सौमित्र रॉय-
झूठे, नालायक तानाशाह को हमेशा आंकड़ों से दिक्कत रहती है, क्योंकि आंकड़े उसके झूठ की पोल खोल देते हैं। कोविड से पहले ही नरेंद्र मोदी सरकार ने आंकड़ों को छिपाना शुरू कर दिया था।
2019 के आम चुनाव से पहले बेरोज़गारी के आंकड़े छिपाए गए, ताकि हर साल 2 करोड़ रोजगार देने के मोदी के जुमले की पोल न खुल जाए।
फिर देश की आर्थिक तस्वीर से जुड़े आंकड़ों को दबा दिया गया। यहां तक कि जीडीपी के आंकड़े भी बदल दिए गए।
मोदी सरकार उन आंकड़ों को चुनती है, जो उसके झूठ का समर्थन करते हैं और उन आंकड़ों को दबा देती है, जो पीएम के झूठ का पर्दाफ़ाश करते हैं।
पूरे कोविड काल में मोदी सरकार ने यही किया। बात चाहे कोविड से मौत का आंकड़ा छिपाने की हो, या फिर वैक्सीन की कमी को लेकर बिना डेटा के अंट-शंट बयानों की, मोदी की कुर्सी झूठ पर टिकी हुई है।
लेकिन यह खतरनाक है, क्योंकि इससे भावी नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं को बनाने में बड़ी दिक्कत होती है।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण मोदी की वैक्सीन नीति का फेल होना है। बिना डेटा के सरकार ने वैक्सीन के कम आर्डर किये और चेहरा चमकाने के लिए विदेशों में वैक्सीन भेजी।
बाद में हालात बिगड़ने के बाद राज्यों पर ठीकरा फोड़ दिया। यही हाल कोविड के आंकलन का रहा। बिना डेटा के चायवाले ने दुनिया को कोविड से जीत का दावा कर बता दिया कि वह मूर्ख, अशिक्षित है।
ऐसा नहीं कि सरकार के पास डेटा नहीं है। लेकिन उसने सरकारी आंकड़ों को सार्वजनिक करने पर रोक लगा रखी है।
उसके पास ऐसे डेटा एनालिस्ट हैं, जो सरकार की मर्ज़ी से डेटा मॉडलिंग कर झूठ फैलाते हैं। नीति आयोग का मुख्य काम ही सरकार के सामने झूठी तस्वीर पेश करना है।
बावज़ूद इसके, मोदी सरकार की इमेज नहीं चमक पा रही है। चाहे न्यूयॉर्क टाइम्स हो या गल्फ न्यूज़, पूरी दुनिया ने मोदी का झूठ पकड़ा और लताड़ा है।
मोदी आराम से झूठ बोलता है, क्योंकि उसे लाखों लोगों तक परोसकर सच बनाने के लिए बीजेपी IT सेल और दलाल गोदी मीडिया है।
मोदी और दलाल मीडिया के हर झूठ का पर्दाफ़ाश करें। फिर सरकार दो दिन भी नहीं चलेगी।