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सियासत

मोदी सरकार की नीचता की पराकाष्ठा, दिल्ली के बाद कर्नाटक में!

अनिल सिंह-

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) समूचे देश का है, न कि केंद्र में बैठी किसी सरकार का। यह अनाज का भंडारण समूचे भारत की जनता की खाद्यान्न ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करता है। लेकिन मोदी सरकार ने ईडी व सीबीआई की तरह इसे भी अपनी नीच राजनीति का मोहरा बना लिया है।

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कर्नाटक में बनी नई कांग्रेस सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे रह रहे सभी परिवारों को प्रतिमाह 10 किलो अनाज देने की अन्न भाग्य स्कीम के तहत एफसीआई से 2.28 लाख टन खरीदने की पेशकश की। एफसीआई ने 12 जून को कर्नाटक सरकार को 2.22 लाख टन सप्लाई करने का राजीनामा भी दे दिया क्योंकि उसके पास इसके दस गुने से भी ज्यादा का सुरक्षित भंडार है। लेकिन अगले ही दिन केंद्र सरकार ने फरमान जारी कर दिया कि एफसीआई के भंडार से राज्यों को गेहूं व चावल नहीं दिया जा सकता।

एफसीआई की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक उसके पास 1 जून 2023 को केंद्रीय पूल में 260.23 लाख टन गेहूं और 226.85 लाख टन धान का भंडार था। केंद्र सरकार के निर्देश के मुताबिक एफसीआई बाज़ार में भावों पर नियंत्रण रखने के लिए इस पूल में से प्राइवेट पार्टियों या व्यापारियों को अनाज बेच सकती है, लेकिन उत्तर-पूर्व, पहाड़ी राज्यों व प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहे राज्यों के अलावा अन्य किसी राज्य को नहीं। यह कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को परेशान करने की उसी तरह धूर्तता है, जैसी मोदी सरकार ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अधिकार को छीनने के लिए अध्यादेश लाकर की है।

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अन्न भाग्य स्कीम कनार्टक की कांग्रेस सरकार की पांच गारंटियों में से दूसरी गारंटी है। इसे 1 जुलाई से लागू किया जाना है। मोदी सरकार की धूर्तता के बाद कर्नाटक की सिद्दारमैया सरकार अपनी स्कीम को लागू करने के लिए खुले बाज़ार के साथ ही छत्तीसगढ़, तेलंगाना व पंजाब जैसे चावल उत्पादन राज्यों से अनाज खरीदने पर विचार कर रही है।

लेकिन दिल्ली के बाद कर्नाटक में मोदी सरकार की इस मक्कारी ने साफ कर दिया है कि सत्ता से बेदखल हो जाने पर वो नीचता की किस हद तक गिर सकती है। उसे न जनहित की परवाह है, न देशहित से कोई मतलब। उसे तो किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए। धनबल या छलबल से जनता भाजपा को चुन ले तो अच्छा। नहीं तो मोदीशाही कब तानाशाही पर उतर आएगी, कहा नहीं जा सकता।

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