सत्येंद्र पीएस-
तेजस्वी यादव द्वारा ट्विटर पर साझा की गई इस फोटो को देखकर बहुत अच्छा लगा। लालू प्रसाद जब विदेश में इलाज करा रहे थे और राजद में बवाल चल रहा था तो बड़ा अजीब लगा था।
खासकर जब यह खबर आती थी कि नीतीश कुमार फिर से भाजपा के साथ जा सकते हैं। ऐसा फील हो रहा था कि ऐसा कुर्सी चिपकू भयानक इंसान शायद दुनिया में कोई नहीं होगा। क्योंकि मुझे लगता था कि लालू ने अपने बच्चों को नीतीश के हवाले कर दिया है कि अब तुम्हीं इनके गार्जियन हो। खैर नीतीश भाजपा के साथ नहीं गए।
यह नीतीश की बड़ी उपलब्धि है कि इतनी मोदी आंधी में भी उन्होंने बिहार में भाजपा का विजय रथ रोक लिया, जबकि उन्हें यह पता है कि बिहार का मैक्सिमम अपर कास्ट हिन्दू न तो नीतीश को पसन्द करता है न लालू को। वह भाजपा की तरफ़ टकटकी लगाए देख रहा है।
अगर ऐसे में नीतीश का वोट बैंक भाजपा खींचने में कामयाब हो जाती तो राजद उसी तरह हवा में उड़ जाती, जैसे यूपी में सपा उड़ चुकी है। और जदयू का भी वही हाल होता, जो बसपा का हो चुका है। सबसे अच्छी बात यह है कि जदयू राजद का वोटर एक दूसरे से उस तरह नफरत नहीं करता, जैसी घृणा यूपी में दलितों पिछड़ों के मन मे एक दूसरे के खिलाफ है!
नीतीश की अपनी पार्टी कुछ है नहीं। ऐसे में अगर वह तेजस्वी को अपना शिष्य मान लेते हैं तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। नीतीश के कुशवाहा जी, मुख्यमंत्री जी और आईएएस अधिकारी नेता जी तो जा चुके हैं। ऐसे में उन्हें तेजस्वी को ही इस तरह डेवलप करना चाहिए कि वह न भागे।