प्रियांक-
एनडीटीवी की पूर्व न्यूज़ एंकर निधि राजदान ने 21 वर्षों तक एनडीटीवी के साथ काम करने के बाद उसे लात मार दी थी, क्योंकि उन्हें हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता के एसोसिएट प्रोफेसर की नौकरी ऑफर हुयी थी पिछले जून में!
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से उन्हें बताया गया कि सितम्बर 2020 में उनकी जॉइनिंग है, सो वह दाँत-मुंह पेजा कर तैयार रहें!
तब तक कलमुहाँ ‘कोरोना’ आ गया तो उनकी जॉइनिंग 2021 तक के लिए टल गयी। बात जेन्युइन थी और तार्किक भी कि भाई, अब कोरोना में तो सब कुछ ठप्प हो ही गया है।
इस बीच जब निधि राजदान ने नौकरी छूटने के बाद घोर खलिहरपने में हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के टॉप अधिकारियों से कॉन्टैक्ट किया कि अरे भैया, कब तक बुलाओगे मुझे, विलम्ब हो रहा काफी और जॉब भी छोड़ दी है ये फालतू एनडीटीवी वालों की। काफी उत्सुक हूँ आपके यहाँ के बच्चों को ‘गिरती हुयी पत्रकारिता के घटिया गुर’ सिखाने को!
तब हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी वालों का माथा ठनका कि ये एनडीटीवी वालों को वे लोग कब से अपने यहाँ एसोसिएट प्रोफेसरी के लिए बुलाने लगे, जिनका ज्ञान व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बराबर भी नहीं!
काफी खोजबीन के बाद ज्ञात हुआ कि दरअसल यह हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी वालों ने उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर की जॉब ऑफर नहीं की थी, बल्कि ये ‘हड़बड़ यूनिवर्सिटी’ वालों ने उन्हें जॉब की पेशकश की थी और इसलिए हड़बड़ी में आकर उन्होंने कोरोना काल में अपनी 21 वर्षों की जमी-जमाई नौकरी को लालच में आकर बिना आगा-पीछा सोचे-समझे लात मार दी!
इसे कहते हैं- कोरोना की कंगाली में आटा गीला करना। एक कहावत और है- “चौबे गये छब्बे बनने, बन कर दुबे आये!”
चौबे जी और दुबे जी लोगों से माफी के साथ 🙂
अरे मैडम, ‘हॉर्वर्ड और हड़बड़’ में अंतर होता है, बूझना था न। वरना हमरे जैसा किसी बिहारी बुड़बक से पूछ लेतीं, तो ई हड़बड़ी में गड़बड़ी ना नूँ करतीं! अब से कहलाइयेगा “हड़बड़ कॉलेज ऑफ गड़बड़ स्टडीज की प्रोफेसर”!