अनिल सिंह
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भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते यह महत्वपूर्ण परियोजना लटक गई है। इस खेल में अधिकारियों ने किस कदम आंख मूंद रखी थी, इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि एक ही मद में आसपास ली गई भूमि में जमीन और आसमान का अंतर आया। एक जमीन को जहां मात्र 31 लाख में खरीद लिया गया, वहीं दूसरी जमीन के लिये 2 करोड़ 27 लाख रुपये दिये गये। इससे सरकार को दो करोड़ रुपये से ज्यादा की क्षति हुई। सह खातेदार कुसुमा देवी और भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष ने इस मामले में शिकायत की। सारे जिम्मेदार अधिकारियों ने गलत रिपोर्ट देकर सरकार और इस परियोजना में खेल करने में कोई कोताही नहीं बरती। अब देखना है कि शासन कब तक इस मामले के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ विभागीय तथा कानूनी कार्रवाई करता है?
नमामि गंगे परियोजना : जमीन घोटाले के आरोपियों पर कब होगी कार्रवाई
लखनऊ : गंगा सफाई के नाम पर अरबों रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन गंगा अब तक साफ नहीं हुईं। दूसरी तरफ गंगा के नाम पर आये पैसे को साफ करने में सिस्टम के लोगों ने कोई कोताही नहीं बरती। फिरोजाबाद में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से सरकार को 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगा दिया गया। शिकायत के बाद जब जांच हुई तो सारे आरोप सही पाये गये।
आरोपों के आधार पर जिलाधिकारी ने पांच महीने पहले प्रमुख सचिव नगर विकास को पत्र लिखकर कार्रवाई का आग्रह किया, लेकिन अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। आरोप है कि प्रभावी आरोपियों ने इस मामले को दबाने के लिये साम, दाम, दंड और भेद सभी का इस्तेमाल कर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जांच में दोषी पाये जाने के बावजूद अब तक सरकार क्यों कार्रवाई करने से बच रही है?
भ्रष्टाचार के मामलों में सब कुछ सामने आने के बाद भी अधिकारी जानबूझकर कर इसे लटकाते हैं ताकि इसे ठंडे बस्ते में डाला जा सके। ऐसा ही एक मामला फिरोजाबाद जिले में नमामि गंगे परियोजना से जुड़ा हुआ है। नगर निगम फिरोजाबाद में कार्यरत एक संविदाकर्मी परियोजना अधिकारी की मिलीभगत से गलत एवं फर्जी तरीके से सरकार को 900 वर्ग मीटर जमीन सवा दो करोड़ रुपये से ज्यादा में बेच दी, जबकि इसी से कुछ दूरी पर स्थित जमीन सरकार को मात्र 31 लाख रुपये में ही मिल गई।
जब इस जमीन की हिस्सेदार महिला ने शिकायत की तथा भाजपा के पूर्व जिलाधक्ष कन्हैया लाल गुप्ता ने पैरवी की तब जाकर इस मामले में जांच शुरू हुई। जांच में आधा दर्जन लोग इस खेल में आरोपी पाये गये, जिसके बाद जिलाधिकारी फिरोजाबाद ने अपने स्तर से कोई कार्रवाई करने की बजाय प्रमुख सचिव नगर विकास विभाग को बीते अप्रैल में एक पत्र लिखते हुए कार्रवाई प्रस्तावित किया, लेकिन अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की जा रही है।
जिला अधिकारी चंद्र विजय सिंह ने प्रमुख सचिव नगर विकास को लिखे गये पत्र में बताया है कि राज्य स्वच्छ गंगा मिशन उत्तर प्रदेश एवं शासन के अन्य विभागों के माध्यम से शिकायत प्राप्त हुई कि फिरोजाबाद में नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत सीवर पम्पिंग स्टेशन के निर्माण हेतु आवश्यक भूमि अधिक मूल्य पर खरीदकर सरकारी धन को भारी क्षति पहुंचाई गई है। शिकायत मिलने पर 24 फरवरी 2020 को मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसमें मुख्य विकास अधिकारी, नगर आयुक्त नगर निगम एवं उप जिलाधिकारी फिरोजाबाद ने अपनी जांच आख्या दी।
