‘पाखण्ड का हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं है। हमने अपने देश की परिस्थिति और इतिहास का गहरा अध्ययन किया है। यहां की जन आंकाक्षाओं को हम खूब समझते है।’ भगतसिंह
भगतसिंह को अपने समय ने गढ़ा था। मुल्क में उस वक्त के हालात उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन तक खींच ले गए। ये बात सोलह आने सच है, उन्होनें एक इंकलाबी जिदंगी को जीते हुए आजादी के लिए भेड़ चाल से चल रहे आंदोलनों के दरवाजों पर इंकलाब की दस्तक दी, कहा हमारी ये लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक शोषण पर टिकी व्यवस्था का अंत नहीं हो जाता बेशक इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमे लूटने वाले गोरे अंग्रेज है, या विषुद्ध भारतीय। इंकलाब की इस एक सदा ने न सिर्फ आजादी के लिए चल आंदोलन के चेहरे को बदला बल्कि भविष्य के लिये हमे आगाह भी किया कि वक्त कोई भी हो आजादी को बचाने के लिए संघर्ष को जारी रखकर ही आजादी को बचाया रखा जा सकता है।
भगत सिंह की जेल डायरी के पन्ने दर पन्नों से केवल उनके बारे में नहीं पता चलता। और न ही उन्होनें खुद के गुण-गाण के लिए अपनी आपबीती से कागज को काला किया। जेल डायरी में लिखे उनके विचार क्रान्ति का खाका है, एक युगदृष्टा का शोषण विहीन भारत बनाने का दस्तावेज है। भगत सिंह को अपना बड़ा भाई साथी या हमसफर इनमें से जो चाहे मान ले उनका आह्वान है, कि चले चलो कि वो मंजिल अभी आयी नहीं। एक बार आप उन्हें अपनी रोजर्मरा की जिदंगी में जगह दे तो सही देखिएगा आप के सपनों की दहलीज पर वो आपको कहते हुए मिलेंगे … यार जिदंगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कांधे पर तो सिर्फ जनाजा उठता है। या फिर अपनी मुश्किलों की घड़ियों में उन्हें याद किजिए वो हंसते हुए कहेंगे दुःख, तकलीफ तो जिदंगी का हिस्सा है, हमें चुनौतियों से भागना नहीं उनका मुकाबला करना चाहिए। अंधी श्रद्धा या फिर दिन विषेश पर चंद नारे उछाल कर उन तक नहीं पहुंचा जा सकता।
उनके क्रांति का मनोविज्ञान युवा मन को बखूबी समझता है। एक जगह वो लिखते है… समाज पर घुन की तरह जीने वाले लोग अपनी सनक पूरी करने के लिए करोड़ो रूपये पानी की तरह बहा रहे है। यह भंयकर विषमताएं और विकास के अवसरों की कृत्रिम समानताएं समाज को अराजकता की ओर ले जा रही हैं।… वर्तमान सामजिक व्यवस्था एक ज्वालामुखी के मुख पर बैठी हुई आनन्द मना रही है…. सभ्यता का यह प्रासाद यदि वक्त रहते संभाला न गया तो शीघ्र ही चरमरा कर बैठ जायेगा।
देश को एक आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। और जो लोग इस बात को महसूस कर रहे हैं उनका कर्तव्य है कि समाजवादी सि़द्धान्तों पर समाज का पुनर्निमाण करें। जब तक यह नहीं किया जाता और मनुष्य द्वारा मनुष्य और राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण जो साम्राज्यशाही के नाम से विख्यात है, समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक मानवता को उसके क्लेशों से छुटकारा मिलना असम्भव है। क्या शोषण का चेहरा आज भी मौजूद नहीं है?
मजहब, जाति, भाषा, अपने-पराये के नाम पर बंट कर लड़ रहे समाज को भगत सिंह एक बात और सिखा जाते है। जेल में कारावास भोग रहे सोहन सिंह भाकना ने भगत सिंह से जब पूछा क्या बात है भगत तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुमसे मिलने नहीं आता तो भगत सिंह ने कहा था, बाबा जी असली रिश्ता तो खून का होता है। मेरे रिश्तेदार तो वो है जिनके जैसा खून मेरी रगो में बहता है। शहीद खुदीराम बोस, करतार सिंह सराभा मेरे रिश्तेदार थे। दूसरा रिश्ता आप जैसे लोगो के साथ है, जिनसे मैने क्रांतिपथ पर चलने की प्रेरणा ली। और तीसरे रिश्तेदार वो होंगे जो अभी जन्म लेंगे…. क्रांतिपथ को अपने खून से सींचकर अपने लक्ष्य तक पहुंचाऐंगे इसके अलावा और कोई रिश्तेदार हमारा हो नहीं सकता।
भगत सिंह का तीसरे रिश्तेदार वो है, जो शोषण विहीन समाज का सपना देखते है। जिन्हें अन्याय पल भर के लिए बर्दाश् नहीं। अपने समय को जीते हुए हम किसी बड़े परिर्वतन की जरूरत शिद्दत से महसूस तो कर रहे है, शोर और नारो की क्षणिक उत्तेजना के बीच भगतसिंह तक नहीं पहुंचा जा सकता। अवसरवाद और मतलबपरस्त राजनीति के उलेट-फेर में फंसे हम लोगों के लिए भगत सिंह के विचार रोडमैप की तरह है। इंकलाब से परिर्वतन तक पहुंचने के लिए पहले भगत सिंह को समझना होगा, सीखना होगा।
हां….भगत सिंह ये तुमसे सीखने का वक्त ही तो है….
भाष्कर गुहा नियोगी
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