TV18 ग्रुप में बड़े पैमाने पर छंटनी. तमाम विभागों में काम करने वाले कर्मचरियों को थमाया गया जबरन नोटिस. टेक्निकल डिपार्टमेंट खासकर कैमरा डिपार्टमेंट में से 80% लोगों को 2 महीने की नोटिस देकर नया काम खोजने की सलाह दे दी गई. Tv18 के प्रादेशिक भाषा के चैनलों को मोजो किट से चलाने की घोषणा. इसके बाद Tv18 ग्रुप के news18 नामक चैनलों से लोगों को हटाए जाने का काम शुरू. एक समय 260 का स्टाफ हुआ करता था. अब सिर्फ 60 लोग चला रहे हैं चैनल. लोग बहुत तकलीफ में हैं.
Tv18 ग्रुप भारत का सबसे बड़ा ग्रुप होने का दावा करता रहा है. इसके पास रिपोर्टर्स की सबसे बड़ी टीम है. फिलहाल 15 प्रादेशिक भाषाओं के रीजनल चैनल और एक नेशनल चैनल के साथ कई अन्य चैनल इस ग्रुप के पास हैं. 6 साल पहले ईटीवी से पूरा का पूरा चैनलों का बुके खरीदने के बाद रिलायंस ग्रुप ने मीडिया इंडस्ट्री में एंट्री की थी. लेकिन समय के साथ इस ग्रुप में बड़ा बदलाव आया है. बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों को मोटी रकम और निचले तबके के कर्मचारियों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है. समय के साथ बदलाव जरूरी है लेकिन ये कैसा बदलाव है कि निष्ठावान पुराने कर्मचारियों को निकाला जा रहा है.
ये कर्मचारी संस्था के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगाकर संस्था की बेहतरी के लिए काम करते हैं. यहां तक की कॉरोना काल में यही लोग डरे बिना ईमानदारी से काम किए थे और अभी कर रहे हैं जबकि ये तमाम आला अधिकारियों ने घर से काम करना शुरू कर दिया था. वहीं दूसरी तरफ रिपोर्टर्स और कैमरामैन को कारोना की तमाम खबरें करने को कहा जाता था. कई रिपोर्टर्स और कैमरामैन कॉरॉना संक्रमित भी हुए थे लेकिन संस्था को इन बातो से कोई मतलब नहीं. उनको बस अपना फायदा दिखता है. वही करने में लगे हैं. जिनकी नौकरी जा रही है उनके बारे में कभी सोचते नहीं. जिन्होंने अपनी पूरी जवानी संस्था को दे दिया, बुढ़ापे में अब कहा जाएंगे. कोरोण काल में उनको नौकरियां कौन देगा. जो हो रहा है बहुत गलत हो रहा है. मीडिया इंडस्ट्री को व्यापार करने का साधन समझना किस हद तक सही है. देश के चौथे स्थंभ को इस कदर प्रताड़ित किया जाना सही नहीं है.
इन दिनों न्यूज18 के चैनलों में बड़े पैमाने पर छंटनी चल रही है. न्यूज18 के चैनलों को मोजो ओरियेंटेड किया जा रहा है. यानि सब कुछ मोबाइल से किया जाएगा. ऐसे में बहुत सारा स्टाफ काम विहीन हो गया है और इन्हें निकाला जा रहा है. न्यूज18 के चैनलों से कइयों को अपनी नौकरी गवानी पड़ी है.
मोजो से चैनल आपरेट करने का निर्णय संस्था को तो कई गुना ज्यादा फायदा देगा लेकिन इसने वर्षों तक संस्था के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर चुके कर्मियों को सड़क पर ला दिया है. किसी ने १० साल तो किसी ने १५ साल संस्था की बेहतरी के लिए काम किया. संस्था को एक पहचान दिलाई. अब संस्था मार्केट में अच्छा करने लगी और तरक्की के कीर्तिमान बनाने लगी तब महंगे एडिटर को आगे रखकर कम तनख्वाह वालों को घर का रास्ता दिखाना कितना जायज है.
न्यूज18 गुजरात के संपादक ब्रजेश कुमार सिंह बड़े उत्साह से मोजो टेक्निक से चैनल आपरेट करा रहे हैं. इनकी वजह से बहुतों की नौकरी चली गई. यही हाल दूसरे रीजनल चैनलों का भी है. ब्रजेश कुमार सिंह जैसे तो यहां वहां चैनल बदलते रहते हैं और पोलिटिकल जोर जुगाड़ से लाखों की सेलरी वाली नौकरी पाते छोड़ते रहते हैं. लेकिन जो लोग कम सेलरी में एक ही संस्था में हैं और जिनका कोई जुगाड़ नहीं है, उनका सड़क पर आना उनके लिए सब कुछ नष्ट हो जाने जैसा है.
news18 में आने के बाद ब्रजेश ने अपनी नौकरी बचाने के लिए बार बार दूसरों की नौकरियां खाते रहे. जहां पहले 267 का स्टाफ काम किया करता था वहीं बार बार स्टाफ कम करके संस्था में 60 लोगों का स्टाफ बचा है. पहले लोग सुकून से साढ़े आठ घंटे की नौकरी करके अपने परिवार को समय दे पाते थे लेकिन स्टाफ ना होने के कारण अब लोग 12-15 घंटे काम करने को मजबूर हैं. काम के तनाव में कितने ही लोग कई बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. पर उनको क्या. उनका काम होना चाहिए. चैनल को फैक्ट्री की तरह चलाया जा रहा है. कलम की ताकत रखने वाले आज खुद अपने नसीब का रोना रो रहे हैं.
संस्था में काम करने वाले बस यही बातें करते देखे जाते हैं कि अब उनका क्या होगा. आज नहीं तो कल उनकी बारी भी आने वाली है. सभी एक अजीब तनाव में हैं. कइयों ने तो चाय की दुकान खोलने तक की तैयारी कर रखी है.
नाम बड़े दर्शन खोटे वाली कहावत यहां सही साबित हो रही है. कहने को रिलायंस के स्टाफ हैं लेकिन सुविधा के नाम पे ज़ीरो.
news18 डूबती हुई नाव है, ऐसा प्रतीत हो रहा है. समाजशास्त्र के स्टूडेंट रहे ब्रजेश कुमार सिंह को मैनेजमेंट का काम करते देख सभी अचंभा में हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि ये रिलायंस की नैया डुबा कर ही मानेंगे.
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.