जांच आख्या से स्पष्ट से है कि सीवर पम्पिंग स्टेशन मालवीय नगर नाला ग्राम प्रेमपुर रैपुरा बनाने के लिये संबंधित परियोजना प्रबंधक निर्माण ईकाई उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा कतिपय व्यक्तियों से दूरभि संधि करके ऐसी भूमि का चयन किया गया, जो इस परियोजना की जानकारी पहले ही मिलने के कारण परियोजना की आवश्यकता के बराबर भूमि का काश्तकारों से सौदा करके एवं काश्तकारों की जानकारी के बिना उनके नाम से फर्जी प्रार्थना पत्र देकर भूमि को अकृपिक/आबादी घोषित करा चुके थे।
इस प्रकरण में आवश्यकता से अधिक और वास्तविक मूल्य से कई गुणा अधिक मूल्य पर क्रय करके शासन को लगभग 2 करोड़ 7 लाख 12 हजार 72 रुपये की क्षति पहुंचाई है। डीएम ने अपने पत्र में लिखा है कि जांच में परियोजना प्रबंधक निर्माण ईकाई बीके गर्ग, विक्रेता तथा संबंधित तहसीलदार एवं लेखपाल इस मामले में जिम्मेदार हैं। इस पत्र को जिलाधिकारी ने 18 अपैल 2020 को प्रमुख सचिव नगर विकास को भेजा था, लेकिन शासन ने अब तक इस मामले में ना तो कोई कार्रवाई की है और ना ही जिलाधिकारी स्तर पर कोई कदम उठाया गया है।
खैर, इस मामले का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इस संदर्भ में भूमि के लिये ना तो कोई विज्ञापन प्रकाशित कराया गया था और ना ही कोई मुनादी कराई गई थी। इसके बावजूद विक्रेताओं ने उक्त स्थान पर उतनी ही जमीन खरीदी, जितना नाला टेपिंग के लिये आवश्यक थी। इससे भी बड़ा सवाल यह था कि इस जमीन खरीद के लिये जिलाधिकारी ने जो कमेटी बनाई थी, उससे नगर आयुक्त को बाहर कर दिया था, जबकि जीओ के अनुसार नगर निगम क्षेत्र में 10 करोड़ से कम या ज्यादा की जमीन खरीदे करने वाली समिति में नगर आयुक्त सचिव सदस्य के रूप में नामित रहता है।
10 करोड़ से कम की जमीन खरीद की समिति में नगर आयुक्त सचिव सदस्य तथा अपर जिलाधिकारी भू राजस्व अध्यक्ष होता है, जबकि 10 करोड़ से ज्यादा की जमीन खरीद में जिलाधिकारी अध्यक्ष तथा नगर आयुक्त सदस्य सचिव होता है, लेकिन इस प्रकरण में जिलाधिकारी ने नगर आयुक्त को सदस्य सचिव से हटाकर उनकी जगह नमामि गंगे परियोजना अभियंता को सचिव सदस्य बना दिया।
इस पूरे खेल का मास्टर माइंड पुलकित अग्रवाल बताया जा रहा है, जो नगर निगम में संविदा कर्मी होने के साथ नगर निगम का रजिस्टर्ड सप्लायर भी था। पुलकित को नामामि गंगे परियोजना के तहत नाला टेप किये जाने हेतु सरकार को जमीन की आवश्यकता की जानकारी पहले ही हो गई थी, क्योंकि वह कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद पर कार्यरत था। पुलकित ने अपने साथियों के साथ मिलकर सरकार को करोड़ों राजस्व की क्षति तो पहुंचाई ही, उसके साथ जमीन की रजिस्ट्री के समय अपने पिता का नाम भी बदल दिया। आधार कार्ड, वोटर कार्ड में पुलकित के पिता का नाम राजेश अग्रवाल है, लेकिन जमीन रजिस्ट्री कराते समय उसने साजिशन अपने पिता का नाम मनोज अग्रवाल दर्ज कराया।
ये है पूरा मामला
गंगा स्वच्छता अभियान के तहत नमामि गंगे परियोजना में फिरोजाबाद में राज्य सेक्टर से नाला टेपिंग और सीवेज पम्पिंग स्टेशन का निर्माण कार्य काराया जाना था ताकि नालों का गंदा पानी सीधे यमुना में ना गिरे। इस योजना के लिये स्वच्छ गंगा मिशन परियोजना कार्यालय आगरा ने नगर निगम फिरोजाबाद को भूमि उपलब्ध कराने का प्रस्ताव भेजा था। आरोप है कि इस प्रस्ताव की जानकारी नगर निगम में जलकल विभाग में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय के निर्माण कार्य की ऑनलाइन फीडिंग के लिये आउटसोर्सिंग के जरिये संविदा पर तैनात कम्प्यूटर आपरेटर पुलकित अग्रवाल को हो गई।
