खुद को बड़े अख़बारों में शुमार करने वाले मध्यप्रदेश के कई हिंदी दैनिक दिल्ली के अंगरेजी अख़बारों, खासतौर पर इंडियन एक्सप्रेस की खबरों को अगले दिन छापने में जरा भी नहीं झिझकते हैं. यूँ इसमें कोई हर्ज भी नहीं है बशर्ते खबर में अख़बार का उल्लेख कर उसे श्रेय दिया जाए, मगर ज्यादातर मौकों पर ऐसा होता नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस ने 13 अप्रैल को पहले पेज पर पहली खबर बैंकों द्वारा बहुत से कर्जे बट्टे खाते में डालने के बारे में छापी. इसके मुताबिक पिछले एक दशक में देश के सरकारी बैंकों का जितना कर्ज बट्टे खाते में गया उसका 80 फीसदी पांच साल में डाला गया.
राजस्थान पत्रिका समूह के मध्यप्रदेश से प्रकाशित दैनिक पत्रिका ने अगले दिन 14 अप्रैल को यह खबर प्रकाशित की मगर पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क की बाईलाइन से! न्यूज़ नेटवर्क शब्द भी अंगरेजी अखबार से उड़ाया गया है जो हिंदी को लेकर अख़बार की हीनता का परिचायक नहीं तो और क्या है. अंगरेजी के प्रति यह मुहब्बत इसके सहित ज्यादातर हिंदी अख़बारों में इन दिनों फूहड़ता की हद पार कर रही है. बैंकों के कर्ज वाली खबर में मीडिया रिपोर्ट का हवाला जरूर दिया गया है जो स्मार्ट दिखने की कवायद है. लब्बोलुआब यह की इंडियन एक्सप्रेस की खबर छापी गई पर उसका कोई जिक्र नहीं किया गया जबकि ऐसे मौकों पर अंत में नाम के साथ साभार भी लिखा जाता है.
भोपाल से वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश दीक्षित की रिपोर्ट.