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उत्तर प्रदेश

यूपी निकाय चुनाव जुलाई में संभावित, बीजेपी दिल्ली की तर्ज पर उतारेगी नये चेहरे

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की तस्वीर इस बार बदली-बदली नजर आ सकती है। जब से बीजेपी में मोदी युग की शुरूआत हुई है, तब से बीजेपी हर चुनाव में सौ फीसदी ताकत झोंक रही है। आम और विधान सभा चुनाव की तरह ही  पंचायत, नगर निगम अथवा किसी तरह के उप-चुनावों मे भी आलाकमान जरा भी कोताही नहीं छोडता है। पश्चिमी बंगाल, केरल, कर्नाटक जैसे रास्यों मे भी यह सोच कर कोताही नहीं बरती जाती है कि यहां बीजेपी मजबूत नहीं है।

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अजय कुमार, लखनऊ

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उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की तस्वीर इस बार बदली-बदली नजर आ सकती है। जब से बीजेपी में मोदी युग की शुरूआत हुई है, तब से बीजेपी हर चुनाव में सौ फीसदी ताकत झोंक रही है। आम और विधान सभा चुनाव की तरह ही  पंचायत, नगर निगम अथवा किसी तरह के उप-चुनावों मे भी आलाकमान जरा भी कोताही नहीं छोडता है। पश्चिमी बंगाल, केरल, कर्नाटक जैसे रास्यों मे भी यह सोच कर कोताही नहीं बरती जाती है कि यहां बीजेपी मजबूत नहीं है।

इसका प्रभाव यह होता है पार्टी को जीत भले न मिले लेकिन पहचान जरूर मिल जाती है। पार्टी द्वारा जीत के लिये पारम्परिक रास्ते से हटकर नये-नये प्रयोग किये जाते हैं। इसका फायदा भी मिलता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बिहार और दिल्ली विधान सभा के चुनावों को छोड़कर कहीं भी किसी भी स्तर के चुनाव में बीजेपी को हार का मुंह नहीं देखना पड़ा, बल्कि उसने उम्मीद से भी बेहतर प्रदर्शन किया। असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर जैसे राज्यों में बीजेपी की सरकार बनना इस बात का प्रमाण है कि बीजेपी का विस्तार हो रहा है।

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हाल ही में, दिल्ली महानगर निगम (एमसीडी) चुनाव में बीजेपी के रणनीतिकारों ने जीत का जो धमाल किया उसके पीछे उनकी रणनीति ही थी। आलाकमान जानता था कि उसकी पार्टी दस वर्षो से एमसींडी पर काबिज है इसलिये उसके खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल बना हुआ है, इस लिये पार्टी ने अपने सभी मौजूदा पार्षदों के टिकट काट कर नये प्रत्याशी मैदान में उतारने का बड़ा जोखिम मोल लिया। वेसे, इस तरह का प्रयोग बीजेपी पूर्व में गुजरात में कर चुकी थी और उसका उसे फायदा भी मिला था,लेकिन चुनावी बिसात कहीं भी एक जैसेी नहीं बिछी होती है, इसा लिये दिल्ली में जोखिम तो था ही। जोखिम उठाया तो फायदा भी मिला। बीजेपी के सामने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पूरी तरह से बौने हो गये।

दिल्ली में मिली शानदार जीत ने बीजेपी के रणनीतिकारों के हौसलों को पंख लगा दिये। दिल्ली फतेह के बाद बीजेपी आलाकमान उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में भी यही रणनीति अपनाने जा रहा है। यहां भी उसने सभी वर्तमान सभासदों और मेयरों, नगर पालिका परिषद के अध्यक्षों के टिकट काट कर उनकी जगह नये प्रत्याशी उतारने का मन बना लिया है। इस परिर्वतन के चलते पिछले चुनाव के उम्मीदवार ही नहीं ऐसे नेताओं के परिवारीजन भी भाजपा का टिकट पाने से वंचित रहेगे। वैसे नये सिरे से आरक्षण किये जाने के बाद उम्मीदवारों का बदलना लाजिमी भी है।