प्रस्ताव की जानकारी मिलने के बाद पुलकित ने इसका फायदा लेने की योजना बनाई। पुलकित कुछ अधिकारियों एवं अपने परिचितों के साथ मिलकर ग्राम बासठ मौजा प्रेमपुर रैपुरा के दलित जसवंत सिंह की जमीन खाता संख्या 568 के गाटा संख्या 365 रकवा 0.921 हेक्टेयर लगानी 37.75 पैसा सालाना में से रकवा 0.161 हेक्येर में 1/2 भाग यानी 0.80 हेक्टेयेर को इस काम के लिये चिन्हित किया।
यह जमीन संक्रमणीय भूमिधर काश्तकार थी तथा कृषि के रूप में दर्ज थी। सह खाताधारक के रूप में जसवंत सिंह के अलावा जसवंत सिंह के दिवंगत भाई शिवरतन की विधवा कुसुमा देवी, प्रेमचंद, अमरदास, बलवीर सिंह, सज्जन सिंह नाबालिग के नाम से खतौनी में दर्ज थी। यह इन लोगों की सम्मिलित जमीन थी। इन लोगों ने जसवंत सिंह से मिलकर बिना सहखाता धारकों की सहमति या बंटवारे के उक्त जमीन को कृषक से अकृषक करा लिया।
इसमें तत्कालीन उपजिलाधिकारी सदर संगम लाल यादव की भूमिका पर भी सवाल उठा। इस भूमि के संदर्भ में तहसीलदार ने 11 मई 2018 को अपनी रिपोर्ट लगाई। वादी ने 16 मई को चालान से मालियत का एक फीसदी के रूप में 11200 रुपये जमा किये और अगले ही दिन एसडीएम ने इसे अकृषक करने का फैसला दे दिया। यह खेल इसलिये किया गया ताकि कम कीमत पर कृषि भूमि खरीदकर ज्यादा दाम पर सरकार को बेचा जा सके।
उत्तर प्रदेश जल निगम की निर्माण ईकाई ने 12 जून 2018 को नगर आयुक्त फिरोजाबाद को नमामि गंगे कार्यक्रम अंतर्गत नालों को टेप करने हेतु निशुल्क भूमि उपलब्ध कराने का पत्र लिखा। इस पत्र में मालवीय नगर नाला के लिये प्रेमपुर रैपुरा में 15 बाई 20 मीटर तथा रेहान नाला के लिये मौहम्मदपुर बिहारीपुर में 30 बाई 30 मीटर के जमीन उपलब्ध कराने को कहा गया। इसकी तैयारी 2015 से चल रही थी।
इस पत्रचार की जानकारी पुलकित अग्रवाल को भी थी। इसी का लाभ उठाते उसने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर अंजाम देने का प्लान बनाया, जिसमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल थे। उपजिलाधिकारी की मिलीभगत से मात्र छह दिन के अंदर खेल कर दिया गया। 17 मई को जमीन अकृषक हुई। इसके बाद इस जमीन को 30 जून 2018 एवं 2 जुलाई 2018 को 50 लाख रुपये नगद घर पर देकर बही संख्या 1, जिल्द संख्या 11973 के पृष्ठ 149 से 182 तक क्रमांक 4941 पर रजिस्ट्रार ऑफिस फिरोजाबाद में रजिस्ट्री अंकित कराई गई।
जबकि नियमानुसार इतनी बड़ी धनराशि नगद देकर रजिस्ट्री कराना आयकर की धारा 269 एसटी का उल्लंघन था। रजिस्ट्री विभाग के किसी अधिकारी ने इसका संज्ञान नहीं लिया। इसमें खेल यह भी किया गया कि एक खरीददार पुलकित अग्रवाल, जिसके पिता का नाम राजेश अग्रवाल है, उसने अपने पिता का नाम बदलकर मनोज अग्रवाल लिखवा दिया। इससे भी जाहिर है कि पुलिकत ने या तो फर्जी प्रपत्र प्रस्तुत किया या फिर रजिस्ट्री विभाग के अधिकारियों की इसमें मिलीभगत शामिल थी।
क्रेता सुनील शर्मा पुत्र रोशनलाल शर्मा, पुलकित अग्रवाल पुत्र मनोज अग्रवाल, सतीश चंद्र पुत्र चिरंजीलाल, देवेंद्र पुत्र बाबूलाल, श्रीचंद्र पुत्र किशनलाल, संजय यादव पुत्र भूपत सिंह यादव तथा शैलेंद्र वर्मा पुत्र काशीराम वर्मा ने यह जमीन रजिस्ट्री कराने के बाद 6 जुलाई 2018 को नगर निगम फिरोजाबाद को एक सहमति पत्र दिया, जिसमें पम्पिंग स्टेशन के लिये अपनी जमीन देने की पेशकश की गई। यह उतनी ही जमीन थी, जितने की योजना के तहत जरूरी थी।
सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इस योजना में जमीन का क्षेत्रफल या जमीन की आवश्यकता के संदर्भ में कहीं कोई विज्ञापन भी नहीं प्रकाशित नहीं हुआ था। इन लोगों ने सरकार से जमीन का मोटा दाम पाने के लिये भूमि की सरकारी मालियत 1 करोड़ 13 लाख 90 हजार रुपये दिखाई तथा स्टाम्प अदा किया। जबकि उक्त भूमि का सरकारी सर्किल रेट 5400 रुपये प्रति वर्गमीटर है, जिसकी सूची तहसील में अंकित है। इस आधार पर उक्त भूमि की सरकारी मालियत 50 लाख 82 हजार के आसपास थी।
क्रेताओं ने इस मामले में भी धोखाधड़ी करते हुए जमीन की गलत मालियत दिखाई। इतना ही नहीं इन लोगों ने गाटा संख्या 365 एवं 366 को 17 मई 2018 के उपजिलाधिकारी के आदेश का हवाला देते हुए अकृषक दिखाया गया, जबकि यह आदेश केवल गाटा संख्या 365 पर लागू होता था। गाटा संख्या 365 भी शिकायत के बाद शून्य घोषित कर दिया गया था। गाटा संख्या 366 भी दलित प्रमोद कुमार से नियम विरुद्ध खरीदी गई।
30 जुलाई 2018 को उक्त जमीन खरीदने का प्रस्ताव राज्य स्वच्छ गंगा मिशन को भेज दिया गया। गंगा मिशन के अपर परियोजना अधिकारी ने जल निगम के मुख्य अभियंता के पत्र के जवाब में 3 अगस्त 2018 को कुछ आपत्ति के साथ भेज दिया। अपर परियोजना ने पूछा कि क्या 941 वर्ग मीटर का अकृषक भूमि ही उपलब्ध है? क्या उस लोकेशन पर कृषित भूमि उपलब्ध नहीं है? कृषित भूमि उपलब्ध होने से दर तुलनात्मक रूप से कम होगा। 941 वर्गमीटर बड़ा क्षेत्रफल है ऐसी दशा में इसके क्रय हेतु कृषित भूमि को वरीयता देता उचित होगा।
दूसरे उन्होंने आपत्ति लगाई कि समर्थित विक्रय पत्र 6 माह पूर्व का ना होकर 3 माह पूर्व का है। इस आपत्ति पर जल निगम आगरा के परियोजना प्रबंधक तथा यमुना प्रदूषण नियंत्रण इकाई के महाप्रबंधक ने इस जमीन के संदर्भ में आख्या दिया कि वहां कृषक भूमि भी उपलब्ध है, लेकिन इसके मालिकान से विक्रय की सहमति नहीं बन पाई है तथा इस पर पेड़ भी हैं, इसीलिये उक्त अकृषक भूमि प्रस्तावित की गई है। जबकि सच्चाई यह थी कि इन लोगों द्वारा दूसरे लोगों से जमीन खरीदने के संदर्भ में कोई प्रयास ही नहीं किया गया।
समर्थित विक्रय पत्र के तीन माह की होने पर इन लोगों ने मिलीभगत करके एक स्टाम्प पर सौदा जमीन का करके यह दिखाने का प्रयास किया कि सौदा 10 जून 2014 तथा 16 अप्रैल 2017 को आपसी सहमति के आधार पर किया गया था। इस पेपर पर भी इन के नजदीकी और रिश्तेदार ही गवाह के रूप में हस्ताक्षर किये।
अधिकारियों की मिलीभगत से 10 लाख के आसपास की जमीन का सौदा 2 करोड़ 27 लाख रुपये से अधिक में कर दिया गया। जबकि इस परियोजना के अंतर्गत मौजा सोफीपुर में 900 वर्गमीटर जमीन का सौदा मात्र 31 लाख 68 हजार रुपये में किया गया। इस खेल को समझना इसलिये मुश्किल नहीं है कि लगभग एक बराबर जमीनों के मूल्य में सात गुना से ज्यादा का अंतर अपनी कहानी खुद ही कह रहा है।
ऐसे हुआ खुलासा
सरकारी धन को क्षति पहुंचाने वाले इस पूरे प्रकरण का खुलासा भी नहीं होता अगर इस जमीन की सह खातेदार कुसुमा देवी एवं भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष कन्हैया लाल गुप्ता ने इस मामले शिकायत उच्च स्तर पर नहीं की होती। कुसुमा देवी के शुरुआती शिकायत पर जिलाधिकारी चंद्र विजय सिंह समेत अन्य जिम्मेदार अधिकारियों ने कोई संज्ञान नहीं लिया, क्योंकि इस खेल में भाजपा के भी कुछ स्थानीय नेता शामिल थे।
कुसुमा देवी ने हार नहीं मानीं और इस पूरे भ्रष्टाचार की शिकायत कमीश्नर से की, जिनके आदेश के बाद जिलाधिकारी ने मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में जांच के लिये एक समिति गठित की। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में सारे आरोपों को सही पाते हुए इसकी रिपोर्ट डीएम को दी, जिसके बाद डीएम ने अपने स्तर से कार्रवाई करने की बजाय गेंद शासन के पाले में डाल दी।

लखनऊ से बेबाक पत्रकार अनिल सिंह की रिपोर्ट.