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पेड न्यूज : दिल्ली क्रिकेट का ‘काला’ कैरेक्टर और बिकाऊ मीडिया की एक और करतूत

दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) की खेल समिति के चुनाव जल्द होने वाले हैं। तीस हज़ारी कोर्ट ने दो पूर्व जजों को चुनाव अधिकारी भी नियुक्त कर दिया है। चुनाव की तिकड़मबाजी अपने चरम पर है। पत्रकारों का इस्तेमाल शुरू हो चुका है। वीरवार को मेल टुडे में स्टोरी पढ़ी, तो शुक्रवार को नवभारत टाइम्स में महानगर खेल के कॉलम में एक खबर देखी।

दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) की खेल समिति के चुनाव जल्द होने वाले हैं। तीस हज़ारी कोर्ट ने दो पूर्व जजों को चुनाव अधिकारी भी नियुक्त कर दिया है। चुनाव की तिकड़मबाजी अपने चरम पर है। पत्रकारों का इस्तेमाल शुरू हो चुका है। वीरवार को मेल टुडे में स्टोरी पढ़ी, तो शुक्रवार को नवभारत टाइम्स में महानगर खेल के कॉलम में एक खबर देखी।

इन दोनों ख़बरों में एक बात साफ़ थी कि दोनों पेड न्यूज़ थीं, क्योंकि जिस तरह से इनको लिखा और पिरोया गया था उससे साफ़ झलक रहा था कि ये सिर्फ 32 साल से डीडीसीए में कुंडली मारे बैठे CK खन्ना को हीरो की तरह पेश करने की लिए छापी गई थी। नवभारत के पत्रकार तो लग रहा है कि CK जी से इतने उपकृत हैं कि उन्होंने चार लाइन की खबर में कई बार उनके नाम का उल्लेख किया है। एक बार तो “श्री खन्ना” तक लिख डाला है, जो कभी भी नवभारत में देखने को नहीं मिलता है।

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दोनों खबर में बताया जा रहा है कि कंगाली के दौर से गुजर रहे डीडीसीए की झोली में बीसीसीआई ने 1.5 करोड़ रुपए डाल दिए हैं। बताया गया है कि ये सब CK जी के प्रयासों से हो सका है। मेल टुडे में चुनाव अधिकारी बने पूर्व जजों के अपने समय में दिए ऐतिहासिक फैसलों के बारे में छापकर महिमण्डित किया गया है और बताया गया है कि CK जी ये पैसे इन्ही चुनाव अधिकरियों की पेमेंट करने के लिए लाए हैं।

नवभारत में छपी खबर कहती है कि ये सिर्फ दिल्ली के क्लबों को मिलने वाली सालाना सब्सिडी के लिए ये पैसे लाए गए हैं। दोनों ही ख़बरों में एक बात साफ़ है कि अगले महीने संभावित खेल समिति के चुनाव को प्रभावित करने में CK जी जुट चुके हैं और दोनों अखबारों ने उनसे हाथ मिला लिया है।

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लेकिन क्या CK जी और इन दोनों अख़बारों के संपादकों को ये लगता है कि यदि बीसीसीआई से पैसा नहीं आता तो चुनाव अधिकारियों और क्लब सचिवों के घर पर चूल्हे नहीं जलते। क्या क्लब सचिवों की कीमत सिर्फ सब्सिडी का पैसा ही है और इसके बदले ये इन लोगों का वोट खरीद लेंगे। जिस डीडीसीए में सालाना 32 करोड़ रुपए आते थे, वहां आज सिर्फ डेढ़ करोड़ आने के ढोल क्यों पीटे जा रहे हैं।

जिनके दम पर सीके जैसे लोग दिल्ली क्रिकेट पर राज कर रहें हैं उन क्रिकेटरों को पिछले तीन साल से प्रॉफिट मनी ही नहीं मिली है। यही हाल कोचों और सिलेक्टरों का भी है, जो करीब चार साल से ठन-ठन गोपाल बने घूम रहे हैं। आखिर उसके लिए खन्ना और अख़बारों के ये संपादक क्यों प्रयास नहीं कर रहे हैं।

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साफ है ये लोग फ्री में किसी की कटी पर मूतने तक को तैयार नहीं होते हैं। अभी देखों इस चुनाव कई रंग देखने को मिलेंगे। लेकिन एक बात ज़रूर जान लें, “कोई ऐसा सगा नहीं, जिसे CK जी ने डसा नहीं।” 

एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र एवं अटैच्ड मैटर पर आधारित

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