उच्चतम न्यायालय ने ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ओपइंडिया के संपादकों और संस्थापकों के ख़िलाफ़ दायर तीन एफआईआर पर पश्चिम बंगाल पुलिस की आगे की जाँच पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने यह अंतरिम आदेश पास किया।
ओपइंडिया की संपादक नूपुर शर्मा, उसके पति वैभव शर्मा, न्यूज़ पोर्टल के संस्थापक और सीईओ राहुल रौशन और इसके हिंदी विंग के संपादक अजीत भारती ने याचिका दायर की थी। ओपइंडिया के वक़ील महेश जेठमलानी ने याचिककर्ताओं की पैरवी कारते हुए कहा कि यह एफआईआर प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए पुलिस द्वारा क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह कार्रवाई इसलिए की गई है क्योंकि पोर्टल ने पश्चिम बंगाल सरकार की आलोचना वाली खबरें प्रकाशित की हैं। खबरें अन्य मीडिया संगठनों ने भी प्रकाशित की पर पश्चिम बंगाल की पुलिस ने ओपइंडिया के संपादकों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई की है।
महेश जेठमलानी ने कहा कि प्रतिवादी नम्बर 1 पश्चिम बंगाल सरकार की मंशा इतनी गलत है कि एक ओर तो वह प्रेस की आज़ादी को कुचलना चाहती है और सीआरपीसी, 1973 की धारा 41ए के तहत नोटिस जारी कर रही है, जिसकी वजह से याचिकाकर्ताओं की जान और उनकी निजी आज़ादी को ख़तरा उत्पन्न हो गया है और बार बार आग्रह करने के बावजूद एफआईआर की प्रतियां याचिकाकर्ताओं को देने से मना कर दिया है।
यही नहीं इसे अपने आधिकारिक वेबसाइट पर भी अपलोड नहीं किया है जो कि यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है, जिसकी वजह से याचिकाकर्ता सीआरपीसी के तहत उपलब्ध राहत प्राप्त करने से वंचित हो गए हैं।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पुलिस ने उन्हें विवादित न्यूज़ को हटाने के लिए दबाव डाला। पुलिस की कार्रवाई मनमानी, कठोर और संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत प्रेस की आज़ादी के ख़िलाफ़ है।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.