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बिहार

नीतीश ने आपा क्यों खोया?

शिवानन्द तिवारी-

नीतीश जी को इतना आपा खोते मैंने कभी नहीं देखा. आरोप उन्होंने तेजस्वी पर लगाया. लेकिन आरोप तो नीतीश जी पर ही लगता है. याद कीजिए चुनाव के समय उन्होंने तेजस्वी को क्या-क्या नहीं कहा! कहां से लाओगे 10 लाख लोगों को तनख्वाह देने का पैसा? बाप के पास से ले आओगे? जेल से ले आओगे? जाली नोट छापोगे? यह सब नीतीश जी के ही मुंह से निकला था. लेकिन तेजस्वी ने उस समय तो जवाब नहीं दिया.

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आज भी सदन के अंदर तेजस्वी का यह कहना तो बिल्कुल जायज और तार्किक है कि जब हमारा नाम सीबीआई ने चार्जशीट में दे दिया था तो आप मुझे जनता के बीच जाकर सफाई देने की सलाह दे रहे थे. लेकिन जब आप हत्या के केस में अभियुक्त बने या दूसरे की लिखी किताब अपने नाम से छपाने के अपराध में अभियुक्त बने तो अपने पद से न तो इस्तीफा दिया था और न ही जनता के बीच आपने सफाई ही दी थी. यह तो ईमानदारी नहीं है. अपने लिए एक कसौटी और अन्य के लिए दूसरी कसौटी! यह तो कहीं से नैतिक नहीं कहा जा सकता है.

चुनावी सभा में तो आप ही ने लालू यादव के बच्चों की संख्या गिनाई थी. आज मौका मिला तेजस्वी को तो उसने आप को आईना दिखा दिया और आपने अपना आपा खो दिया. दरअसल नितीश जी भीतर से कमजोर हो चुके हैं. विधानसभा में आज उनकी कमजोरी बाहर आ गई. आगे उनको अपनी कमजोरी का और एहसास होगा जब गिरिराज जी जैसे लोग मांग करेंगे कि आप भी योगी जी की तरह लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाइए. उस समय नितीश जी का चेहरा देखने लायक होगा.

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समीरात्मज मिश्रा-

बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार आज बमक गए थे. इसी झोंक में बड़ा खुलासा कर गए…..कि 2015 में तेजस्वी को डिप्टी सीएम उन्होंने बनाया था. ग़ुस्सा जल्दी शांत हो गया नहीं तो इस बार वाले डिप्टी को किसने बनाया और पुराने वाले डिप्टी को दोबारा किसने नहीं बनने दिया, यह भी बता देते.

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हां, एक बात ज़रूर है कि 2015 में तेजस्वी की पार्टी को 80 सीटें मिली थीं और नीतीश कुमार की जेडीयू को 71. अबकी बार तेजस्वी की पार्टी को एक बार फिर सबसे ज़्यादा यानी 75 और नीतीश कुमार की पार्टी को 43 सीटें मिली हैं. नीतीश की पार्टी पहले से, दूसरे और फिर तीसरे पर आ गई लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके अलावा कोई लेने को तैयार ही नहीं है. बाक़ी सबको नीतीश कुमार डिप्टी वाली कुर्सी खु़द बांटते हैं.

ख़ैर, बड़े दिल वाले हैं ही नीतीश कुमार. एक ही विधानसभा में दो-दो डिप्टी सीएम बना डाले. इच्छा जताई होती तो कुछ और लोगों का भी नंबर आ जाता. जो रह गए हों और बनना चाहते हों तो आवेदन कर भी सकते हैं. अभी तो पूरे पांच साल का कार्यकाल बचा है विधान सभा का.

