-समरेंद्र सिंह-
मोदी जी सब बंद करके भारत को अमेरिका बना देंगे! अगली बारी राशन (PDS), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और मिड डे मील की है…
महान भारत के निर्माण में पांच बाधाएं थीं। उनमें से नरेंद्र मोदी जी ने दो बाधाएं दूर कर दी हैं। श्रमिक कानूनों को कारोबारियों के हितों की रक्षा के लिए बदला जा चुका है। किसानों से जुड़े कानूनों में भी बाजार के मुताबिक बदलाव हो गया है। बस तीन रुकावटें शेष हैं। उन्हें खत्म करते ही मोदी जी एक झटके में भारत को अमेरिका बना देंगे।
वो रुकावटें क्या हैं? वो रुकावटें हैं –
1) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS).
2) न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
और
3) मिड-डे मील
PDS को खत्म करने का दबाव काफी समय से है। तर्क है कि ये योजना जिनकी बेहतरी के लिए चलायी जा रही है, उनकी बेहतरी हो नहीं रही है। लिहाजा इसे बंद करके DBT यानी Direct Benefit Transfer व्यवस्था लागू की जाए।
इस रणनीति के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था भी खत्म होगी। सरकारी खरीद घटा दी जाएगी। FCI इमरजेंसी के हिसाब से अनाज खरीद कर गोदामों में रखेगी।
जब FCI-MSP व्यवस्था खत्म कर दी जाएगी तो धीमे से मिड डे मील योजना भी बंद होगी। उसके खिलाफ भी – स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती, टीचर खाना बनाने में लगे रहते हैं – जैसे तर्क दिए जा रहे हैं।
यह सब निर्धारित है। ऐसा करने के लिए IMF और World Bank का काफी समय से दबाव रहा है। और अब अमिताभ कांत की अगुवाई में नीति आयोग की भी यही राय है। आप इंटरनेट पर खंगालेंगे तो एक से बढ़ कर एक रिपोर्ट मिलेंगी। IMF की ऐसी ही एक रिपोर्ट 2018 की है। आप इसकी चंद लाइनों पर गौर कीजिए:
“Past MSP hikes for rice and wheat, combined with the government’s massive cereal stockpiling, resulted in production distortions, sharp swings in stocks, and episodes of high food inflation (IMF, 2017)….. Historically, substantial increases in the MSP were generally followed by rising inflation in key crops, fueling inflationary pressures.
आसान शब्दों में इसका मतलब है कि ये एक ऐसी बेकार व्यवस्था है जिसमें कुछ लोगों को भोजन मुहैया कराने के लिए एक बड़ा तबका जुटता है, जिस पर बहुत पैसे खर्च होते हैं और इसकी वजह से खानों की चीजों के दाम भी काफी बढ़ रहे हैं। लिहाजा ये व्यवस्था खत्म होनी चाहिए।
इसका अगला प्वाइंट देखिए:
Weaknesses in the PDS manifest large leakages and operating inefficiencies (IMF, 2016). Significant leakages—subsidized grains not reaching poor households—are estimated from 40 to 60 percent and may be much higher in some states. The operating costs of the Food Corporation of India (FCI)… are high, with the FCI’s costs of acquiring, storing, and distributing food grains approximately 40 to 50 percent more than the procurement prices.
अर्थात इतनी बड़ी व्यवस्था बनाने और सरकार पर बोझ बढ़ाने के बाद भी अनाज गरीबों तक नहीं पहुंच रहा। लाभ की तुलना में FCI को चलाने की लागत बहुत ज्यादा है।
ऐसे निष्कर्षों के बाद रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी हैं। आप सुझावों पर गौर कीजिए:
1) Recent policy initiatives such as the assured irrigation system, the introduction of e-NAM, and the development of GrAM are welcome and, despite gradual implementation, promise to reduce production risk, increase competitiveness, and improve transparency in state markets.
2) To further reduce vulnerability, there is also the need to continue to address long-term structural bottlenecks, including in irrigation and other infrastructure.
3) Boosting agricultural productivity requires more efficient use of inputs, improved agricultural technology, research and development, and education.
4) As MSPs could skew farmers’ production decisions, add to inflation, and enlarge the fiscal burden, their use (backed by assured procurement) should only be temporary and limited to correcting market failures.
5) Various agricultural subsidies are being streamlined especially through direct benefit transfers, and should be further reduced going forward.
