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सुख-दुख

कहां जा छिपे नीलाभ, अब और किसकी जिंदगी बिगाड़ोगे : भूमिका

रंगकर्मी एवं लेखक नीलाभ अश्क की मार-पिटाई से उनकी पत्नी भूमिका अश्क के बाएं हाथ में फ्रैक्चर हो गया है। घटना के दिन से लगतार दर्द बने रहने पर आज उन्होंने एक्स-रे कराया तो फ्रैक्चर का पता चला। बाएं हाथ पर आज प्लास्टर चढ़ गया। इस बीच उन्होंने भड़ास4मीडिया से अपनी तकलीफें साझा करते हुए कहा है कि ”नीलाभ की पूरी तरह से बेबुनियाद मुझ पर लगाई गई आरोपों की झड़ी का जवाब लोगों ने दे दिया है, जिनमें कुछेक उनके मित्र भी हैं। भड़ास4 मीडिया पर प्रकाशित नीलाभ अश्क के बयान से वह काफी दुखी होते हुए कहती हैं – ‘चोर की तरह कहां जा छिपे हो नीलाभ, तुम्हारे झूठ और पाप का घड़ा फूटने वाला है। अब और किस औरत की जिंदगी बर्बाद करोगे।’ 

रंगकर्मी एवं लेखक नीलाभ अश्क की मार-पिटाई से उनकी पत्नी भूमिका अश्क के बाएं हाथ में फ्रैक्चर हो गया है। घटना के दिन से लगतार दर्द बने रहने पर आज उन्होंने एक्स-रे कराया तो फ्रैक्चर का पता चला। बाएं हाथ पर आज प्लास्टर चढ़ गया। इस बीच उन्होंने भड़ास4मीडिया से अपनी तकलीफें साझा करते हुए कहा है कि ”नीलाभ की पूरी तरह से बेबुनियाद मुझ पर लगाई गई आरोपों की झड़ी का जवाब लोगों ने दे दिया है, जिनमें कुछेक उनके मित्र भी हैं। भड़ास4 मीडिया पर प्रकाशित नीलाभ अश्क के बयान से वह काफी दुखी होते हुए कहती हैं – ‘चोर की तरह कहां जा छिपे हो नीलाभ, तुम्हारे झूठ और पाप का घड़ा फूटने वाला है। अब और किस औरत की जिंदगी बर्बाद करोगे।’ 

वह भड़ास4मीडिया को बताती हैं – ”उन्होंने (नीलाभ अश्क ने) अपने आरोपों में एक बेटी का भी ज़िक्र किया है। जी हाँ, ये है वो तथाकथित बेटी, 14 जून 2014 के “हिन्दू” और “राष्ट्रीय सहारा” की इस फोटो से, उसकी सच्चाई जानी जा सकती है। मैं बता दूँ , 19 मई 2013 के ”जनसत्ता” अखबार में छपी मेरी कहानी ‘काला गुलाब’ पढ़कर उन्होंने मेरा मोबाइल नम्बर खोजा था और तब से लेकर 6 जून 2013 की सुबह तक कम-से-कम दो हज़ार बार उन्होंने मुझे फोन किया था। उस दौरान की कॉल डिटेल्स देखने पर मेरी बात की पुष्टि हो जाएगी।

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भूमिका के बांए हाथ में आज प्लास्टर चढ़ गया, नीलाभ की पिटाई से जो टूट गया था

”उस दौरान नीलाभ ने सुबह 5 बजे से लेकर रात 11 बजे तक फोन कर करके मेरा जीना दुश्वार कर दिया था। मैं उस दौरान अपनी माँ के घर इलाहाबाद भी गई और मेरी माँ ने ऩीलाभ को फोन करके बुरी तरह झिड़का और मेरा पीछा छोड़ देने की सख्त फटकार भी लगाई थी। नीलाभ तब मेरी माँ से अनुनय-विनय कर-करके खूब गिड़गिड़ाते रहे थे कि भूमिका से बात हो जाने दीजिए।

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”मैंने खुद भी कई बार नीलाभ को फोन न करने की चेतावनी दी थी लेकिन वे अपने दयनीय हालात का रोना रोते रहे। मुझे झूठ-पर-झूठ अपने वैभव के किस्से सुनाते रहे कि वे चार मकानों एक लंदन, एक इलाहाबाद, एक बुराड़ी और एक यही वर्तमान वाले मकान के अकेले मालिक हैं। उन्होंने ये भी बताया था कि वो किसी बिहारी लड़की के प्रेमजाल मे फंसे हुए थे, जिससे उनकी मित्रता फेसबुक पर हुई थी। वो लड़की उन्हें अनाथ, विकल और तन्हा छोड़कर चली गई है। वह कहते थे, इसीलिए उनको एक साहित्यिक रुचि वाली लड़की की इतनी जरूरत है कि वे इसके लिए ट्रेन के आगे लेटने को भी तैयार हैं।

