Yashwant Singh : सुबेरे सुबेरे एक बीमार भक्त से पाला पड़ा! उनके कुसंवाद पर मेरे द्वारा दिये गए वक्तव्य को पढ़िए और खुद कल्पना करके जान जाइए कि उनने व्हाटसअप विश्वविद्यालय / आईटी सेल द्वारा प्राप्त प्रचंड ज्ञान के आधार पर क्या सवाल/कुतर्क पेला था–
जवाब-1
मो-शा गैंग बहुत निराश कर रहा। दिल्ली में हार का बदला ठीक से ले नहीं पाए। सौ पचास का मरना कटना भी कोई सबक सिखाना हुआ!
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जवाब-2
ओह! आप भी मो-शा भक्त हैं! मुझे लगा था मनुष्य हैं।
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जवाब-3
ईश्वर न करें किसी गैंग नियोजित दंगे की आंधी में आपको फंसना पड़े और शिश्न के जरिए नागरिकता साबित करने की कोशिश में अकाल काल कवलित होना पड़ जाए। स्टेट स्पॉन्सर्ड दंगे धर्मान्धों/दंगाइयों को कम, निर्दोषों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
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जवाब-4
हर सरकार और उसका गैंग यही चाहता रहा है कि समाज धर्म या जाति के हिसाब से पोलराइज हो, इसी आधार पर वोट करे। दुर्भाग्य से हमारे आप जैसे समझदार लोग भी सरकारी चालों-कुतर्कों में फंस जाते हैं। दंगे बिना स्टेट की शह पर हो ही नहीं सकते। इसमें स्टेट मशीनरी का इस्तेमाल किया जाता है। शहर में कर्फ्यू नामक एक किताब है, एक आईपीएस द्वारा लिखी हुई, पढ़िएगा। दिल्ली के दंगे में पुलिस की भूमिका के बारे में जग जाहिर है। मुद्दा ये है कि नागरिक खुद से जुड़े आर्थिक सोशल सेहत रोजगार आदि के मुद्दे पर लामबंद होकर क्यों नहीं सरकारों पर दबाव बना पाते? क्योंकि चेतना का स्तर कमजोर होने के कारण हम हमेशा सरकारों के ट्रैप में फंस जाते हैं।
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जवाब-5
मुझे मालूम है भक्त हिंदुस्तान को भी पाकिस्तान बनाना चाहते हैं। इसीलिए उनसे तर्क करना फिजूल है। जब आपका आदर्श विकसित देशों की बजाय एक कट्टरपंथी व धर्म आधारित शासन वाला मुल्क है तो फिर बहस ही बेकार। करते रहिए पाकिस्तान से नीचता में नीचतम होते जाने की होड़। चीन अमेरिका ब्रिटेन जैसी तरक्की भारत में कैसे हो, इस पर बात न करिएगा।
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जवाब-6
क्या आपको इस्लामोफोबिया है? अरे हां, ये रोग तो हर भक्त में प्रमुखता से पाया जाता है। चीन की बात करते ही उसके यहां का इस्लाम याद आ गया? ये भी बता दीजिए वहां कितने मंदिर हैं जिसमें भक्त लोग बैठकर मुक्त कंठ से घण्टा बजाकर हनुमान चालीसा पढ़ पाते हैं? चीन धर्म को निगेट करता है, पॉलिसी लेवल पर। इसलिए किसी धर्म के मूर्ख वहां मिल जाएंगे धार्मिक चूतियापा करते हुए तो उन्हें वह ‘शिक्षित’ करने का अभियान चला देता है।
दुर्भाग्य ये है मोशा गैंग भक्त घुमा फिराकर धर्म के चूतियापे पर ही बतियाएंगे। इसीलिए कहा जाता है कि भक्तों से बहस में मुकाबिल होने और भैंस के आगे दंडवत बीन बजाने का कोई सुफल नहीं निकल पाता।
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जवाब-7
मेरा जवाब ठीक से पढ़ा नहीं आपने ऊपर। दंगे हिन्दू या मुस्लिम नहीं शुरू करते, स्टेट शुरू कराता है अपने पालतू गुंडों द्वारा जो हिन्दू भी हो सकते हैं, मुस्लिम भी। कमजोर व भ्रष्ट सरकारें जनता को बांटने के लिए हमेशा धर्म-जाति-भाषा-रंग-लिंग के आधार पर समाज के लोगों को आमने-सामने से आपस मे लड़ाने के लिए दंगा कराती रहीं हैं और कराती रहेंगी। ये रुकेगा तब जब आप जैसे भक्त पहले मनुष्य फिर सचेत नागरिक बन पाएं। बाकी भक्तों के ‘प्रचंड’ अध्ययन के आगे अपन नतमस्तक हैं! उन्हें बहस में नहीं हराया जा सकता क्योंकि वो अधुनातन व्हाटसअप विश्विद्यालय / आईटी सेल विश्विद्यालय से एंटायर पोलिटिकल व सोशल साइंस की डिग्री के अलावा वर्ल्ड हिस्ट्री में भी डिप्लोमा किए हुए होते हैं।
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जवाब-8
मेरा जवाब ऊपर आपने फिर से नहीं पढ़ा ठीक से। हम कब पड़ोसी चीन, विकसित अमेरिका ब्रिटेन की तरह मजबूत देश बनने की तरफ बढ़ेंगे। कब तक दूसरे धर्मों और दूसरे धर्म आधारित शासन वाले असफल देशों को देख कर अपने देश को जलाने गर्त में गिराने का काम करेंगे?
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जवाब-9
ग़लती आपकी नहीं है मित्र रूपी भक्त। जो चश्मा भक्तों को मोशा गैंग द्वारा पहनाया जाता है उससे गैंग मेम्बर्स के अलावा हर नागरिक उसे डाकू/लुटेरा ही नज़र आता है। इस चश्मे की खासियत है कि इससे गैंग संचालित सरकारों के कुकर्म/करप्शन/दिवालियापन तनिक भी नहीं दिखते। ऐसा चश्मा है भक्तों का अलबेला….इन्हें दिखता तनिक न मो-शा का खेला! 😀
ज़रूर! जब जहां कहें, सीधी बहस की जाएगी।
प्यार आपको
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जवाब-10
मोदी शाह का नाम तो आप ले लिए। हमने तो मोशा गैंग या मो-शा गैंग ही लिखा। मैँ आपके लिए ये कतई न कहूंगा कि चोर की दाढ़ी में तिनका! क्योंकि एकांगी व डिस्टॉर्टेड अर्थ निकालना-फैलाना प्रचंड कैटगरी के भक्तों का काम होता है जो वर्तमान व भविष्य की प्रोग्रेसिव प्लानिंग की बजाय अतीत की लाशें-मुर्दे यहां वहां से उखाड़ कर दिन भर यत्र तत्र बदबू फैलाते-बिखेरते रहते हैं। चलिए बता देता हूँ। मोशा गैंग का मतलब होता है- मोगाम्बो-शाकाल गैंग!
भड़ास एडिटर यशवंत की एफबी वॉल से.
मूल पोस्ट ये है-