Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

फिलिस्तीन का सिनेमा

अजित राय-

हालांकि फिलिस्तीन में सिनेमा का इतिहास 1935 से शुरू होता है जब इब्राहिम हसन सिरहान ने सऊदी अरब के शाह इब्न सौद की यात्रा पर एक मूक वृत्तचित्र बनाया था। लेकिन यहां के सिनेमा के बारे में दुनिया भर का ध्यान तब गया जब 1996 में एलिया सुलेमान की फिल्म ‘ क्रानिकल आफ ए डिसअपियरेंस ‘ को वेनिस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कार मिला और यह फिल्म अमेरिका में प्रर्दशित हुई। इस फिल्म में उन्होंनेे न सिर्फ खुद मुख्य भूमिका निभाई, वल्कि अपने परिवार के लोगों और दूसरे गैर अभिनेता दोस्तों को शामिल किया। यह फिल्म लंबे विस्थापन के बाद घर लौटने की कहानी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अभी पिछले ही साल 72 वें कान फिल्म समारोह (2019) में एलिया सुलेमान की फिल्म ” इट मस्ट बी हेवन ” को स्पेशल मेंशन अवार्ड प्रदान किया गया है।
उन्होंने इस फिल्म में अपने शहर नाजरथ से पेरिस और न्यूयॉर्क तक का चक्कर लगाते हुए इस बात की खोज की है कि दुनिया में वह कौन सी जगह है जिसे सचमुच में हम अपना घर ( मातृभूमि) कह सकते हैं। इसमें मुख्य चरित्र उन्होंने खुद ही निभाया है जो खुद उनका ही है। वे महमूद दरवेश की कविता सुनाते हैं कि ‘ आसमान के अंत से आगे चिड़िया कहां उड़ सकतीं हैं। खुद की पहचान, राष्ट्रीयता और कहीं का होने की खोज में पता चलता है कि जन्म स्थान की यादों के सिवा अपना तो कुछ है ही नहीं।

पूरी फिल्म में एलिया सुलेमान मुश्किल से एक दो शब्द बोलते हैं पर उनकी चुप्पी हर समय हमें चेताती रहतीं हैं कि सुरक्षा के तमाम दायरों में भी हमारे जीवन की कोई गारंटी नहीं। इस समय एलिया सुलेमान के साथ माई मासरी, माइकल खलीफ, रशीद मसरावी, अली नासर सहित दर्जनों युवा फिल्मकारों की जमात सक्रिय हैं और अच्छी फिल्में बना रहे हैं जिन्हें दुनिया भर में काफी सराहा जा रहा है। मिस्र के अल गूना फिल्म फेस्टिवल के शुरू होने के बाद बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी फिल्मों को विश्व स्तर पर प्रर्दशित होने का अवसर मिलने लगा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1947 में हुए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत इजरायल और फिलिस्तीन बन तो गए पर अरबों ने इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया और गाजा पट्टी का पूरा इलाका अभी हाल तक भीषण हिंसा और विस्थापन का शिकार रहा।15 नवंबर 1988 को फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा के नेता यासर अराफात ने आजादी का ऐलान कर दिया लेकिन एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में फिलिस्तीन को 29 नवंबर 2012 को मान्यता मिल सकी। अभी भी राजधानी के रूप में यरूशलम पर उसका दावा है जिसपर इजरायल का कब्जा है। इस संघर्ष ने पिछले सत्तर सालों तक पूरी दुनिया की राजनीति को और सिनेमा को प्रभावित किया।