कुल मिला कर आने वाले समय में मौजूदा व्यवस्था बंद होगी। यह सब कुछ योजना के तहत हो रहा है। इसके कुछ बड़े कारण हैं।
1) राज्य की सत्ता का नजरिया पूरी तरह व्यावसायिक होता जा रहा है। मतलब सरकार सभी सामाजिक दायित्वों से मुक्त हो जाएगी। सिर्फ मैनेजमेंट पर ध्यान देगी। इसलिए APMC, FCI, MSP और PDS जैसी व्यवस्थाएं खत्म होंगी। राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) और ग्रामीण कृषि बाजार (GrAM) इनकी जगह लेंगे।
2) लोगों को खाद्य मुहैया कराना, उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजाम करना – यह सब बोझ लगने लगा है। धीमे-धीमे ये सब इंतजाम बंद होंगे। कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी होगी।
3) जरूरतें पूरी करने की जगह गरीबों के खाते में कुछ पैसे डाल दिए जाएंगे और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया जाएगा। लोगों का जैसा मन हो वैसा वो पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं।
4) कृषि क्षेत्र में ज्यादा लोग रहेंगे तो उद्योग धंधों को मजदूर कहां से मिलेंगे। इसलिए उन सभी को गांवों से बाहर निकालना होगा।
5) इस देश में किसान सर्वाधिक ताकतवर समूह है। इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक है। वोट की राजनीति में बार-बार किसानों का कर्जा माफ होता है। उन्हें सब्सिडी देनी पड़ती है। यह सब फिजूलखर्ची है। जब इन सभी को धकिया कर गांव से बाहर निकाल दिया जाएगा तो इस समूह की सारी ताकत बंट जाएगी। फिर यह फिजूलखर्ची बंद हो जाएगी।
और सबसे महत्वपूर्ण बात:
6) अभी किसान जरूरत के मुताबिक खेती करता है। खेत के एक हिस्से में अनाज उगाता है। दूसरे में सब्जियां, तीसरे में पशुओं का चारा और एक छोटा सा हिस्सा बगीचे के लिए छोड़ता है। जहां एक-दो ही सही फलदार वृक्ष होते हैं। जिनसे उसके बच्चों को आम-अमरूद जैसे फल मिलते हैं और अचार भी बन जाता है। मतलब वह अपनी थाली को ध्यान में रख कर खेती करता है। जो अतिरिक्त उपज होती है वह बाजार में बेच देता है। जब किसानों की संख्या घट जाएगी तो थाली के हिसाब से खेती बंद हो जाएगी। फिर बाजार के हिसाब से खेती होगी।
दरअसल, 1991 में मनमोहन सिंह ने जिस आधुनिक दास युग की घोषणा की थी, नरेंद्र दामोदरदास मोदी उसकी जड़ों को सींच रहे हैं। आने वाला समय खतरनाक होने जा रहा है। भारत की बड़ी आबादी शहरों की गंदी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर होगी। और इस आबादी में लगभग सभी लोग, गांव से भगाए गए लोग होंगे। गांवों से सबसे पहले वो 67 प्रतिशत लोग भगाए जाएंगे जिनके पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है। गावों के वो 67 प्रतिशत लोग कौन हैं – आप अंदाजा लगा सकते हैं।
(2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद 2016 में PDS पर नीति आयोग की एक रिपोर्ट है। IMF की रिपोर्ट में नीति आयोग की उसी रिपोर्ट का जिक्र किया गया है। वो रिपोर्ट भी मजेदार है।)
किसान मुद्दा: मोदी जी को समझाने के लिए एक गणना, लेकिन ये भी तय है कि वो समझेंगे नहीं!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झूठ बहुत बोलते हैं। उनका ताजा झूठ किसानों के संदर्भ में है। इस देश के करोड़ों गरीब किसानों से उन्होंने कहा है कि वो कंपनियों और ग्राहकों को अपनी पैदावार सीधे बेच सकेंगे। उन्होंने पांच सितारा होटलों को सप्लाई करने वाले “किसानों” का उदाहरण देते हुए कहा कि इससे किसानों की स्थिति सुधरेगी।
मैं, प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश में नोएडा, गाजियाबाद, आगरा, लखनऊ और बनारस को छोड़ कर कितने शहरों में कितने पांच सितारा होटल हैं? और जो भी होटल हैं – उन तक हमारे बलिया के चौरा-कथरिया गांव के कितने किसान अपनी पैदावार पहुंचाने की क्षमता रखते हैं?
मैं प्रधानमंत्री से यह भी पूछना चाहता हूं कि क्या उन्हें कृषि कारोबारी और किसान के बीच का अंतर पता है या नहीं पता है? क्या उन्हें जानकारी है कि इस देश में प्रत्येक किसान परिवार के पास औसतन कितनी जमीन है? क्या उन्होंने इस बारे में कुछ पढ़ा है या अब भी हमेशा की तरह पढ़ना बंद है?
