-गिरीश मालवीय-
कंबोडिया के हिन्दू मंदिरो में मान लीजिए कि हिन्दू प्रतीकों का अपमान जैसी कोई घटना घट जाती है तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि भारत के हर शहर में उस घटना के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रर्दशन होंगे?
पोलैंड में कही ईसाई प्रतीकों का अपमान होता है तो क्या आप सोचते हैं कि पूरी दुनिया मे ईसाई धर्मावलम्बी उस घटना के खिलाफ अपने घरों से बाहर निकल कर प्रदर्शन करेंगे, रैलियां निकालेंगे, जुलूस निकालेंगे?
बामियान में बुद्ध की मूर्ति को दहशतगर्दो ने ढहा दिया, मैंने कहीं नहीं सुना कि श्रीलंका बर्मा जैसे बौद्ध मूल के देशों में जनता ने कोई आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त की हो, देश भर में रैलियां जुलूस निकाल रहे हों? या उनके खिलाफ हिंसा को जायज ठहराने की बात भी हो रही हो?
बुध्दिजीवी वर्ग जरूर ऐसी घटनाओ की कड़े शब्दों में निंदा करता है, आलोचना करता है लेकिन बहुत उग्र प्रतिक्रिया दुनिया के किसी हिस्से में सुनने में नहीं आती!
लेकिन मुस्लिम मतावलंबियों के साथ ऐसा नहीं है। फ़्रांस के एक शहर में एक कार्टून पत्रिका में एक कार्टून जो तीन चार साल पहले छपा था, उससे उपजा विवाद आज भी पूरी दुनिया को हैरान परेशान कर रहा है। दुनिया भर के देशों के अलग अलग शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं।
मैंने भारतीय मुसलमान को कभी कोई युनिवर्सिटी, स्कूल या कॉलेज माँगने के लिए प्रदर्शन करते हुए नहीं देखा। न ही कभी वह अपने इलाक़े में अस्पताल के लिए या अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के आंदोलन चलाते हैं। न ही बिजली पानी के लिए। वो अपने इलाके में कभी बेसिक जन सुविधाओं की मांग करता कोई बड़ा आंदोलन नही चलाते।
पर मुझे बड़ी हैरानी होती है जब वह सुदूर बसे फ्रांस में एक घटना घटती है और भोपाल में एक बड़ा जंगी प्रदर्शन आयोजित होता है। ऐसा सिर्फ़ भोपाल में ही नहीं हुआ। दुनिया के कई शहरों में ऐसा प्रदर्शन हो रहा है।
ऐसा क्यों होता है, यह जानना बड़ा दिलचस्प है। यह पैन इस्लाम के कारण है। डिक्शनरी में लिखा है कि पैन-इस्लामवाद एक राजनीतिक आंदोलन है जो एक इस्लामी राज्य के तहत मुसलमानों की एकता की वकालत करता है। पैन इस्लाम का इस्लामी पर्यायवाची शब्द, इतिहाद-ए-इस्लाम या इत्तिहाद-ए-दीन है। इसकी ही वजह से हिंदुस्तान के मुसलमान भी अपनी विविधताओं वाली पहचान की जड़ से उखड़ कर, उसकी जगह अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम से जुड़ जाता है।
…क्रमशः…