Vineet Kumar : इंडिया टुडे टेलीविजन की डिप्टी एडिटर प्रीति चौधरी ने अपनी खास रिपोर्ट हाफ बिहार में सतरह-अठारह साल की एक लड़की से सवाल किया- आपको लगता है कि बिहार लड़कियों के लिए सुरक्षित जगह है? जाहिर है प्रीति चौधरी का सवाल करने का अंदाज ऑथिरिटेरियन था जैसा कि आमतौर पर टीवी के पत्रकार ठसक से पूछते हैं. हालांकि प्रीति चौधरी के इस शो की विजुअल्स और कैमरा वर्क पर गौर करें तो फ्रेम दर फ्रेम रवीश कुमार के शो ये जो हमारा बिहार है से मिलाने की कोशिश है.
जिस तरह रवीश के शो में पीछे से किसी फिल्मी गाना बजता रहता है, उनकी खुद की कैब से शीशे के नीचे ड्राइवर की श्रद्धा-सामग्री के तौर पर देवी-देवता की प्लास्टिक की मूर्ति झूलती रहती है, वो सबकुछ ठीक वैसा ही. प्रीति चौधरी खुद भी रवीश का अंदाज अपनाने की नाकाम कोशिश कर रही थीं. तभी इस सवाल के बाद लड़की ने हां या न में उत्तर देने के बजाय पलटकर सवाल किया- आप जहां से आई हैं, वो महिलाओं के लिए सुरक्षित है? बिहार महिलाओं के लिए दिल्ली से ज्यादा सुरक्षित है.
उस वक्त तो प्रीति चौधरी को कुछ बोलते न बना..बस इतना कहकर आगे बढ़ गईं- थोड़ा तो ज्यादा सुरक्षित है. जब मैं इस शो को देख रहा था बल्कि इन दिनों टेलीविजन एंकर्स,रिपोर्टर्स से जिस अंदाज में लोगों को बात करते स्क्रीन पर देखता हूं, साफ झलक जाता है कि वो अब इन्हें ऑथिरिटी नहीं मानते. आमतौर पर रिपोर्टर्स उनकी समझ को अंडरस्टीमेट करने की कोशिश करते हैं, उन्हें एहसास करा देते हैं कि आप जैसी समझ रखते हैं, मामला वैसा है ही. टीवी के आंतक, फैनडम और दूसरी तरफ दर्शकों का इस आत्मविश्वास से अपनी बात रखना कम से कम जनतांत्रिक प्रक्रिया के लिए सुखद है. मुझे नहीं पता, ये बदलाव कहां से आ रहे हैं.
युवा मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से.