से लड़ने वाले राजपक्षे पर भरोसा करती रही।

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पता नहीं राजपक्षे क्यों ऐसी अंधभक्त जनता को बस इतनी सी बात पर नाराज होकर छोड़कर विदेश चले गए कि जनता ने उनके महल पर कब्जा कर लिया।

हालांकि मोदी जी भी फकीर हैं और पहले ही कह चुके हैं कि गलत निकला तो झोला उठाकर निकल पड़ूंगा। चौराहे के लिए भी कोई आह्वान जनता से वह पहले ही कर चुके हैं। इसलिए मैं तो मान ही नहीं सकता कि देश में कभी कोई आर्थिक संकट आएगा।

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मोदी राज में रुपया पहुंचा रसातल में !!

  • 2014 से लेकर अब तक लगभग 40 प्रतिशत गिर चुका है रुपया
  • आसन्न ग्लोबल मंदी में रुपया अभी और नीचे जाने के आसार

रुपया जिस रफ्तार में नीचे गिर रहा है, उससे साफ पता चल रहा है कि एक बड़े आर्थिक भूचाल के आने से पहले डगमगा रही ग्लोबल इकॉनमी में भारत भी खतरे में है।

अगर आगामी दिसंबर से साल- डेढ़ साल तक चलने वाली मंदी का अर्थशास्त्रियों और आर्थिक / वित्तीय संस्थाओं का अनुमान अगर सही निकला तो कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले कुछ महीनों/ बरसों में रुपया गिरकर सेंचरी मार ले यानी 100 के ऊपर निकल जाए।

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फिलहाल यह पहली बार 82 के स्तर को पार कर चुका है। जब नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता संभाली थी, तब यह लगभग 58-59 रुपए के स्तर पर था। यानी मोदी के आठ साल के कार्यकाल में रुपया तब से तकरीबन 40 प्रतिशत नीचे आ चुका है।

आठ साल में इतनी बड़ी गिरावट तब हुई, जब दुनिया में मंदी या ऐसी आर्थिक उथलपुथल नहीं थी। अब चूंकि दुनिया ही डगमगा रही है तो अगले आठ साल जैसी या उससे भी बड़ी गिरावट मंदी के साल- दो साल के दौर में ही न हो जाए, इसकी चिंता अर्थशास्त्रियों को सताने लगी है।

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अगर मंदी को दरकिनार कर एक बार को केवल यही कल्पना कर ली जाए कि अगले आठ साल में रुपया इसी रफ्तार से 40 प्रतिशत गिरकर 114-115 पर पहुंच सकता है तो स्थिति बड़ी भयावह नजर आने लगेगी।

हालांकि रुपया गिरकर कहां तक पहुंचेगा, यह पक्के तौर पर तो अभी कोई नहीं बता सकता लेकिन मोदी सरकार में रुपया जिस रफ्तार में नीचे आया है, वह भविष्य के लिए खतरे का अलार्म तो है ही।

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1 Comment

1 Comment

  1. Abhishek Singh

    October 14, 2022 at 5:29 pm

    Aapko kitne paise mile hai aadhi adhuri kahaani likhne ya ye kahe lsikke ka sirf ek pahli dikhaane ki ye to nahi pata, par aap likhna bahut acche se jaante hai aur jo bharat mei aur duniya me kya ho raha hai abhi aur pahle kya hua hai wo na jaanta ho to aapko apna guru pakka Maan lega. Note bandi ek political master stroke to pakka the par kaise ye aap
    research karke aglee article mei likhiye blackmoney ke alaawa bhi bahut kuch milega. waise thoda make in India, made in india ke baare mei padhiye , kaun kaun se companies ki assembling plant doosri country mei jo production kar rahi thi wo India kab shift Hui? aur aur India kaun se weapons kis kis country ko sell kar raha hai ye dekhiye aur aaj se pahle India ne kaun se weapons India mei develop kiye aur country ko sell kiye ye bhi bataiye itna lamba coment blog pe tikega to nahi but hum sirf auther ke liye likhe hai

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