”बहरहाल, मैं अपनी माँ से विदा लेकर 5 जून 2013 को अपने सरोजनी नगर के गर्ल्स हॉस्टल के लिए दिल्ली को रवाना हुई। प्रयागराज एक्सप्रेस में मेरी सीट और बोगी नम्बर नीलाभ ने किस विधि से जानी, ये तो वही जानें लेकिन ट्रेन रुकते ही वे मेरे सामने आकर कुली की तरह मेरा बैग मेरे हाथ से लेकर अपनी कार की ओर चल पड़े थे। एक बुज़ुर्ग का कॉलेज गोइंग लड़के वाला रवैया बड़ा हैरान करने वाला था उस दिन। मैं उम्र का लिहाज करते हुए बराबर अपने हॉस्टल जाने के लिए कहती रही। नीलाभ अतिशय विनम्रता टपकाते रहे और मेरी लेखनी के सबसे बड़े फैन के रूप में उस दिन मुझे अपने घर की एक कप चाय पिलाकर वापस हॉस्टल छोड़ने पर अड़ गए।

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” मैंने बूढ़े आदमी की इज़्जत करते हुए उनके घर की वो मायावी चाय पी। अगले दिन ऩीलाभ ने बताया कि हमारी शादी हो चुकी है और वो मेरे पति हैं। उस शादी में मेरा कोई नहीं था। गवाह उनके, जगह उनकी, विवाह का तरीका उनका। मेरी माँ को ये खबर तीन दिन बाद बताई गई। माँ अगले ही दिन फौरन नीलाभ के घर पँहुची और खूब तमाशा हुआ। नीलाभ ने माँ के पैर पकड़कर माफी के साथ भूमिका के पैर मे काँटा तक न चुभने देने की गारंटी दी। माँ इस पर भी राज़ी नहीं हुई और उलटे पाँव मुझे लेकर इलाहाबाद लौट गई थीं। पीछे-पीछे चल पड़े नीलाभ आँसू बहाते, रोते गिड़गिड़ाते माँ को मनाते रहे। नीलाभ जैसे बुज़ुर्ग को यूँ रोते-कलपते देखकर मैं पसीज गई और वापस आ गई उनके घर। लेकिन वापस आकर कुछ दिनों तक तो वह लट्टू की तरह मेरे आगे-पीछे नाचते रहे। फिर भी मौका पाते ही ऊल-जलूल औरतों से छिपकर मोबाइल पर बात करते रहे। पकड़ लेने पर हज़ार कसमें खा लिया करते, मेरा पैर पकड़ कर माफी माँग लिया करते थे।  

” इस तरह की लड़ाइयों के तहत मैंने तीन बार अपना सारा सामान बाँधा और घर छोड़कर जाने लगी थी। हमारे मोहल्ले के वे लोग इस सच्चाई को बयान कर सकते हैं, जो मेरा सामान लाने वाली गाड़ी का प्रबन्धक करते थे। हर बार नीलाभ अपनी रोती हुई आँखों के साथ मेरे पैरों से लिपट जाते कि तुम्हे नहीं जाने दूँगा।

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”धीरे-धीरे मामला शांत हुआ। उन दिनों मैं लिखने-पढ़ने में व्यस्त रहा करती थी लेकिन नीलाभ की चोरी-चकारी वाली चिरकुट आदतें नहीं सुधर रही थीं। एक बार मेरी काम वाली के सामने किसी औरत से वह मुलाकात का तय कर रहे थे। काम वाली ने मुझे बताया तो कहने लगे पुरुष से बात कर रहा था, उसकी आवाज़ महीन है, इसलिए मेड को शक हुआ। उस दिन मैंने डायल्ड नम्बर पर कॉल किया तो फिर एक महिला ही अवतरित हुई। मैंने इस तरह की कई घटनाएं अपनी मां से साझा कीं। माँ ने बीच-बीच में आकर नीलाभ को बहुत समझाया और वे दिन याद दिलाए, जब वह मुझे फोन पर लगातार तंग करते रहे थे। अबकी मेरी माँ ने साथ रहकर मामला नियंत्रित करने की कोशिश की तो नीलाभ ने घर का सारा क़ीमती सामान समेटा और चुपचाप किसी गोपनीय जगह पर चले गये। पहले कम्प्यूटर लेकर गए कि हार्ड डिस्क बदलवाने जा रहा हूँ। फिर करीब बीस कपड़े कार से ले गए कि दरज़ी से ढीले करवाने ले जा रहा हूँ। मैंने कहा 5-5 करके दर्जी को दो तो नहीं माने। बोले, एक साथ दे देता हूँ सभी कपड़े। वापस एक एक कर लाता जाऊँगा, जिससे सही नाप का हुआ या नहीं, पता चलता रहेगा।

