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झारखंड

कैंसर से जंग लड़ रहे पत्रकार सतीश नहीं रहे

सतीश वर्मा

रांची : पत्रकारिता का एक और सच्चा प्रहरी हमें छोड़ चला… आज मन अशांत है। एक अजीब सा खालीपन महसूस हो रहा है। अभी दो घंटे पहले हम रिम्स के ट्रामा सेंटर में अजय से मिलने गये थे। उनके पिता जी वहां भर्ती हैं, वेंटिलेटर पर हैं। वहीं पर पत्रकारिता के एक सच्चे प्रहरी सतीश के बारे में चर्चा चल पड़ी।

सतीश कुछ दिनों से कैंसर से जंग लड़ रहे थे। वहां से हम आफिस आये। कुछ देर बाद ठीक साढ़े ग्यारह बजे मेरे मोबाइल की घंटी बजी। जैसे ही हमने हेलो कहा, उधर से मनहूस खबर आयी। सतीश नहीं रहे।

यह आवाज संजय की थी। मन भारी हो गया। उद्विग्न भी। मैं तरह-तरह की यादें संजाये बैठा था सतीश को लेकर, तब तक दूसरा फोन आया। यह आवाज अजय की थी- सतीश जी नहीं रहे।

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सुनने के बाद अजय भी स्तब्ध और मैं भी कहीं खो गया। सोचने लगा, अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है, जब हम उससे रिम्स में मिलने गये थे। आभास तो उसी दिन हो गया था। लेकिन न जानें क्यों मन के किसी कोने में यह उम्मीद भी बची थी कि शायद सतीश अभी इस दुनिया को छोड़ कर नहीं जायेगा। कारण उसे अभी अपने बेटे और बेटी के प्रति पिता का फर्ज जो निभाना है। पत्नी से किये गये वायदे जो निभाने हैं।

सतीश कहता था: जिंदगी में बहुत काम करना है। यह भी कि फिर साथ काम करना है कभी। उसकी यही बात दिलासा दे जाती थी कि शायद वह इतनी जल्दी हम लोगों के बीच से नहीं जायेगा। लेकिन अंतत: सतीश जिंदगी की जंग हार गया। हमने अपनी सक्रिय टीम में से एक और सच्चा प्रहरी खो दिया।

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सचमुच में बहुत कष्ट होता है, जब अपना कोई सहयोगी असमय यात्रा के बीच में साथ छोड़ देता है। हम सतीश की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। ईश्वर के पास उस परिवार को कष्ट सहने की क्षमता देने की अर्जी भी लगाते हैं। सतीश ने पत्रकारिता जगत को बहुत कुछ दिया है, अब हम पत्रकारों की कुछ जिम्मेदारी है। अगर हम उस परिवार के किसी काम आ सकें, तो यही सतीश के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अभी बस इतना ही।

लेखक हरिनारायण सिंह रांची के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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