अजय कुमार, लखनऊ
समाजवादी पार्टी के जनक और गैर कांग्रेस के शिल्पी डा. राम मनोहर लोहिया के चेले मुलायम सिंह यादव कभी भारतीय राजनीति का एक चमकता हुआ सितारा हुआ करते थे। प्रदेश की नहीं देश की सियासत भी उनके इर्दगिर्द घूमती थी, लेकिन अब न तो उनका शरीर उनका साथ दे रहा है और न ही खुद की बनाई समाजवादी पार्टी में उनकी (मुलायम सिंह यादव) कोई सुनता है। बेटा अखिलेश तो पिता मुलायम सिंह की नहीं सुनने के कारण बदनाम हैं ही, सपा कार्यकर्ता भी अब नेताजी की बातों को अहमियत नहीं देते हैं। अगर ऐसा न होता तो आजम के पक्ष में मुलायम की आंदोलन की हुंकार पर सपा कार्यकर्ता सड़क पर जरूर दिखाई देते।
दुखद स्थिति यह है कि न तो अखिलेश ने कार्यकर्ताओं को नेताजी के सम्मान में सड़क पर आने को कहा और न ही पार्टी के अन्य किसी दिग्गज नेता इस बारे में अखिलेश को समझाना उचित समझा, जिसके चलते जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर मुलायम सिंह की तो किरकिरी हुई ही, आजम खान की भी आखिरी उम्मीद टूट गई। वह पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं। अखिलेश यादव पहले से ही आजम खान से दूरी बनाकर चल रहे हैं। इसीलिये तो महंगाई व कानून-व्यवस्था पर योगी सरकार को घेरने वाली समाजवादी पार्टी अपने नए आका अखिलेश की नीयत को भांप कर आजम खां के सवाल पर सड़क पर उतरने को तैयार नहीं हुई। अब तो यही लगता है कि नई सोच वाली समाजवादी पार्टी में मुलायम की बात की आन-बान और शान बचाए रखने की भी चिंता किसी को नहीं रह गई है।
वैसे यह सियासत का दस्तूर है कि यहां उगते सूरज को सलाम किया जाता है। इस समय जो सियासी बयार चल रही हैं उसमें आजम खान की अब समाजवादी पार्टी और अखिलेश को कोई खास जरूरत नहीं रह गई होगी। क्योंकि अब तमाम दलों के नेताओं को मुस्लिम वोट बैंक से अधिक हिन्दू वोटरों की चिंता सताने लगी है।
गौरतलब हो, मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि आजम खां पर दर्ज हो रहे मुकदमों के खिलाफ पार्टी कार्यकर्ता प्रदेश भर में आंदोलन करें। आजम खान को समर्थन देने के लिए मुलायम ने करीब ढाई साल बाद प्रेस कांफ्रेंस की थी। उन्हें शायद इस बात का दुख सता रहा था कि उनकी पार्टी आजम के मुद्दे पर खामोशी की चादर क्यों ओढ़े है। वैसे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी पार्टी के नेता आजम खां पर मुकदमे दर्ज कराने के विरोध में बयान जारी कर चुके हैं, यही नहीं रामपुर में प्रशासन द्वारा निर्माण गिराने के मामले की जांच के लिए प्रतिनिधिमंडल भेज चुके हैं, लेकिन मुलायम ने जब प्रे कांफ्रेंस की तो अखिलेश यादव सहित किसी नेता ने मुलायम के साथ मंच तक साझा नहीं किया।
सूत्र बताते हैं अखिलेश यादव एक सीमा से ज्यादा आजम खां के मामले में आगे नहीं जाना चाहते हैं। यही कारण है कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव द्वारा आजम खां के समर्थन में प्रेस कांफ्रेंस करने व कार्यकर्ताओं के सड़क पर उतरने की अपील के वाबजूद कार्यकर्ता सड़क पर नहीं आए। बताया जा रहा है कि मुलायम के आजम के समर्थन में प्रेस करने के बाद सपा कार्यकर्ता इस बात का इंतजार करने लगे कि अखिलेश का इस पर क्या रूख है। अगर अखिलेश पिता मुलायम सिंह के पक्ष खड़े नजर आते तो यह बड़ा आंदोलन खड़ा किया जा सकता था,लेकिन जब पार्टी आलाकमान ने कार्यकर्ताओं के लिए कोई निर्देश जारी नहीं दिए तो सपा के वरिष्ठ नेताओं इस मामले में चुप्पी साध ली।
बता दें आजम खां पर जमीन कब्जे से लेकर किताबें व भैंस चोरी जैसे मामलों में मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं। उनकी पत्नी और बेटा भी जांच एजेंसियों के रडार पर है। बेटा अपनी उम्र गलत दर्शाने तो पत्नी बिजली चोरी की आरोपी हैं। आजम के खिलाफ गिरफ्तारी वांरट जारी हो चुका है। कोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया है। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पार्टी केवल आजम खां के मुद्दे पर कोई आंदोलन नहीं करना चाहती है।
आजम के समर्थन में समाजवादी पार्टी की चुप्पी के कई मायने हैं। अखिलेश जानते हैं कि अगर आजम के समर्थन में आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की गई तो भाजपा इसे दूसरा रंग देकर सियासी फायदा उठाने की कोशिश करेगी। दरअसल, आजम के अत्याचार, जमीन हड़पने के कारनामों की लिस्ट में उन शोषित-पीड़ित मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा जिनकी जमीन पर आजम ने बलात कब्जा कर लिया हैं। इसीलिए सपा का शीर्ष नेतृत्व आजम का समर्थन करने के बजाए तमाम मुद्दों पर भाजपा सरकार को घेरने के लिए समय-समय पर आंदोलन चला रही है। लब्बोलुआब यह है कि अब सपाई नेताजी मुलायम सिंह यादव की हुंकार पर तब तक रणभेरी को तैयार नहीं हैं, जब तक कि उनके नए आका इस संबंध में कोई दिशानिर्देश नहीं जारी करते हैं।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.