Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

मीडिया में उत्तर भारतीयों का कब्जा है!

अमिता नीरव-

पीजी में हमारी क्लास में आंध्र से एक लड़के ने एडमिशन लिया था। पूरी क्लास में एक दो कॉन्वेंट में स्कूलिंग किए लड़कों के अलावा सारे स्टूडेंट्स खांटी हिंदी वाले थे। तो उन दो लड़कों को छोड़कर बाकी स्टूडेंट्स के लिए एक-दो अंग्रेजी से रटे-रटाए सेंटेंस के बाद संवाद संभव नहीं हो पाया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एकाध हफ्ते उस लड़के ने भी कोशिश की, लेकिन जल्दी ही उसे समझ आ गया कि यदि वह जितनी टूटी-फूटी हिंदी जानता है उसे काम में नहीं लिया तो यहाँ उसका गुजारा मुश्किल हो जाएगा। वह बाकियों से कटकर रह जाएगा। इसलिए हफ्ते भर बाद ही वह टूटी-फूटी हिंदी में संवाद करने लगा।

थोड़ा अटपटा लगा कि हफ्ते भर पहले जिसे जरा भी हिंदी नहीं आती थी, अब वह हिंदी के ठीक-ठाक सेंटेंस बोलने लग गया है। गुस्सा भी आया कि इन साउथ इंडियंस को हिंदी से कितनी नफरत है आते हुए भी वे हिंदी बोलना पसंद नहीं करते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहुत साल पहले मणिरत्नम के निर्देशन में शाहरूख-मनीषा की एक फिल्म आई थी दिल से…। उत्तर-पूर्व के आतंकवाद की पृष्ठभूमि पर बनी इस प्रेम कहानी में मनीषा कोईराला के एक डायलॉग ने जैसे कई सारे उलझे धागों को सुलझाकर उन सबके सिरे हाथ में दे दिए।

शब्दशः डायलॉग तो याद नहीं, लेकिन वह कहती है कि, चूँकि हमारे यहाँ से कम सांसद होते हैं, तो हमारे लोगों की समस्याएँ आप तक पहुँचती ही नहीं है। मीडिया को भी इससे कोई लेना-देना नहीं होता है। पूरी फिल्म में सिर्फ इसी डायलॉग ने उत्तरपूर्व के असंतोष को जैसे सामने ला दिया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

2017 में यूनाइटेड नगा काउंसिल द्वारा मणिपुर का इकनॉमिक ब्लॉकेड किया था। एक सौ तीस दिन चले इस ब्लॉकेड के दौर में वहाँ महँगाई का बुरा हाल हो गया। पूरे देश में जो कुकिंग गैस छः-सात सौ रुपए में मिल रही थी, मणिपुर के लोगों को दो से ढाई हजार में मिल रही थी।

मगर हमारे मेन स्ट्रीम मीडिया ने उसे सिर्फ एक खबर से ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी। यदि ऐसा उत्तर भारत के किसी राज्य में हुआ होता तो एक सौ तीस दिन तो छोड़िए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने तेरह दिन में पूरे देश को आंदोलित कर दिया होता। क्योंकि मीडिया में उत्तर भारतीयों का कब्जा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जब पहली बार सुना था कि दक्षिण भारत में हिंदी का खासा विरोध है। हिंदी के विरोध में अनशन करते हुए एक आंदोलनकारी की मौत तक हो चुकी है। तब लगा था कि दक्षिण भारतीयों को हिंदी से ऐसी क्या दिक्कत है? वे अंग्रेजी बोल लेंगे, अंग्रेजी सीख लेंगे, बस हिंदी से ही दिक्कत है।

राजनीति अपनी जगह थी, लेकिन एक किस्म की असुरक्षा भी रही क्योंकि भारत की केंद्रीय राजनीति में उत्तर भारतीयों और थोड़ा बहुत पश्चिम भारतीयों का दखल है। इसके अलावा दक्षिण, पूर्व औऱ उत्तर पूर्व हमारी केंद्रीय राजनीति में नदारद जैसा ही है। ऐसे में उत्तर भारतीयों की भाषा साउथ के लोगों को डराएगी ही।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुछ वक्त पहले एक मुस्लिम मित्र ने शिकायत की थी कि, ‘मुसलमान आपके धर्म, आपके देवी-देवता, हिंदुओं की पूजा-पद्धति, प्रचलित पौराणिक कथाएँ सब जानते हैं। आप लोग तो मिलाद उन-नबी, इद उल-फित्र औऱ ईद उल-अजहा में फर्क भी नहीं जानते हैं!’, शर्म आई थी। लगा कि शिकायत गलत भी नहीं है।

