Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

बकरा कट दाढ़ी वाले इस जिन्दादिल इंसान ने मुझे हमेशा प्रभावित किया : दयाशंकर शुक्ल सागर

Daya Sagar : जाओ कामरेड… कामरेड मुद्राराक्षस नहीं रहे… तीन दशक पहले मुद्राजी से पहली दफा लखनऊ मुलाकात हुई थी। बकरा कट दाढ़ी वाले इस जिन्दादिल इंसान ने मुझे हमेशा प्रभावित किया। छोटा कद और टिमटिमाती आंखें मुझे हमेशा उनके लिलिपुट वासी होने का भ्रम पैदा करती थी। मैं उनसे हमेशा पूछना चाहता था कि उन्होंने अपना नाम सुभाष चन्द्र गुप्ता से बदल कर यह मुद्रा राक्षस जैसा कौटिल्ययुगीन नाम क्यों रख लिया। वह एक मोहनी मुस्कान के साथ इस सवाल को नजरअंदाज कर जाते। उनकी कलम में बगावत थी और शब्दों में शोले।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p>Daya Sagar : जाओ कामरेड... कामरेड मुद्राराक्षस नहीं रहे... तीन दशक पहले मुद्राजी से पहली दफा लखनऊ मुलाकात हुई थी। बकरा कट दाढ़ी वाले इस जिन्दादिल इंसान ने मुझे हमेशा प्रभावित किया। छोटा कद और टिमटिमाती आंखें मुझे हमेशा उनके लिलिपुट वासी होने का भ्रम पैदा करती थी। मैं उनसे हमेशा पूछना चाहता था कि उन्होंने अपना नाम सुभाष चन्द्र गुप्ता से बदल कर यह मुद्रा राक्षस जैसा कौटिल्ययुगीन नाम क्यों रख लिया। वह एक मोहनी मुस्कान के साथ इस सवाल को नजरअंदाज कर जाते। उनकी कलम में बगावत थी और शब्दों में शोले।</p>

Daya Sagar : जाओ कामरेड… कामरेड मुद्राराक्षस नहीं रहे… तीन दशक पहले मुद्राजी से पहली दफा लखनऊ मुलाकात हुई थी। बकरा कट दाढ़ी वाले इस जिन्दादिल इंसान ने मुझे हमेशा प्रभावित किया। छोटा कद और टिमटिमाती आंखें मुझे हमेशा उनके लिलिपुट वासी होने का भ्रम पैदा करती थी। मैं उनसे हमेशा पूछना चाहता था कि उन्होंने अपना नाम सुभाष चन्द्र गुप्ता से बदल कर यह मुद्रा राक्षस जैसा कौटिल्ययुगीन नाम क्यों रख लिया। वह एक मोहनी मुस्कान के साथ इस सवाल को नजरअंदाज कर जाते। उनकी कलम में बगावत थी और शब्दों में शोले।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वे गजब के विद्वान थे। हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत धाराप्रवाह बोलते। सबसे बड़ी बात यह कि उनके पास उनकी हर स्‍थापना के पीछे तथ्य और तर्क होते। इसलिए कोई हैरत की बात नहीं कि वह अपने ही गुरू अमृतलाल नागर को घटिया उपन्यासकार कभी मुंशी प्रेमचंद को दलित विरोधी कहने से नहीं चूकते। फिर भी सब उन्हें प्यार करते। कोई आठ दस साल पहले गीता के उनके पुनर्पाठ पर मेरी उनसे लम्बी बहस हुई थी। मैंने उनसे कहा था कि मार्क्स की नजर से आप गीता का सिर्फ कुपाठ ही कर सकते हैं। गीता एक अरण्य है जिसमें भटकने के अलावा आपको कुछ हासिल नहीं होगा। लखनऊ उन्हें बहुत प्यार करता था और वह लखनऊ से इश्क में थे। लखनऊ ने आज अपना आशिक खो दिया। मुद्रा जी आपको भूलना इतना आसान नहीं। श्रद्धांजलि मुद्राराक्षस।

अमर उजाला शिमला के संपादक दयाशंकर शुक्ल सागर के एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Abhishek Srivastava : बात 2007 की है। खैरलांजी हत्‍याकांड को कुछ ही दिन हुए थे। दिल्‍ली में हम लोगों ने एक साम्राज्‍यवाद विरोधी लेखक मंच स्‍थापित किया था और उसके दूसरे कार्यक्रम में दलित प्रश्‍न पर मुद्राराक्षस को व्‍याख्‍यान के लिए आमंत्रित करने की योजना थी। संयोग से पता चला कि मुद्राजी दिल्‍ली में ही हैं और सर्वोदय एंक्‍लेव स्थित रवि सिन्‍हा के विशाल बंगले पर रुके हुए हैं। मैं उन्‍हें आमंत्रित करने के लिए वहां पहुंचा। एकबारगी बंगले की आबोहवा देखकर आश्‍चर्य हुआ कि मुद्राजी जैसा सादा आदमी यहां क्‍या कर रहा है। रवि सिन्‍हा भी वहां मिले। बरसों बाद।

मुद्राजी के हाथ में एक पत्‍थर था। बातचीत के बीच में मैंने उनसे पूछा कि इस पत्‍थर का क्‍या करेंगे। उन्‍होंने कहा कि दिल्‍ली में और कुछ तो है नहीं, यहां इतने विशाल परिसर में कुछ अच्‍छे पत्‍थर मिले तो मैंने झोले में भर लिया। उन्‍होंने झोला खोलकर दिखाया। उसमें कई पत्‍थर थे अलग-अलग आकार के।बहरहाल, राजेंद्र भवन में कार्यक्रम हुआ और काफी कामयाब हुआ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एकाध साल बाद लखनऊ में उनके आवास पर मुलाकात हुई तो मैंने पूछा कि वे पत्‍थर कहां गए। मुद्राजी ठठाकर हंसे और बोले, ”पत्‍थर उछालने के लिए होता है, संजोने के लिए नहीं।” मुद्राजी आज नहीं हैं लेकिन उनकी बात हमेशा के लिए याद रह गई। वे हमेशा धारा के विपरीत तैरते रहे। अपने दम पर पत्‍थर उछालते रहे। उन्‍होंने हम जैसे कई लोगों को पत्‍थर उछालना सिखाया। उनके जाने से लखनऊ के सिर से एक शाश्‍वत गार्जियन का साया उठ गया। अब दुर्विजयगंज से गुज़रते हुए सोचना पड़़ेगा कि यहां किसके यहां दो घड़ी के लिए ठहरा जाए। मुद्राराक्षस को लाल सलाम!

आजाद पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement