ये कोई होस्टाइल टेकओवर नहीं, NDTV को खरीदने की गहरी साजिश है!

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सौमित्र रॉय-

जी नहीं। ये कोई होस्टाइल टेकओवर नहीं है। यह NDTV को खरीदने की गहरी साजिश है।

जैसा कि मैंने कल भी लिखा था, मीडिया की आवाज़ को दबाने के लिए पूंजीवाद का खेल 13 साल से चल रहा है।

  1. कभी अम्बानी की सहायक कंपनी रही विश्वप्रधान कमर्शियल को अदाणी सेठ ने मंगलवार को 113.74 करोड़ में खरीदा है।
  2. आप जानकर हैरान होंगे कि बिना किसी पूंजी/संपत्ति के बनी विश्वप्रधान कमर्शियल ने 2009 में NDTV को करीब 404 करोड़ का लोन दिया था।
  3. यह पैसा कहां से आया? ICICI बैंक और लोन लेने वाले प्रोनॉय/राधिका रॉय, जो तब NDTV में 29% के हिस्सेदार थे, उन्होंने क्या इसकी छानबीन नहीं की होगी?
  4. असल में विश्वप्रधान कमर्शियल ने 404 करोड़ एक और कंपनी शिनानो रिटेल से 2009 में ही लोन लिया था।
  5. शिनानो को रिलायंस इन्वेस्टमेंट एंड होल्डिंग्स ने पैसा दिया। यानी NDTV को तब मिला पैसा असल में अम्बानी का था।
  6. विश्वप्रधान कमर्शियल के निदेशक भी रिलायंस के थे। तीनों कंपनियां आपस में जुड़ी थीं और यह बात कंपनी मंत्रालय के रिकार्ड्स से साबित होती है।
  7. 2012 में विश्वप्रधान कमर्शियल के मालिक बदल गए। नेक्स्टवेव टेलीवेंचर और स्काई ब्लू बिल्डविल्ड की एंट्री हुई। दोनों रिलायंस के निदेशक महेंद्र नाहटा से जुड़ी थीं।
  8. नाहटा ने अपनी ही फर्म एमिनेंट नेटवर्क से लोन के 50 करोड़ विश्वप्रधान कमर्शियल को लौटा दिए। अब NDTV का लोन 354 करोड़ का हो गया। क्या प्रोनॉय रॉय को ये भी पता नहीं चला?
  9. 23 अगस्त 2022 तक विश्वप्रधान कमर्शियल नाहटा की ही कंपनी थी। जिसे अदाणी सेठ ने खरीद लिया।
  10. कंपनी मामलों के मंत्रालय का रिकॉर्ड कहता है कि NDTV ने कभी लोन नहीं लौटाया। उसे मालूम था कि ऐसा करने पर बिना नोटिस चैनल पर कब्ज़ा हो सकता है।
  11. यानी प्रोनॉय रॉय ने NDTV में अपना हिस्सा 13 साल पहले ही छोड़ दिया था। उन्हें मालूम था कि चैनल बिकेगा।
  12. अम्बानी ने इस पल को 13 साल रोके रखा और अदाणी सेठ ने भारत के सबसे विश्वसनीय माने जाने वाले चैनल NDTV को एक झटके में गड़प लिया।

यह कोई होस्टाइल टेकओवर नहीं, लोकतंत्र पर पूंजीवाद की जीत है।

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One comment on “ये कोई होस्टाइल टेकओवर नहीं, NDTV को खरीदने की गहरी साजिश है!”

  • Ravindra nath kaushik says:

    वाह रे सौमित्र रॉय,मतलब लें के खा जाने वाला और डकार भी न लेने वाला लोकतंत्र होता है और गाढ़ा पैसा खर्च कर खरीदी चीज़ लें लेना पूंजीवाद हो गया? वाह रे सौमित्र रॉय नामधारी फंटर वाह

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