प्रिय मित्रों
आज मन की एक पीड़ा आप सबसे सार्वजनिक करना चाहता हूं क्योंकि कोरोना महामारी के कारण मैंने अखबार लेना बंद कर दिया है। अब कंप्यूटर या फोन पर ई अखबार पढ़ लेता हूं। भविष्य में भी अब शायद कभी अखबार नहीं खरीदूंगा। जिस अखबार के बिना जीवन सूना लगता था, जो मेरा ओढ़ना, बिछौना, खाना और पहनना था, जो लगभग 30 सालों तक मेरी रोजी- रोटी थी। जीवन में अखबार एक सांस की तरह रहा है। उसे छूने से अब मुक्त हो गया। आप कह सकते हैं कि मैं असमय में ये सब बातें क्यों कर रहा हूं। अभी तो कोरोना से लड़ना है। लेकिन मन में टीस उठती है, तो लिखना ही पड़ता है।
असल पीड़ा यह है कि यदि मेरे जैसे लोग अखबार लेना बंद कर देंगे तो अखबारों की स्थिति खराब होगी तो एक समय आ सकता है कि वहां कर्मचारियों की छंटनी शुरू हो जाए। मैं तो अखबार से रिटायर होकर फ्री लांसिंग कर रहा हूं। लेकिन जो साथी अभी अखबारों में काम कर रहे हैं, उन पर आने वाले दिनों में संकट आ सकता है। उनके बच्चे अभी पढ़ रहे हैं, परिवार की ढेर सारी जिम्मेदारियां होंगी। उनका क्या होगा? भले सभी लोग नहीं, लेकिन कुछ लोग तो आसन्न मंदी से प्रभावित होंगे ही। सरकार सबके बारे में सोच रही है, लेकिन ऐसे पत्रकारों के बारे में भी सोचे। पत्रकार ही ऐसा प्राणी होता है जो सबका दुख- दर्द लिखता है, लेकिन अपना दर्द पीता रहता है। बाजार में उसके लिए सामान सस्ता नहीं हो जाता, बच्चों की फीस कम नहीं हो जाती, चिकित्सा का खर्च कम नहीं हो जाता।
यदि सरकार फिलहाल कुछ करने में असमर्थ है, तो देश के बड़े औद्योगिक घराने इस पर सोचें। इन पत्रकारों के लिए कुछ करें। वे साइलेंट वर्कर हैं, रोज अपने दफ्तर जा रहे हैं, खतरा मोल कर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उनके घर के लोग रोज भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे निरोगी बने रहें। मैं जानता हूं पत्रकारों की पीड़ा के बारे में कोई नहीं बोलेगा। कुछ लोग तो उल्टे- सीधे आरोप लगा देंगे। होंगे कुछ पत्रकार जो दुकानदारी चला रहे होंगे, लेकिन भारी संख्या में पत्रकार संघर्ष कर रहे हैं। वास्तविकता मैं जानता हूं। उनके बारे में सोचे जाने की जरूरत है। इन मूक, ईमानदार योद्धाओं के लिए कुछ करने की जरूरत है।
मैं तो आठ साल पहले सन 2012 में जनसत्ता (इंडियन एक्सप्रेस समूह) से रिटायर हुआ था। आपमें से जो संवेदनशील लोग होंगे, उन्हें इस पर सोचना और लिखना चाहिए। जो पत्रकार रिटायर हो चुके हैं, उन्हें कितनी पेंशन मिलती है, किसी ने पूछा है? पूछ कर देखिए तो? बहुत सी चीजेंं ढंकी- छुपी हैं। इसी फेस बुक पर सारे मुखर पत्रकार न जाने क्या- क्या बोलते लिखते रहते हैं। इस मुद्दे पर कोई क्यों नहीं बोलता और लिखता? जो कथित क्रांतिकारी पत्रकार हैं, वे इस पर चुप क्यों हैं?
लेखक विनय बिहारी सिंह कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार हैं. संपर्क- [email protected]
Shambhu Choudhary
April 12, 2020 at 6:21 pm
Binay sir, nirasha ki jhalak appme kabhi nai deekhi.. es lekh se thoura mayush hun.
Aap jaise varishth patrakar ki soch print media ke liye khatre ki ghanti hai..
Lekh ander ki pidha ko tou darshti hai tou samaj ke ghatnakram ko bhi jhakjhor rahi hai..
Pranam,
Apka shishya
Shambhu
Bhavi menaria
April 13, 2020 at 11:16 pm
Koi nahi bolega sir. 12 saal ek nami girami akhbaar me nokri karne ke baad majithia veg board case me mujhe ek jhatke me out kar diya gaya bade bade pattalkaro ke honth si gae.