मनरेगा के मजदूरों की तरह काम करने को मजबूर है महाराष्ट्र में ज्यादातर पत्रकार, प्रबंधन के लोग देते हैं सरकारी आदेश का हवाला, महीने में 15 दिन ही मिल रहा है काम, 50 साल की उम्र से ऊपर वाले कर्मचारियों को न काम दिया जारहा है न वेतन
महाराष्ट्र में ज्यादातर पत्रकारों की हालत मनरेगा के मजदूरों से भी गयी गुजरी हो गयी है। यहां के ज्यादातर समाचार पत्रों में हालात यह है कि मीडियाकर्मियों से अल्टरनेट डे काम लिया जा रहा है। यानी एक दिन आप काम कीजिये और एक दिन घर पर रहिये। कभी कभी प्रबंधन के लोगों की तरफ से फोन आ जायेगा कि आप आज ऑफिस मत आइयेगा, आपके लिए कोई काम नहीं है। अब जाहिर सी बात है जिस दिन आप काम करेंगे उसी दिन की आपको तनख्वाह मिलेगी, बाकी दिन आपको कोई तनख्वाह नहीं मिलेगी।
इस तरह आपको महीने में 15 दिन ही काम और सिर्फ 15 दिन की ही तनख्वाह मिलेगी।
ऐसा कोरोना काल में एक दो नहीं बल्कि महाराष्ट्र के ज्यादातर समाचार पत्रों में हो रहा है। यही नहीं, हालात इस कदर बदतर है कि 50 साल की उम्र पार कर चुके लोगों को कोरोना के खौफ से कि कहीं वे बीमार न पड़ जाएं अधिकांश अखबार मालिक उनको काम पर नहीं बुला रहे हैं। कुछ महीने तक इन लोगों को कुछ अख़बार प्रबंधन ने थोड़ी सी रकम एडवांस दिया मगर अब कुछ अखबारों में 50 साल से ऊपर वालों को वेतन देना भी बंद कर दिया गया है।
इस बारे में जब अखबार प्रबंधन से कुछ पूछिये तो वे सीधे कहेंगे कि सरकार का आदेश है कि हमको 50 प्रतिशत कर्मचारियों से ही काम लेना है, इसके लिए अल्टरनेट डे काम लिया जा रहा है।
इसी तरह जब आप पूछेंगे किसी अखबार के प्रबंधन से कि 50 साल से ऊपर वालों को ऑफिस कब से बुलाया जाएगा तो वे सीधे सीधे पल्ला झाड़ लेंगे कि ऐसा सरकार का आदेश है कि जिनकी उम्र 50 साल या उससे ज्यादा है उनसे आप काम मत लीजिये। जब आप प्रबंधन से इस सरकारी आदेश की कॉपी मांगेंगे तो आपको बहाना कर दिया जाएगा।
सवाल ये उठता है कि कोई भी सरकार ये नहीं कहेगी कि आप जिनको अल्टरनेट डे बुला रहे हैं उनको आप आधा वेतन ही दीजिये या जो 50 साल या उससे ऊपर की उम्र के हैं उनका आप वेतन ही रोक दीजिये। फिलहाल सरकारी आदेश की आड़ में कुछ अख़बार प्रबंधन के इस कदम से ज्यादात्तर मीडियाकर्मियों की हालत मनरेगा मजदूरों से भी गयी गुजरी हो गयी है।
महाराष्ट्र में लोकल ट्रेन में भी सिर्फ उन्हीं मीडिया कर्मियों को यात्रा की अनुमति है जिन्हें राज्य सरकार ने मान्यता दिया है, बाकी बेचारे परेशान हैं।
शशिकांत सिंह
वाइस प्रेसिडेंट
न्यूज़ पेपर एम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया
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