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शिशिर सोनी-

पहली बार नीतीश कुमार के दांत पेट से बाहर आए। दिखाई दिये। विधानसभा में ऐसी भाषा का इस्तेमाल उन्होंने किया जो बतौर मुख्यमंत्री कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता। खिसिया वे किसी और वजह से रहे हैं। खिसियाहट किसी और पर निकाल रहे हैं। वो भी अंडभंड बोल के।

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ऐसी शैली की अपेक्षा किसी ने नहीं की होगी नीतीश बाबू से। तेजस्वी यादव सबसे बड़े राजनीतिक दल के नेता के साथ बिहार विधानसभा में विपक्षी दल के नेता भी हैं। संवैधानिक पद पर हैं। तेजस्वी कितने छोटे हैं या नीतीश कितने बड़े हैं अगर इस बहस में नहीं भी जाएं तब भी एक मुख्यमंत्री को कम से कम विधानसभा के अंदर भाषा की मर्यादा तो रखनी ही चाहिए। तेजस्वी को भी अपनी बात संसदीय मर्यादा के तहत रखनी चाहिए। परस्पर सद्भाव जरूरी है। लोकतंत्र की खूबसूरती आखिर इसी से तो है !!!

जयंत जिज्ञासु-

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नीतीश जी ने कहा कि मैंने इसके पिता को लोकदल में विधायक दल का नेता बनवाया। इस बात को खुद लालू जी अनेक बार एकनॉलेज कर चुके. लेकिन क्या एक बार भी नीतीश जी ने कहीं स्वीकार किया कि लालूजी ने उन्हें 2015 में मुख्यमंत्री बनवाया?
दरअसल, नीतीश जी अपना उपकार गिनाकर छिछालेदर करते हैं, और कृतघ्न भी हैं.

जहाँ तक तेजस्वी जी को उपमुख्यमंत्री बनाने का सवाल है, तो वह तकनीकी रूप से किन्हीं को मंत्री बनाने का विशेषाधिकार ज़रूर मुख्यमंत्री के पास होता है. पर, यह हास्यास्पद ही कहा जाएगा कि 80 विधायकों के नेता पर नीतीश जी कोई अहसान जताएं. वह तो लालू जी ने अपना पब्लिक कमिटमेंट निभाया कि राजद द्वारा ज्यादा सीट हासिल करने के बावजूद वायदे के अनुरूप नीतीश जी को मुख्यमंत्री बनवाया. साथ ही, स्पीकर का पद भी दिया.

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जबकि दुनिया जानती है कि कई शुभचिन्तकों ने यह आशंका लालू जी के सामने व्यक्त की थी कि स्पीकर का पद अपने पास रखना चाहिए, नीतीश जी को इतनी शक्ति देना ठीक नहीं. मगर, लालू जी ने सबको एक तरफ रख दिया, और कहा कि अब नीतीश भाग के कहाँ जाएंगे! हम दोनों एक हो गये हैं. जब मिले हैं, तो बिना इफ-बट के पूरे दिल से मिले हैं.

लेकिन, भरोसा नीतीश जी ने तोड़ा, और समाजहित में ठीक नहीं हुआ. उस सरकार को 5 साल चलना चाहिए था. मैं आज भी मानता हूँ कि बड़ी उम्मीदों के साथ बिहार की जनता ने महागठबंधन के पक्ष में जनादेश दिया था जिसे संजो कर रखने की ज़रूरत थी. लेकिन, नीतीश जी ने उस मैंडेट को नाली में बहा दिया.

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आज वे जहाँ हैं, वहाँ से बिहार का हित तो नहीं सध रहा. हाँ, रोज़ उन्हें ज़िल्लत ज़रूर भोगनी पड़ रही है. बीजेपी ने दो डेपुटी उनके सर पर बिठा दिया है, जिनके बीच वे कई दफे निरीह प्राणी से चिंतन की मुद्रा में बैठे नज़र आते हैं. स्पीकर भी उनके ‘मनोनुकूल’ नहीं है!

नीतीश जी, आपके “भाई समान दोस्त” व आबरू-ए-सियासत लालू जी ने 2017 में ही कहा था, “मुझको दुख है तो इसी बात का दुख है कि बीजेपी मेरे छोटे भाई को खा जाएगी, समाप्त कर देगी”. और, वही आपके साथ हुआ.

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लेकिन, शिकार होने के बाद भी आप वहीं लहूलुहान जमे हुए हैं. इसी मन:स्थिति पर मैथ्यू आर्नल्ड कहते हैं,
“Wandering between two worlds, one dead
The other powerless to be born,
With nowhere yet to rest my head
Like these, on earth I wait forlorn.”

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