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उत्तर प्रदेश में 14 नगर निगम, 202 नगर पालिका परिषद और 438 नगर पंचायतों में चुनाव के लिए भाजपा ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। यूपी में कुल 654 नगर निकायों के 11993 वार्डों के लिए जुलाई में चुनावं होने हैं। तुलनात्मक रूप से भी देखा जाये तो यूपी में भी हालात दिल्ली जैसे ही हैं। यहां भी पिछले दस वर्षों से  करीब-करीब सभी जिलों में बीजेपी का कब्जा है। जनता की नाराजगी सिर चढ़कर बोल रही है। निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है। परिसीमन की अंतिम सूची जारी की जा चुकी है। नगर निकाय चुनाव आयोग के अनुसार 2011 में तय व्यवस्था के अनुसार पहले पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित वार्डों की लिस्ट तैयार किये जाने के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित वार्डों की लिस्ट तैयार की गई है। इसके बाद ओबीसी के लिए आरक्षित वॉर्डों की लिस्ट तैयार हुई। सभी बचे हुए वॉर्ड सामान्य वर्ग में रखे गये हैं। इन सभी वर्गों में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करना अनिवार्य होगा।

सभी दल अपने-अपने चुनाव चिह्न पर लड़ेंगे
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव इस बार सभी दल अपने-अपने चुनाव चिह्न पर लड़ सकती हैं। बीजेपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी तो पहले से भी अपने सिम्बल पर चुनाव लड़ती रही है। बहुजन समाज पार्टी ने भी इस बार अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुल पाने और विधान सभा चुनाव में 19 सीटों पर सिमट जाने के बाद बसपा सुप्रीमों मायावती एक बार फिर अपनी ताकत पहचाना चाहती हैं। उधर, बीजेपी निकाय चुनाव में नये चेहरों को तो उतारेगी, लेकिन चुनावी मैदान मे ंपुराने दोस्तों के साथ ही ताल ठोंकती नजर आयेगी। बीजेपी, अपना दल (सोनेलाल) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से तालमेल करेगी। इसका खाका तैयार हो रहा है। अपना दल सोनेलाल के अध्यक्ष आशीष सिंह और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भाजपा के संगठन महामंत्री सुनील बंसल से मिल चुके हैं। संकेत मिले हैं कि जिन क्षेत्रों में इन दोनों सहयोगी दलों के विधायक और सांसद हैं, कम से कम उन क्षेत्रों में नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में इन्हें मौका मिल सकता है।

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भाजपा को नए उम्मीदवार लाने की मजबूरी होगी
2012 के निकाय चुनाव के सापेक्ष इस बार महिला, पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति तथा सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित सीटों का चक्रानुक्रम बदलेगा। इस वजह से भी भाजपा को नए उम्मीदवार लाने की मजबूरी होगी। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर ने नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में प्रभारी तैनात कर सूचनाओं का संकलन शुरू कर दिया है। इस बीच दूसरे दलों से भाजपा में आने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है,जिससे बीजेपी को ‘बल्ले-बल्ले’ नजर आ रही है। 2012 में 12 नगर निगमों के  निकाय चुनाव में भाजपा ने दस शहरो में जीत हासिल की थी। सिर्फ बरेली और इलाहाबाद में भाजपा उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा था। इलाहाबाद की महापौर अभिलाषा गुप्ता बीजेपी में  शामिल हो चुकी हैं। इस तरह वर्तमान में कुल 11 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ. दिनेश शर्मा लखनऊ का मेयर पद छोड़ चुके हैं। हाल में कई नगर पंचायतों और पालिका परिषदों के अध्यक्ष भी भाजपा में शामिल हुए हैं। बात पंचायत चुनावों की कि जाये तो 202 नगर परिषद में करीब 40 और 438 नगर पंचायतों में करीब सौ सीटों पर भाजपा का कब्जा है। चुनावों में लगातार मिल रही विजय के बाद भी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को नहीं लग रहा है कि बीजेपी का अभी स्वर्णिम काल आना बाकी है। यानी विधानसभा चुनाव की तरह ही भाजपा पंचायत और निकाय स्तर पर भी काबिज होना चाहती है। इसीलिए पार्टी पूरी ताकत से जुट गई है।

लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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