
धर्मेंद्र सिंह-
मुख्तार के कारनामे को पहली बार देखा…. पत्रकारिता जीवन शुरू शुरू का था। गॉव से आना जाना लगा था। बनारस से वापसी थी। रमेश बाबू के साथ। मुगलसराय, अब दीनदयाल नगर । रेलवे पुल के नीचे तब के कोतवाली इंस्पेक्टर ननके सिंह जनवार। रोबीले शख्स। बोलते कम थे। अगले से सवाल करने में केवल मूंछें हिलतीं।
जनवार साहब तिराहे पर ही फोर्स के साथ खडे थे। जोंगा जीप किनारे लगी थी। शाम का वक्त था। गर्मियों का मौसम। हम लोगों के लिए जवाहर के यहॉ से चाय का आर्डर भेजा। इतने में एक गोरा चिट्टा , लंहाई में असामान्य कद का युवक सफेद जिप्सी से उतरा। जनवार साहब । चौंके। उसमें से कुछ उतरे और गॉडीव संवाददाता राजू जी के कटरे में दुकान की ओर बढे। संदेह बढने पर जनवार साहब ने युवा को नीचे उतर परिचय बताने को कहा। रोबदार तरीके से बोला। पटना जा रहा हूं। वहॉ के डीआईजी खान साहब का बेटा हूं।
जनवार साहब ने पीछे रखे असलहों की ओर इशारा करते हुए पूछा- यह सब क्या है जनाब? असल में बिहार जाते जंगल वंगल पडते ही हैं सो हिफाजत के लिए..। सॉस खींचते माथे को सिकोडते जनवार ने बोला, जनाब आपको थाने तक चलना पडेगा। कुछ हीला हवाली के बाद मुख्तार की गाडी काली माई मंदिर की ओर मुड गयी। दो कांस्टेबल उसमें बिठा दिए। जनवार की जीप आगे। जिप्सी पीछे।
पल भर गुजरा और अचानक से फायरिंग। दोनों कांस्टेबल जमीन पर गिरकर तडप रहे। फर्सांग भर से भी कम दूरी पर चल रहे इंस्पेक्टर की जीप ने यू टर्न लिया। तब तक पुल पर गाडी छोड मुख्तार रफू चक्कर। फिल्मी स्टाइल में हुई घटना, इंस्पेक्टर के होश फाख्ता हो गए। सेट पर बस चिल्लहट। मुठभेड.. मुठभेड।
कर्मवीर सिंह जी एसएसपी बनारस। तब चंदौली भी बनारस में ही था। देखते देखते पुलिस छावनी बन गयी। कल्याण सिंह जी की सरकार थी। बडा चैलेंज था। तफ्तीश में पता चला कि मुख्तार यार्ड में खडी मालगाडी में सवार हो भाग गया था। तब मुख्तार बहुत चर्चा में नहीं आया था। इस घटना से वह पुलिस की नजर में आया।
प्रदेश में प्रकाश सिंह जी डीजीपी थे। बनारस के कप्तान वीके सिंह और गाजीपुर के अरुण कुमार जी। पहली दफा इन दोनों ही अधिकारियों के नेतृत्व में मोहम्मदाबाद में कुर्की हुई। तब की कुर्की सुर्खियों में रही और सदन में अफजाल अंसारी फूट फूट कर रोए थे।
