
जमात से जुड़े बांबे हाईकोर्ट के फैसले को दैनिक जागरण ने अपने पाठकों तक नहीं पहुंचाया। कायदे से यह खबर पहले पन्ने पर होनी चाहिए। अमर उजाला में इसे अंदर के पन्नों पर जगह मिली है। बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन ठीक ठाक कवरेज कहा जाएगा। पर दैनिक जागरण तो एकदम से चुप्पी साध गया।
खुद को देश क्या, ब्रह्मांड का सबसे बड़ा अखबार बताने वाले दैनिक जागरण ने अपने पाठकों के साथ छल किया है। जाहिर सी बात है कि दैनिक जागरण का पाठक किसी एक ही धर्म का तो होगा नहीं। सभी लोग पढ़ते हैं। पाठक का कोई जात धर्म नहीं होता।
अखबार के पाठक का एक बड़ा हिस्सा न तो सोशल मीडिया पर है और न ही वह वेबसाइट की खबरों को ज्यादा तवज्जो देता है। उसके लिए अखबार ही सारी खबरों का स्रोत है।
इसे दुर्भाग्य कहें या विडंबना या मनमर्जी या अकड़ या फिर किसी एक धर्म विशेष से नफरत। आज सुबह मैंने अलीगढ़ संस्करण का पहले से आखिरी पन्ने तक पूरा अखबार खंगाल मारा लेकिन, लेकिन मुझे जमात से जुड़े बांबे हाईकोर्ट के फैसले खबर कहीं दिखी ही नहीं।
दिखती भी कैसे खबर… जब ये है ही नहीं अखबार में।
क्या यही है “सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास”?
या फिर दैनिक जागरण भी आजतक की तरह खुद को अमर अजर समझ कर मनमानी खबरें परोस रहा है?
खैर, जल्द ही इस नफरत का अंत होगा। अगर नहीं हुआ तो इस आग में सब जलेंगे।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
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