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न्यूज़ चैनलों के संपादकों-मालिकों के लिए आया आदेश : मौतों पर मोदी का नाम न आए!

Vinod Kapri-

TV news channels के मालिकों और संपादकों को साफ़ INSTRUCTIONS आ गए हैं कि हज़ारों मौत पर कहीं भी ना तो मोदी का नाम आना चाहिए और ना ही तस्वीर। सरकार अब जो प्रयास कर रही है, सिर्फ़ उसमें मोदी का नाम लेना है। और कहीं नहीं। यहाँ तक कि रिपोर्टर-एंकर को tweet करने की भी मनाही है।

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Sakshi joshi-

Instructions have come in to Noida anchors to use the word ‘system’ instead of central government. आज से मोदी का नाम ‘सिस्टम’ है

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अनिल जैन-

नोएडा की बदनाम बस्ती (फिल्म सिटी) के सभी कोठा संचालकों और उनके यहां कार्यरत सभी बंटी-बबलियों को साफ तौर पर बता दिया गया है कि उनके चैनल पर हाहाकार वाले, खासकर श्मशान के दृश्य न दिखाए जाएं। जो भी तबाही मच रही है, उसके लिए सिस्टम को जिम्मेदार ठहराया जाए। इस सिलसिले में सिस्टम के मुखिया का कहीं नाम नहीं आना चाहिए। यानी कुल मिलाकर जो भी दिखाया जाए, वह ‘सरकारात्मक’ हो। अब सवाल है कि साला यह ‘सिस्टम’ है कौन, जिसे इस भीषण तबाही का जिम्मेदार ठहराया जा रहा है?

इस सिस्टम की कारगुजारी के बारे में बता रहे हैं Rama Shankar Singh जी

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ये साला ‘ सिस्टम‘ इतना पॉवरफुल हो गया कि इसी महामारी के दौरान हज़ारों करोड़ के दो जहाज़ सिर्फ़ तीन लोगों के इस्तेमाल के लिये ख़रीद लिये, नया संसद भवन बनाना शुरु कर दिया, विजय चौक से इंडिया गेट तक सारी पुरानी नई इमारतों को तोड़कर नया बदसूरत सेंट्रल विस्टा बनाने का ठेका बीस हज़ार करोड का दे दिया और सरकार व सरकार के प्रधानमंत्री को पता ही नहीं चला।
पहले चार महीने मिले कि कोरोना भारत में आ चुका है पर ये ‘सिस्टम‘ ऐसा बदमाश निकला कि सब कुछ छोड छाड कर दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम में ही ‘नमस्ते ट्र्म्प‘ करने पर अड़ गया। हवाई अड्डेखुले रहे हज़ारों लाखों लोग कोरोना वायरस लेकर भारत में आते रहे और सरकार को खबर तक नहीं होने दी।
देखो सिस्टम की करतूतों को कि जब सरकार ने कुछ करना चाहा तो सिस्टम प्रधानमंत्री के टेलिप्रांप्टोमीटर में दो दो बार घुस गया और ठोस कार्रवाई की घोषणा के बजाय ताली थाली घंटे बजवाने की घोषणा करवा दी! दूसरी बार भी दिया-बत्ती, बैंड बाजा करवा दिया।
एक साल से पता था कि कोरोना की दूसरी लहर आयेगी तो ऑक्सीजन पैदा करने के प्लांट डेढ़ सौ अस्पतालों में लगाने का फ़ैसला तो सरकार ने कर दिया और ठेका भी दे दिया! सिस्टम की सैबोटेज देखिये कि तीन महीनों में लगने वाले प्लांट एक साल तक लग ही नहीं पाये कि सिस्टम का ठेकेदार पैसे लेकर भाग गया और सरकार को खबर ही नहीं हुई।
ये सिस्टम ही जड़ है “ कलेक्टिव फेलियर” का। अब जबकि प्रधानमंत्री जी, गृहमंत्री जी चुनाव में ही लगे रहे और सरकार द्वारा कोरोना निवारण के किसी फ़ैसले में शामिल ही नहीं रहे तो उन पर सिस्टम या कलेक्टिव फेलियर का दोष कैसे आ सकता है?
यह सिस्टम का ही कलेक्टिव फेलियर नहीं, भारत देश के मतदाताओं का भी कलेक्टिव फेलियर है। सोचोगे नहीं तो हर बार यही असफलता हाथ लगेगी! विचारहीन मतदाता ऐसा ही सिस्टम निर्माण करते हैं।

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