नोएडा में दो दिन रहने के बाद दो चीजें बहुत साफ साफ महसूस हुईं. पहली तो ये कि लापरवाही का आलम यही रहा तो कोरोना को घर घर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता. खाने-पीने की चीजों के लिए यहां ठेले वाले भइया से लेकर डिलीवरी ब्वाय तक पर आश्रित रहना पड़ता है.
आज सब्जी लेने गया. किराने की दुकान पर भी पहुंचा. कहीं सैनिटाइजर का यूज होते नहीं देखा. मास्क बस केवल दिखावे के लिए ठोढ़ी के नीचे लटक रहा था. जोमैटे, लिसियस से लेकर ढेर सारे कच्चा-पक्का वेज-नानवेज पहुंचाने वाली कंपनियों के लड़के लगातार मूव कर रहे थे, आर्डर डिलीवर कर रहे थे. लोग प्लास्टिक के कई कई थैलों में सब्जियां खरीदकर अपने अपने घरों की तरफ चले जा रहे थे.
मेन गेट पर मौजूद ढेर सारे गार्ड्स भी अब बेतकल्लुफ हो गए हैं. आने जाने वालों का कम से कम हाथ सैनिटाइज करने की आदत छोड़ चुके हैं. शहर में सन्नाटा है, बैरिकेडिंग है पर एलर्टनेस नहीं है. भीड़ ज्यादा होने के कारण डिमांड ज्यादा है और सब तक सप्लाई पहुंचाने के दबाव में मास्क व सैनिटाइजेशन छूट जा रहा है.
इस पूरी कड़ी में अगर कोई भी कोरोना संक्रमित हुआ तो वह सैकड़ों लोगों को बीमार करेगा. अगर आप अब तक बीमार नहीं हुए हैं, कोरोना संक्रमित नहीं हुए हैं तो ये आपका एहतियात है, थोड़ा-सा भाग्य है, और लॉकडाउन के चलते ज्यादा वक्त घर में बने रहने की आदत है.
यहां अगर लॉकडाउन खत्म हो गया, जिसे जल्द ही होना है, तो संक्रमण की स्पीड बहुत ज्यादा होगी. यहां के मुकाबले मैं गाजीपुर में ज्यादा सेफ फील कर रहा था. गांव में रहता तो वहां अन्न से लेकर सब्जी तक अपने खेत की होती.
गाजीपुर शहर में होता तो वहां या तो गंगा में नहा रहा होता या अपने आश्रम में अकेले कुत्तों के बच्चों के संग किलोल कर रहा होता. खाने के लिए अन्न गांव से ही स्कूटी में रखकर ले आता. सब्जियां गंगा किनारे वाले खेतों में थोक भाव में उगाई जाती हैं. उसी में से आठ दस नेनुआ, पंद्रह बीस परोरा डेली तोड़ लाते.
नोएडा जैसी जगहें भुतहा फील दे रहीं, लॉक डाउन में. जैसे कुछ बड़ा हादसा हो गया हो या जैसे कुछ बहुत बड़ा होने वाला हो, ऐसा महसूस होता है सड़क पर चलते हुए. मास्क लगाए लोगों को ध्यान से देखने पर वे बचपन में पढ़े गए चाचा चौधरी वाले कामिक्स के उस गड़बड़ पात्र सरीखे दिखते जिसके मुंह पर मास्क बंधा होता और कुछ बुरे काम को अंजाम देने की गंभीर प्लानिंग कर रहे होते हैं.
वहां तो चाचा चौधरी और साबू उनके खतरनाक मंसूबे हर बार नाकाम कर देते पर दुर्भाग्य ये कि यहां हमारी असल जिंदगी में कोई चाचा चौधरी और साबू नहीं है. सबको खुद ही मास्क वाले बेवकूफ चोर की जगह मास्क वाला समझदार चौधरी बनना होगा वरना आने वाले दिन बेहद मुश्किल भरे होने वाले हैं.
भड़ास एडिटर यशवंत की एफबी वॉल से.
गाजीपुर प्रवास के कुछ आडियो-वीडियोज….