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उत्तर प्रदेश

नेहा सिंह राठौड़ को डराने के लिए नोटिस देने के मामले में कुछ तथ्य

संजय कुमार सिंह-

डबल इंजन वाले ‘अच्छे दिन’ और नागरिकों को डराने की इतनी घटिया चाल… दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत नोटिस एफआईआर के बिना जारी नहीं की जा सकती है। मुख्य रूप से यह गवाहों को बुलाने या हाजिर करने के लिए है लेकिन..,

1) इस धारा के तहत लिखित नोटिस अपने या पास के थाना क्षेत्र में (ही) दी जा सकती है।
2) यह नोटिस 15 साल से कम के किशोर या पुरुष तथा किसी भी महिला को उसके निवास स्थान से कहीं और आने के लिए नहीं कहेगी।
3) अगर घर से अलग कहीं और बुलाया जाता है तो आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को वाजिब खर्च दिया जाएगा।

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नोटिस में इन बातों के साथ, एफआईआर का भी जिक्र नहीं है और ना ही उन्हें थाने बुलाया गया है। जांच अधिकारी का मोबाइल नंबर लिखा है इसलिए जवाब व्हाट्सऐप्प से भी भेजा जा सकता है (बशर्ते स्मार्ट फोन हो)।

नोटिस के ऊपर धारा ‘160 के अंतर्गत’ का जिक्र नहीं किया गया होता तो तकनीकी गलती नहीं होती लेकिन तब सवाल है कि जांच अधिकारी या थाना इंचार्ज को इस तरह नोटिस भेजने का अधिकार है कि नहीं। चर्चा है कि इस नोटिस के कारण नेहा सिंह राठौड़ के पति की नौकरी चली गई।

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इस संबंध में नेहा सिंह राठौड़ ने लिखा है, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री मार्कण्डेय काटजू ने उत्तर प्रदेश पुलिस की तरफ से मुझे भेजे गए नोटिस को अवैध बताया है और मुझे आश्वासन दिया है कि भारत की न्यायपालिका न्याय के पक्ष में मेरे साथ खड़ी है। जिस पीड़ा को मैं और मेरा परिवार झेल रहा है, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

मीडिया इन तथ्यों या गलतियों को बताने की बजाय रिपोर्ट कर रहा है, कुतर्क कर रहा है और अपराध के दूसरे मामलों से तुलना कर रहा है। सरकार समर्थक लोग इन सबको शेयर कर रहे हैं। बाकी जो मामला है वो तो है ही।

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नेहा सिंह राठौड़ का सवाल अपनी जगह सही है कि इस दोषपूर्ण नोटिस के लिए कौन जिम्मेदार है।

नोटिस में नेहा से जो सवाल पूछे गए हैं उससे लगता नहीं है कि पुलिस नेहा के अपराध से आश्वस्त है। मामला अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। अगर नेहा के खिलाफ एफआईआर होती तो पुलिस को इन जवाबों के आधार पर ही कार्रवाई करनी होती और कोई भी अपने खिलाफ खुद गवाही नहीं देगा तो जांच में सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया जा सकेगा। इस तरह बिना मामले के मामला बनाया जा सकेगा।

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एक बार किसी ने नोटिस स्वीकार कर लिया और पहली ही बार में नहीं लिखा कि आप ऐसा नोटिस जारी नहीं कर सकते हैं तो मामला बन जाता और फिर उसे मनीष सिसोदिया के मामले की तरह घसीटा जा सकता है। उदाहरण के लिए, उपस्थित नहीं होने पर जुर्माने या सजा का प्रावधान है लेकिन नोटिस ही निराधार है उसका क्या?

निर्वाचित सरकार द्वारा जनता या नागरिकों को डराने के किसी भी मामले में मुझे अमेरिका के ट्विन टावर को गिराए जाने के बाद जनसत्ता में छपी खबर याद आती है। उसका शीर्षक था, “लोग डरे हुए हैं कि बच्चे डर न जाएं”। जाहिर है, खबर का यह एंगल जनसत्ता के उस समय के संवाददाता और मित्र Sanjay Sinha का था लेकिन अमेरिका में एक चिन्ता यह भी थी।

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यहां जब आग लगाने वालों को कपड़ों से पहचानने का दावा किया जा सकता है तो किसी के डर जाने और जीवन भर बदले की आग में जीने की परवाह कौन करता है? और बिना अपराध फंसाए जाने के मामलों में ना कोई कार्रवाई होती है ना मुआवाजा है। फिर भी घनघोर विकास हो रहा है।

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