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राजस्थान

‘वन बार वन वोट’ के हाईकोर्ट आदेश का नहीं हुआ पालन

: 9 नवंबर तक राज्य के सभी वकीलों को देना था हलफनामा : अजमेर। वकीलों के कल्याण और बार एसोसिएशनों के चुनाव सुधार की कवायद जल्द पूरी होती नजर नहीं आ रही है। राजस्थान हाईकोर्ट चाहता है कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत राजस्थान में भी जल्द से जल्द ‘वन बार वन वोट’ की नीति लागू की जाए। हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को एक जनहित याचिका का फैसला करते हुए यह निर्देश भी दिए थे कि राजस्थान के सारे वकील ‘वन बार वन वोट’ की नीति का एक हलफनामा चार सप्ताह के भीतर अपनी बार एसोसिएशनों में दाखिल करें। 9 नवंबर को चार सप्ताह की यह अवधि पूरी हो रही है और अभी तक ऐसा कोई हलफनामा नहीं दिया गया है।

<p>: <strong>9 नवंबर तक राज्य के सभी वकीलों को देना था हलफनामा</strong> : अजमेर। वकीलों के कल्याण और बार एसोसिएशनों के चुनाव सुधार की कवायद जल्द पूरी होती नजर नहीं आ रही है। राजस्थान हाईकोर्ट चाहता है कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत राजस्थान में भी जल्द से जल्द 'वन बार वन वोट' की नीति लागू की जाए। हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को एक जनहित याचिका का फैसला करते हुए यह निर्देश भी दिए थे कि राजस्थान के सारे वकील 'वन बार वन वोट' की नीति का एक हलफनामा चार सप्ताह के भीतर अपनी बार एसोसिएशनों में दाखिल करें। 9 नवंबर को चार सप्ताह की यह अवधि पूरी हो रही है और अभी तक ऐसा कोई हलफनामा नहीं दिया गया है।</p>

: 9 नवंबर तक राज्य के सभी वकीलों को देना था हलफनामा : अजमेर। वकीलों के कल्याण और बार एसोसिएशनों के चुनाव सुधार की कवायद जल्द पूरी होती नजर नहीं आ रही है। राजस्थान हाईकोर्ट चाहता है कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत राजस्थान में भी जल्द से जल्द ‘वन बार वन वोट’ की नीति लागू की जाए। हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को एक जनहित याचिका का फैसला करते हुए यह निर्देश भी दिए थे कि राजस्थान के सारे वकील ‘वन बार वन वोट’ की नीति का एक हलफनामा चार सप्ताह के भीतर अपनी बार एसोसिएशनों में दाखिल करें। 9 नवंबर को चार सप्ताह की यह अवधि पूरी हो रही है और अभी तक ऐसा कोई हलफनामा नहीं दिया गया है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को एक जनहित याचिका ‘पूनमचंद भंडारी बनाम राजस्थान हाईकोर्ट’ में यह आदेश दिया था कि राजस्थान के सभी वकील किसी भी एक बार एसोसिएशन के सदस्य रहें और वहीं अपना वोट दें। वकील भी वे हों जो वास्तविक और नियमित रूप से अदालतों में वकालत करते हों। हाईकोर्ट का मन्तव्य था कि वकील के रूप में अपना रजिस्टेªशन करवाने के बाद नियमित वकालत नहीं करने और सिर्फ वोट देने के लिए कई बार एसोसिएशनों में सदस्य बनने वाले वकीलों की तादाद बढ़ती जा रही है और इससे कई विसंगतियां औेर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।

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सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर 2012 में ही एक फैसला, ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम बीडी कौशिक’ में पहले की यह व्यवस्था दे चुका है। देश के कई राज्यों में यह फैसला लागू हो चुका है। राजस्थान बार कौंसिल के फैसला लागू नहीं करने पर एक वकील पूनमचंद भंडारी ने पिछले साल एक जनहित याचिका दायर कर हाईकोर्ट से प्रार्थना की कि बार कौंसिल को निर्देश दिए जाएं कि राजस्थान में शीघ्र, ‘वन बार वन वोट’ का फैसला लागू करे, एक कमेटी बनाई जाए जो नियमित रूप से वकालत करने वाले वकीलों की पहचान कर उन्हें ही वोट देने का अधिकार दे।

हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधिपति सुनील अंबवानी और वीरेंद्र सिंह सिराधना की खंडपीठ ने 9 अक्टूबर को दिए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ही दोहराते हुए राजस्थान बार कौंसिल को राज्य में शीघ्र ‘वन बार वन वोट’ की नीति लागू करने और नियमित वकीलों को ही यह अधिकार देेने का आदेश दिया। आदेश में कहा कि हर वकील आज यानि 9 अक्टूबर से चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दे। हलफनामे में वकील को क्या कहना है वह भी फैसले में बताया गया है। आदेश के मुताबिक सभी बार एसोसिएशनों को अपने वास्तविक सदस्यों की सूची हलफनामे के साथ 10 नवंबर तक राजस्थान बार कौंसिल को भेजनी है। राजस्थान बार कौंसिल इस बात का हलफनामा हाईकोर्ट में देगी। हाईकोर्ट 17 नवंबर को इस मामले की फिर सुनवाई करेगी। राजस्थान बार कौंसिल को यह अधिकार दिया गया कि स्थानीय बार एसोसिएशनों के चुनाव की तारीख वह कभी की भी तय कर सकती है।

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क्या है ‘वन बार वन वोट’
राजस्थान बार कौंसिल से वकालत का लाइसेंस मिलने के बाद एक वकील कई बार एसोसिएशनों और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का सदस्य बन जाता है। आम तौर पर चुनाव लड़ने वाला कोई वकील अपनी जीत की खातिर ऐसे लोगों को अपनी बार का सदस्य बनवा देता है। ऐसे सदस्यों की बाद में उस बार में कोई रूचि नहीं रहती। वे कागजों में ही सदस्य बने रहते हैं। उक्त फैसलों के कारण अब एक वकील को एक ही बार एसोसिएशन का सदस्य रहना होगा और वह वहीं वोट दे सकेगा।

यह बातें होंगी हलफनामे में
हर वकील को अपने नाम, स्थानीय पते के अलावा बताना होगा कि वह अदालतों में ‘एक्टिवली एंड रेग्यूलरली’ वकालत करता है। वह जिस बार का सदस्य रहना चाहता है, उसका नाम बताना होगा ताकि वहीं वोट दे सके। उसके खिलाफ कोई गंभीर फौजदारी मुकदमा ना तो चल रहा है और ना ही वह ऐसे किसी मुकदमे में सजायाफता है। उसके खिलाफ राजस्थान बार कौंसिल में व्यावसायिक दुराचरण की कोई इन्क्वायरी नहीं चल रही है, ना ही उसे कभी दोषी ठहराया गया है। अगर उसके खिलाफ तीन महीने से ज्यादा बार एसोसिएशन का शुल्क बकाया है तो उसे सदस्यता से हटा दिया जाए। वह बार कौंसिल ऑफ इंडिया वेल्फयर फंड का सदस्य है और उसका कोई शुल्क बकाया नहीं है। वह किसी और बार एसोसिएशन के सदस्य के रूप में वहां मतदान का अधिकार नहीं रखता है आदि।

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हाईकोर्ट में दायर की रिव्यू याचिका
अजमेर जिला बार एसोसिएशन के चुनावों का समय निकल चुका है। इस बारे में जिला बार एसोसिएशन ने राजस्थान बार कौंसिल को 18 अक्टूबर को पत्र भेजकर दिशा निर्देश मांगे। राजस्थान बार कौंसिल का 3 नवंबर का पत्र 7 नवंबर को जिला बार एसोसिएशन को मिला जिसमें कहा गया कि वह राजस्थान हाईकोर्ट के 9 अक्टूबर के आदेशों की पालना करें। साथ ही बताया कि राजस्थान हाईकोर्ट में एक रिव्यू याचिका दायर की गई है, उसमें जो भी आदेश होगा आपको बता दिया जाएगा या आप स्वयं भी हाईकोर्ट से जानकारी कर सकते हैं। 

एडवोकेट एक्ट की उड़ाते हैं धज्जियां
एडवोकेट एक्ट में प्रावधान है कि कोई भी वकील किसी भी रूप में अपना प्रचार नहीं करेगा। मुकदमों या फैसलों के साथ अपना नाम छपवाएगा। वकीलों के किसी संगठन का पदाधिकारी है तो इसका उल्लेख कहीं नहीं करेगा। उसका साइनबोर्ड एक निश्चित आकार सामन्यत: दो गुणा दो फीट का काले रंग का होगा जिसमें  सफेद अक्षरों से उसका नाम लिखा जाएगा। अब रोजाना अखबारों मंे वकीलों के बधाई आदि के विज्ञापन, होर्डिंग नजर आते हैं। अखबारों में प्रेस नोट और टीवी चैनलों पर बाइट्स दी जाती है। वकील के खानदान के सभी वाहनों स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार, जीप यहां तक कि सवारी वाहन और लोडिंग टेम्पो तक पर वकीलों के लोगो के स्टीकर लगे नजर आ जाएंगे।

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अजमेर से वरिष्ठ पत्रकार और वकील राजेंद्र हाड़ा की रिपोर्ट.

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