”फिर एक दिन खूब किताबें ले जाने लगे। बोले, NSD में मँगवाई गई हैं। जब वह तीन मई 2015 को गये तो मैं घर के लिए परदे सिलवा रही थी। दरज़ी मैंने घर बुला रखा था। मुझसे हँसते-मुस्कुराते कहते रहे कि भूमिका अब पक्की गृहस्थिन बन गई है। तब तक कोई विवाद नहीं, कोई झगड़ा नहीं। अब थाने में जाकर कह रहे हैं कि उनकी जान को खतरा है। ऐसी कौन सी माँ होगी, जो अपनी बेटी को विधवा बनाना चाहेगी। सांसत में डालना चाहेगी। उनके मित्र को मैंने शर्बत दिया था, उन्होंने भी घर पर चाय पी थी। इतना ही नहीं, सबने मिल बैठकर साथ-साथ उस दिन नाश्ता किया था। अब उनका पता नहीं कि किसके साथ कहां रह रहे हैं।

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”उस दिन बीच में एक बार 13 मई 2015 को कार लेने घर पहुंचे। मेरे पूछने पर कि कहाँ रह रहे हैं, किसके साथ हैं, कुछ भी नहीं बताया। बात बात में मारपीट करने लगे। मेरा हाथ तोड़ दिया। उसका एक्स-रे करवाने के बाद प्लास्टर चढ़वाना पड़ा है। अब वह मुझ पर घिनौने आरोप लगा रहे हैं। मेरे छात्र जीवन की कथा सुना रहे हैं। हॉस्टल में मेरा नाम पूछ कर कोई भी हकीकत जान सकता है। वहां बड़े सम्मान से लायब्रेरी में मेरी पहली किताब ‘द लास्ट ट्रुथ’ यादगार के तौर पर सहेजी हुई है। शेष कुछ कहने की ज़रूरत नहीं।”

वह नीलाभ को लक्ष्य कर लिखती हैं – ”तुम अभी और कितनी ज़िन्दगियों को मोहरें बनाओगे, कितनी कवर फोटो बदलोगे, कितनी फोटुओं पर माला चढ़ाओगे, जब थाने में बैठकर अपने बुढ़ापे का रोना रोते हो, जब मुझे सड़क के बीच दौड़ते हुए मारपीट कर भागते हो, या जब घर की सारी क़ीमती चीज़े लेकर अज्ञातवास पर चले जाते हो। कभी सोचते हो कि तुम्हारे झूठ और पाप का घड़ा फूटने ही वाला है अब। सब तुम्हारा पता जानना चाहते हैं। बताओ सबको, तुम कहाँ चोर जैसे छिपे बैठे हो। अब किस महिला के साथ हो। यहां ज़िन्दगियां दांव पर लगी हैं, और तुम फ़्रांस, पैरिस और हंगरी की बातें कर रहे हो। शर्म करो। माफ़ी मांगो।”

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वह बताती हैं – ”एक बच्चे की हसरत लिए मैं मरी जा रही थी। तब उसने हज़ार तरीके की दवाएं खाईं। फलस्वरूप एक विकलांग बच्चे का भ्रूण बना, जिसे डॉक्टर बेदी ने बढ़ने नहीं दिया। मेरा तकरीबन कई लीटर खून बहाया गया। डॉक्टर इस बूढ़े का मुँह देखकर बहुत नाराज़ थीं क्योंकि इसके द्वारा वहाँ लिवा जाने वाली मैं पहली लड़की नहीं थी। डॉक्टर बेदी का नम्बर आज भी मेरे पास है। नीलाभ तो खाली अकाउंट की एक बैक डेटेड चेक की तरह हैं, जिन्हें मैं लिए फिर रही थी कि कहीं तो इनकी कद्र हो जाए, लेकिन वो अपनी आदतों से बाज़ नहीं आए। नतीजा सबके सामने है। आज भी राजस्थान पत्रिका में उनको मिला हुआ काम मेरे ही प्रयासों का फल है, जिसकी तनख्वाह वो अपने गोपनीय निवास पर अय्याशियों में उड़ा रहे हैं और मेरे घर-गृहस्थी का पूरा दारोमदार उन्होंने मेरी माँ पर डाल दिया है।”

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