किसान आंदोलन और मीडिया की भूमिका पर कुछ कार्टून वायरल हैं। सत्ता की भाषा बोलने वाला दलाल मीडिया आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी बता रहा है। यह शर्मनाक है। देखें कुछ कार्टून्स-
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सिंघु बॉर्डर महा सभा में फ़र्ज़ी पहचान के साथ रिपब्लिक भारत की टीम घुसी और वहां से लाइव कर रहे थे कि शाहीन बाग से आये मौलाना यहां आ गए हैं और शाहीन बाग बना रहे हैं।
उसके बाद महिला पत्रकार को खदेड़ा गया। कैमरामैन के धौल लगा कर खदेड़ा गया। अब रिपब्लिक वाले पगला गए हैं। जान लें यही कैमरामैन व पत्रकार को शाहीन बाग से भी खदेड़ा गया था।
असल में यह पत्रकारिता के नाम पर नीचता का चरम है। ये चिल्ला रहे हैं कि आंदोलनरत लोग असली किसान नहीं हैं।
मुसलमान क्या देश का नागरिक नहीं है? क्या वह जन आंदोलन में शामिल नहीं हो सकता? क्या शाहीन बाग एक जन आंदोलन नहीं था?