इब्राहिम हसन सिरहान ने 1945 में जफा में अरब फिल्म कंपनी खोली और ‘ हालीडे ईव ‘ और ‘ ए स्टार्म ऐट होम ‘ जैसी कई फिल्में बनाई। 1948 में हुई भीषण बमबारी के कारण उन्हें पलायन करना पड़ा और अगले बीस सालों तक फिलिस्तीन में फिल्म निर्माण ठप रहा। 1968-1982 के बीच फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा के संरक्षण में करीब साठ फिल्में बनी और बेरूत में एक संग्रहालय बनाया गया। फिलिस्तीनी फिल्मों का यह महत्वपूर्ण संग्रहालय अचानक 1982 में गायब हो गया जिसका कारण आज तक नहीं पता चल सका है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बगदाद में 1973 में फिलिस्तीनी फिल्मों का पहला अंतर्राष्ट्रीय फेस्टिवल काफी सफल रहा था। इसके बाद दुनिया के कई देशों में ऐसे फिल्म फेस्टिवल आयोजित किए गए। 2008 में जर्मनी के गेटे इंस्टीट्यूट के सहयोग से जेनिन शहर के शरणार्थी शिविर में ऐतिहासिक सिनेमा हाल का जीर्णोद्धार किया गया जो 1987 से ही बंद पड़ा था। इस समय गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी अतिवादी इस्लामी संगठन हमास की कठोर सेंसरशिप में फिल्में बनती है। हालांकि अधिकतर फिल्में इजरायल और यूरोपीय देशों के सहयोग से ही बन रहीं हैं। जमाने से फिलिस्तीनी फिल्मकार पड़ोसी देशों में जाकर फिल्में बनाते रहे हैं।

मिस्र में पहला सिनेमा हाल फ़्रेंच कंपनी पाथे ने काहिरा में 1906 में बनाया था। यहां एक जमाने तक सिनेमा के आविष्कारक लूमिएर बंधुओं की फ्रेंच कंपनी का ही सिनेमैटोग्राफी पर एकाधिकार रहा। अरब दुनिया का दूसरा सिनेमा हाल यरूशलम में मिस्र के यहुदी व्यापारियों ने 1908 में बनाया। मिस्र में पहली फिल्म ‘ लेलैन’ 1927 में बनी । उसके बाद सीरिया ( द इनोसेंट अक्यूज्ड, 1928) और लेबनान ( दि एडवेंचर आफ इलियास मोब्रूक, 1929) में फिल्में बनने लगी। जार्डन, मोरक्को, कुवैत, फिलिस्तीन, इराक , कुवैत, अल्जीरिया, बहरीन, ट्यूनिशिया आदि अरब देशों में भी सिनेमा बनना शुरू हुआ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

धार्मिक कारणों से सऊदी अरब में सिनेमा पर रोक लगी रही। अभी दो साल पहले सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के ‘विज़न 2030’ योजना के तहत 18 अप्रैल 2018 को राजधानी जेद्दा में पहला सिनेमा हाल खुला है । उसी साल सऊदी अरब के अधिकारियों ने कान फिल्म फेस्टिवल में एक बड़ी प्रेस कांफ्रेंस की। सऊदी अरब ने भारी सब्सिडी की घोषणा के साथ दुनिया भर के फिल्मकारों को अपने यहां फिल्म बनाने की दावत दी है।

अल गूना फिल्म फेस्टिवल के शुरू होने के बाद अरब सिनेमा को दुनिया के बड़े फिल्म समारोहों में जगह मिलने लगी है और यहां दिखाई गई अधिकतर फिल्में अफ्रीकी और यूरोपीय सिनेमा घरों में प्रदर्शित हो रही है। इसमें बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी फिल्में भी है। दुबई, आबू धाबी, दोहा ट्रिबेका फिल्म समारोहों के बंद होने और दूसरे फिल्म समारोहों के निस्तेज हो जाने के बाद अल गूना फिल्म फेस्टिवल का महत्व और बढ़ गया है। इसी वजह से इसे अमेरिका के साथ फ्रांस, इटली, स्विट्जरलैंड, दुबई और यूरोप के बहुत सारे देश समर्थन और भारी मदद दे रहे हैं। मिस्र के मोहम्मद दियाब ( क्लैश), लेबनान की नडाइन लबाकी ( कापरनौम) और फिलिस्तीन के एलिया सुलेमान ( इट मस्ट बी हेवन) जैसे अरब फिल्मकारों को कान फिल्म फेस्टिवल में महत्वपूर्ण पुरस्कार मिलने शुरू हुए हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement