
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
साल 2014 में मोदी जी के आने के बाद देश में एक अभूतपूर्व बदलाव हुआ है…वह यह कि तमाम तरह की डिग्रियां बटोरकर निजी या सरकारी क्षेत्रों में छोटे- बड़े पदों पर काम करने वाले लोगों में से ज्यादातर यानी बहुमत ऐसे लोगों का बन गया है, जो वॉट्सएप या फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर भारत या दुनिया के गंभीर से गंभीर मसलों पर मोदी के समर्थन में सतही टिप्पणियां लिखने या शेयर/ फॉरवर्ड करने लगे हैं.
ताजा उदाहरण अमेरिका में तीसरे बड़े बैंक क्रेडिट सूइस के दीवालिया होने की खबर का है. इस खबर पर भारत में बहुमत ऐसी टिप्पणियां कर रहा है, जिसमें वह इस बैंक के दीवालिया होने का मजाक यह कहकर उड़ा रहा है कि अमेरिकी एजेंसी हिंडेनबर्ग ने अदानी के दीवालिया होने की साज़िश की और अब उल्टा अमेरिका और उसके बैंक ही डूबने लगे !!!
बताइए भला ऐसी सतही टिप्पणियां करने वाले से आप भला कैसे यह उम्मीद कर सकते हैं कि वह देश के प्रधानमंत्री के चुनाव में अपना वोट समझदारी से देगा ?
अदानी का मामला उठने से पहले ही अमेरिका की वित्तीय हालत पतली थी, यह कौन नहीं जानता है? किसे यह नहीं पता है कि कई साल पहले बिडेन की सरकार बनते ही अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज ने जिस दिन से वापसी शुरू की, तभी यह पता चल गया था कि अमेरिका आर्थिक बर्बादी की तरफ बढ़ रहा है इसलिए वह अपने सेना के खर्च को कम कर रहा है?
किसे यह नहीं पता है कि पिछले कुछ बरसों से अमेरिका में एक के बाद एक आर्थिक झटके लगते जा रहे हैं और रोजगार, महंगाई, खर्च, बैंकिंग जगत, कर्ज आदि हर मोर्चे पर अमेरिका ध्वस्त होता चला जा रहा है?
सबको पता है कि आर्थिक महामंदी के आने के खतरे का ऐलान खुद ही करते हुए अमेरिका बरसों से लगातार मीटिंग कर रहा है, कदम उठा रहा है। समझ नहीं आता है कि ऐसे विषम हालात में अगर एक अमेरिकी एजेंसी ने भारत में अदानी द्वारा लाखों करोड़ के घोटाले का पर्दाफाश किया तो इसका अमेरिका के किसी बैंक के दीवालिया होने से क्या संबंध है?
चलिए यह मान लेते हैं कि अमेरिकी सरकार ने अदानी और भारत के खिलाफ साजिश रची तो यहां भारत की सरकार अपनी रॉ, सीबीआई, आईबी, पुलिस, मिलिट्री, कोर्ट, सेबी, ई डी आदि को किस लिए बनाए हुए है? यह सब मिलकर जांच करके अदानी को क्लीन चिट क्यों नहीं दे देते?
विपक्ष तो रोज ही हंगामा कर रहा है कि अदानी के मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बना दी जाए। संसद या कोर्ट की निगरानी में अगर जांच होगी तो अपने आप पता चल जाएगा कि अदानी को अमेरिका की सरकार ने फंसाया है।
इसके बाद यहां अगर सभी भक्तगण अमेरिका की मंदी पर दीवाली भी मनाएंगे तो भला किसे अजीब लगेगा?
अभी तो आर्थिक रूप से बरसों से ढहते अमेरिका के किसी बैंक के दीवालिया होने को अदानी से जोड़ना ऐसा है, जैसे मानों किसी गांव में जाकर कोई परदेसी अगर यह बताए कि गांव वालों अपने अपने घरों में देख लो, कहीं चोरी तो नहीं हो गई? और उसी समय पता चले कि उस परदेसी के गांव में कोई जर्जर मकान गिर पड़े तो इधर गांव वाले अपने घर में जाकर चोरी हुई या नहीं, यह देखने की बजाय यह कहकर खुश होने लगें कि बड़े आए हमें चोर के बारे में बताने… जाओ अपने गांव के जर्जर मकानों की मरम्मत कराओ।
यही नहीं, ऐसी सतही टिप्पणी करने वालों की पढ़ाई- लिखाई भी बेकार है क्योंकि अगर उन्हें जरा भी ज्ञान होता तो यह समझ जाते कि अमेरिका के बैंकों का दीवालिया होना या अमेरिका का दीवालिया होना भारत और यहां की जनता की हालत भी बद से बदतर कर सकता है।
अगर वह पढ़ लिख कर ज्ञान इस्तेमाल करते तो देख पाते कि आज ही यह खबर आई है कि भारत का निर्यात बुरी तरह से घट रहा है। अमेरिका वह देश है, जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया के कारोबार, बैंकिंग जगत, रोजगार, निर्यात, आयात, मुद्रा विनिमय, सैन्य कारोबार, अंतरिक्ष, विज्ञान, शोध आदि न जाने कितने क्षेत्रों की धुरी है।
अमेरिका अगर ढहा तो चीन और पाकिस्तान जैसे तमाम विस्तारवादी या आतंकवादी देशों का कोई समूह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का शक्ति संतुलन अपने पक्ष में कर सकता है। और कहने की बात नहीं कि अमेरिका की ताकत पर चल रहे संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक आदि जैसे तमाम राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक संगठन या तो शक्तिहीन हो जाएंगे या फिर चीन अथवा रूस जैसी किसी नई शक्ति के अधीन हो जाएंगे। जाहिर है, दुनिया के लिए अमेरिका जैसी महाशक्ति का ढहना बहुत बड़े बड़े बदलाव ला सकता है।
…और ऐसे गंभीर विमर्श में अदानी को घुसेड़ कर खी खी करती हुई पढ़ी लिखी जनता वाकई मोदी राज के बाद की सबसे बड़ी लेकिन बेहद चिंताजनक देन है…