इस देश के किसानों के पास औसतन एक हेक्टेयर जमीन है। मैं प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि क्या वो एक हेक्टेयर में कितनी जमीन होती है – यह ठीक ठीक बता सकते हैं? मेरा दावा है कि प्रधानमंत्री जी को नहीं पता होगा! लेकिन मैं बताता हूं। साथ ही यह गणना करके भी बताता हूं कि आखिर किसान के हाथ क्या लगेगा?
एक हेक्टेयर में 10000 वर्ग मीटर जमीन होती है। अब 10000 वर्ग मीटर में खेती करने वाला किसान को बहुत अच्छा रहा तो 45 क्विंटल गेहूं (यह भी ज्यादा ही है, औसत इससे भी कम निकलेगा) मिलेगा। इसमें भी थोड़ा गेहूं खराब होगा और थोड़ा अच्छा होगा। लेकिन हम यह मान लेते हैं तो कि सब गेहूं अच्छा ही है तो समर्थन मूल्य 1925 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से उसे 86625 रुपये मिलेंगे। गेहूं पकने और कटाई करने में 6 महीने लगते हैं। अगर हम 86625 रुपये को 6 महीनों में बांट दें तो तो किसान की आमदनी प्रति माह 14438 रुपये की बनती है।
शायद हमारे प्रधानमंत्री जी को नहीं मालूम होगा लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि इस 14438 रुपये में किसान की लागत भी शामिल है। बीज, खाद और कीटनाशक के साथ-साथ बिजली और पानी का बिल भी है। ट्रैक्टर और थ्रेसर का भाड़ा है। डीजल का दाम है। मजदूरों की मजदूरी है। इसे काटने के बाद किसान के खाते में बमुश्किल कुछ हजार रुपये आते हैं। जिसमें उसे परिवार का पेट पालना है, बच्चों की फीस भरनी है, बेटियों की शादी करनी है और कोई बीमार पड़ा तो इलाज करना है। अब ये किसान पांच सितारा होटलों में या अंबानी और अडानी के गोदाम में माल बेचने कैसे जाएगा?
प्रधानमंत्री जी यहां पर एक और सवाल बनता है। आप ज्ञान की गंगा इतनी बहाते हैं कि आपसे सवाल करने का मन करता है। तो हुजूर आप ये बताइए कि जब आप “सरकार” होकर और इतना बड़ा लाव-लश्कर लेकर किसानों से सीधे माल नहीं खरीद पा रहे हैं तो फिर कंपनियां उनसे सीधे माल कैसे खरीदेंगी? और कौन सी ऐसी कंपनी है जो कच्चा माल खरीदने से लेकर तैयार माल बेचने तक सीधा कारोबार करती है?
हुजूर एक और बात। ये हाल तो उस किसान का है जिसके पास एक हेक्टेयर जमीन है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस देश के 67 प्रतिशत किसानों के पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन है? 37 प्रतिशत के पास 0.4 हेक्टेयर यानी एक एकड़ से भी कम जमीन है? अब ये किसान कहां से और कैसे, किसी बड़ी कंपनी तक अपना माल पहुंचाएंगे?
इसलिए प्रधानमंत्री जी आपसे एक गुजारिश है। आप झूठ बोलना बंद कीजिए। और झूठ बोलने की लत लग गई है तो अंबानी और अडानी के सामने झूठ बोला कीजिए। राजे-रजवाड़ों को बुला कर उनके सामने गप हांकिए। गरीब किसानों और मजदूरों को धोखा देना बंद कीजिए। उनके हिस्से, पहले से ही अनगिनत आंसू हैं। उन आंसुओं के अलावा जो थोड़ा संतोष और थोड़ी सी खुशियां हैं, उन्हें अपने झूठ की साजिशों से छीनने की कोशिश मत कीजिए।
मोदी जी, आप किसानों को सच-सच बताइए कि आपने IMF, वर्ल्ड बैंक और WTO के दबाव में अपना कृषि बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया है। आपने अमेरिका और यूरोपीय देशों की लॉबी के आगे घुटने टेक दिए हैं और गरीब किसानों को बाजार में बिकने के लिए छोड़ दिया है।
एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत रहे पत्रकार समरेंद्र सिंह की एफबी वॉल से.
फैसल खान
October 11, 2020 at 2:20 pm
पूर्ण सहमति आपके लेख से
Vishnu sharma
October 14, 2020 at 4:16 pm
इस लेख में nd tv का पत्रकार चूतिया बना रहा है,पर अब नही बननेवाले 2022 में योगी,2024 में मोदी
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