हम सबने बचपन में निबंध में रटा था कि दीपावली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। पूरे देश में दीपावली का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। चूँकि स्कूल की किताब में ऐसा लिखा है तो सही ही होगा। बाद में जाना कि मोटे तौर पर दीपावली उत्तर और पश्चिम में मनाया जाने वाला त्योहार है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दो-तीन बार दक्षिण भारत की यात्रा के बाद जाना कि ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ मुसलमानों के बारे में नहीं जानते हैं। हम असल में दक्षिण भारत के बारे में भी नहीं जानते हैं और उत्तर पूर्व के बारे में तो हम बिल्कुल भी नहीं जानते हैं। हमें सिर्फ उन राज्यों की राजधानियों औऱ भाषा के अलावा और कुछ पता नहीं है।

उत्तर भारतीय संस्कृति से बुरी तरह प्रभावित हमारी चेतना को तब ठेस लगती है जब हमें पता चलता हैं कि जिस बली को हम असुर कहते हैं, केरल में उसी राजा बली की पूजा की जाती है। हम दुर्गा के महिषासुर संहार को तो स्वीकारते हैं, लेकिन हमें यह ग्राह्य नहीं होता है कि इसी देश में कोई महिषासुर की पूजा भी कर सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हमें लगता है कि राम-कृष्ण-शिव यही हिंदुओं के आराध्य हैं। पूरे देश में दुर्गा ही शक्ति का प्रतीक है। जब पता चलता है कि बंगाल में दीपावली पर लक्ष्मी नहीं काली की पूजा होती है तो हमें पचता नहीं है। उत्तर में गणपति की पूजा होती है और तमिल लोग मुरुगन के रूप में कार्तिकेय की पूजा करते हैं।

हम नहीं जानते हैं कि अयप्पा कौन हैं औऱ वेंकटेश कौन…? दक्षिण में भी हिंदू ही रहते हैं। मगर दिक्कत यह है कि हमारे लिए हिंदू तो वही है जो राम को, कृष्ण को या शिव को माने। दुर्गा की पूजा करे। अब ये तो न जाने कौन से वेंकटेश और अयप्पा की पूजा करते हैं। काली को देवी मानते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जब हम इस शहर में आए थे तो एक चीज बहुत शिद्दत से महसूस की थी कि इंदौर वालों के लिए इंदौर से बाहर न तो दुनिया है और न ही लोग। ठीक यही बात उत्तर भारतीयों के साथ है। ये इतने आत्ममुग्ध हैं कि जो कुछ वो करते हैं, जिन चीजों से उनका संबंध है बस वही दुनिया में एग्जिस्ट करती है।

उनकी जानकारी से अलग, उनकी परंपरा, समझ, दर्शन, पद्धति से अलग दुनिया एग्जिस्ट ही नहीं करती है। हमने बचपन से रटा है कि भारत में अनेकता में एकता है। मगर हमने अनेकता में एकता के मर्म को कभी समझा ही नहीं। यह हमारे लिए बस एक नारा ही रहा। क्यों समझें, हमारे हाथ में सत्ता जो है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यही बहुसंख्यकवाद है। दुर्भाग्य से हमने इसे लोकतंत्र समझ लिया है। यदि यह लोकतंत्र है तो फिर इस व्यवस्था में विविधता सर्वाइव नहीं कर पाएगी। कायदे से ‘हम’ का मतलब भारतीय होना चाहिए, लेकिन हमेशा से ‘हम’ का मतलब उत्तर भारतीय रहा है और अब ये ज्यादा मुखर हो गया है।

हम रंग के आधार पर दक्षिण भारतीयों को मकालू और फीचर्स के आधार पर उत्तरपूर्व के लोगों को चिंकी कहकर चिढ़ाते हैं। हम सपने तो अखंड भारत के देखते हैं, लेकिन मुसलमान औऱ ईसाइयों को तो दूर हम तो उन हिंदुओं को भी स्वीकार नहीं कर पाते हैं, जो हमारी तरह नहीं है। ऐसे ही भारत पर हम गर्व करते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

विविधता के लिए बहुसंख्यकवाद बड़ा खतरा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement