-महेंद्र मिश्रा-
अलविदा नहीं कहेंगे पंकज भाई… पंकज भाई का नाम सबसे पहले बरेली में सुना था। जब वह जागरण के ब्यूरो चीफ थे और मैं अमर उजाला में अभी ट्रेनी के बतौर इलाहाबाद से पहुंचा था। उस समय जागरण और अमर उजाला के बीच मानो युद्ध होता था। वह रोजाना का युद्ध था और रोज शाम को उसका फैसला होता था और अगले दिन रिपोर्टरों की बैठक में अखबारों को आमने-सामने रख कर हार-जीत के लड्डू और डांट एक साथ बंटते थे। अमर उजाला की बैठक में प्रभात सिंह, पवन सक्सेना और जेके सिंह जैसे धुरंधरों के बीच अक्सर यह नाम सुनाई पड़ता था। पंकज ने ये कर दिया। उसने वो कर दिया। आज उसने यह स्टोरी ब्रेक की। आज वह वहां भारी पड़ा। और वह अकेले अपने बल पर इस टीम को छकाते रहते थे। तभी मुझे लग गया था कि उस शख्स में कुछ है।
फिर उसके 14 साल बाद उनके साथ नोएडा में मुझे काम करने का मौका मिला। जब वह मुकेश कुमार सर के नेतृत्व में लांच हुए न्यूज़ एक्सप्रेस चैनल के इनपुट हेड बने। और मैंने सहारा में लड़ाई के बाद उसे छोड़ने का फैसला किया था। यह भी एक दिलचस्प किस्सा है इस पर फिर कभी। मुझे नौकरी की जरूरत थी और अजय ढौडियाल ने पंकज भाई से मिलवाया। उनके लिए मेरा इलाहाबादी होना ही काफी था। फिर क्या उनके साथ तकरीबन ढाई सालों तक काम किया।
बगैर किसी रोक-टोक के। और मुकेश कुमार सर, आशीष सर और पंकज भाई के नेतृत्व और पूरी टीम की मेहनत का नतीजा था कि बहुत कम समय में चैनल ने अपनी एक अलग पहचान कायम कर ली। लेकिन जैसा होता है मालिकान कान के कच्चे होते हैं या फिर उनके जेहन में मुनाफे की सोच इतनी भारी होती है कि वे चैन से जी नहीं पाते हैं। एक सफलतापूर्वक चल रहा चैनल अचानक इतिहास हो गया। लेकिन पंकज भाई के साथ काम के दौरान की यादें अब जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। एकदम हरनफनमौला, बेलौस और बेहद नाफिक्री में जीने वाला शख्स। कभी किसी बात के लिए तंग न करना। और हर मामले में एक पूरी खुली छूट।
इस बीच उन्होंने अपना राजसत्ता एक्सप्रेस शुरू कर लिया था। और कुछ दिनों पहले जब उन्हें दिल का दौरा पड़ा और मेदांता में उनका सफल आपरेशन हुआ तो मैं उनसे मिलने वहां गया था। वहीं पर उनके माता और पिता जी से भी मुलाकात हुई थी। पंकज भाई के पीछे मौत बहुत पहले से पीछे पड़ी थी। उन्होंने मौत के इस पहले दरवाजे को तो तोड़ दिया था। लेकिन उनके शरीर के भीतर डायबटीज जैसा दुश्मन पहले से ही बैठा था ऊपर से हृदय के इस आपरेशन के बाद कोरोना को अपनी जीत के लिए एक और आसान हथियार मिल गया था। और संक्रमण होने के बाद पता भी नहीं चला और वह पंकज भाई पर भारी पड़ गया।
कल जब रात में अजय ढौंडियाल का फोन आया तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। ऐसे कहीं होता है। एक हंसता-हंसाता शख्स अचानक हमेशा-हमेशा के लिए चला जाए। पंकज भाई की अभी उम्र ही क्या थी? 50 साल। अभी तो अपने बल पर उनके कुछ करने और दिखाने का समय शुरू हुआ था। और उस रास्ते पर वह अग्रसर भी थे। लेकिन कुदरत को शायद यह मंजूर नहीं था। कोरोना से रोजाना मौतों की खबरें आ रही हैं लेकिन इतने नजदीकी शख्स की यह पहली मौत थी। और यह किस हद तक खतरनाक है उसका अहसास पहली बार हुआ है।
शायद उसके इस खतरे को अभी न तो लोग महसूस कर पाए हैं और न ही सरकार। वरना जो लापरवाहियां हो रही हैं वह कभी नहीं होतीं। लेकिन इसका खामियाजा अंतत: हम सब को भुगतना है। मेरे लिए जैसे पंकज भाई छिने हैं वैसे हजारों ने अपने लोगों को खो दिया है। लेकिन अभी भी उनकी पीड़ा इतनी बड़ी नहीं बन पायी है कि वह सरकार को कुछ करने के लिए मजबूर कर सके। पंकज भाई आप की मुस्कान और बातों का अंदाज कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। लेकिन आपको अलविदा कहना भी मेरे लिए मुश्किल है। आप जीवन भर बने रहेंगे दिल में। यादों के साथ।
-रवीश शुक्ला-
जोरदार आवाज…अख्खड़ अंदाज और जानकारी से भरपूर पत्रकार यही पंकज शुक्ला सर की मेरी नजर में पहचान थी। जिसको माना जी भर गले लगाया वरना जी भरके गरियाते थे। मेरी उनकी पहचान 13 साल से थी। एक बार उन्होंने मुझे एक चैनेल में नौकरी देने के लिए बुलाया..सारे टॉप बॉस से मिलवाया तनख्वाह भी बढ़ा रहे थे लेकिन मेरा झिझक देखकर बोले छोड़ो तुम जहां हो वहां बढ़िया है। एक इलाहाबादी सीनियर के तरह से मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोले चलो चाय पिलाता हूं।
मैं उनके साथ काम नहीं कर सका लेकिन मेरे कहने पर उन्होंने तीन चार मेरे दोस्तों को जरुर अपने साथ काम करने का मौका दिया। जब किसी की सिफारिश करता तो एक ही बात कहते तुम जानते हो न अच्छा पत्रकार है..बस मेरा नंबर दे देना..रख लेंगे…पंकज भय्या काफी दिनों से मुख्य पत्रकारिता से बाहर थे। बुजुर्ग माता पिता के खातिर दिल्ली से भी अलविदा कह दिया था। गाहे बगाहे मेरी बात भी होती थी लेकिन सुबह सुबह ऐसी मनहूस खबर सुनकर दिल फट गया…मन अवाक है..ऐसा जुझारु पत्रकार कैसे आसानी से जा सकता है। पंकज भय्या बहुत याद आएंगे।
-मुन्ने भारती-
वरिष्ठ पत्रकार Pankaj Shukla जी का अचानक दुनिया से जाना हैरत कर देने वाला है। corona महामारी का शिकार हो गए।
पंकज जी बहुत शांत स्वभाव के थे, कहें तो मस्त। अधिकारी ब्रदर्स के न्यूज़ व्यूज़ चैनल जनमत में पंकज शुक्ला जी के साथ मुझे काम करने का मौक़ा मिला था। तारीफ़ के लिए लफ़्ज़ कम पड़ जाएगे। बहुत याद आयेंगे आप पंकज जी आप .. ख़ुदा आप को स्वर्ग में जगह दे ….
-रेणुका तिवारी-
Pankaj Shukla sir भला कोई ऐसे जाता है क्या। सुनकर दिल बैठा जा रहा। कभी भी नौकरी को लेकर कोई बात होती थी। आपको बेहिचक फोन लगाती थी। आप सुनते थे और कहते थे रुको पता करता हूं क्या है क्या नहीं है। अभी कुछ दिन पहले आप से बात हुई थी।
आप हमेशा प्रेरित करते थे आगे बढ़ने के लिए। आप कहते थे राजसत्ता तेरा है जब मन हो ज्वाइन कर ले। एक पल यकीन नहीं हो रहा कि आप हमें छोड़ कर चले गये। आपकी कमी हमेशा खलेगी। बहुत याद आयेंगे सर आप। RIP Pankaj Shukla sir..
-मुकेश कुमार-
मित्र और न्यूज़ एक्सप्रेस में सहयोगी रहे पंकज शुक्ला का यूँ अचानक जाना एक सदमे की तरह है। हँसमुख, बिंदास और हर समय सक्रिय रहने वाले पंकज की कमी खलेगी। पता नहीं ये कोविड क्या-क्या और किसको-किसको छीनेगा।
-गिरीश पांडेय-
Pankaj Shukla भाई साहब… आपका ऐसे अचानक चले जाना.. हम सबके लिये बहुत ही पीड़ादायक.. हृदय-विदारक घटना है।
आप मेरे पिता जी के भी मित्र थे, मेरे लिए बड़े भाई जैसे, फिर एक TV चैनल में मेरे सीनियर रहे.. साथ ही मेरी बड़ी बहन समान Amita Shukla दीदी के जीवन संगी भी। कई रिश्तों के अलावा आप मेरे गुरु भी थे।
आप एक अच्छे पत्रकार थे, शब्दों के बाजीगर, पत्रकारिता में नवाचार के पक्षधर, एक घटना या समाचार में विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की अद्भुत काबलियत थी आपकी कलम में।
बरेली में धाक जमाने के बाद आपने समाचार जगत के बड़े मैदान दिल्ली में भी अपनी अच्छी पहचान बनायी।
प्रिंट से लेकर टी.वी. पत्रकारिता और अब डिजिटल मीडिया में भी आपने अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करायी थी। खबरों से करेंसी छापने की जगह आपने सदैव कंटेंट के स्तर पर अधिक जोर दिया।
लेकिन कलम के इस प्रतिभावान सिपाही का यूं मैदान छोड़कर हमारे बीच से चले जाना पत्रकारिता जगत के लिये बड़ी क्षति है।
आपका ड्रेसिंग सेंस, मुस्कराहट और मुझको “गिरीश बाबू” कहकर बुलाना हमेशा याद आता रहेगा।
ईश्वर आपको अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें।
ॐ शांति।
विजय सिंह
November 21, 2020 at 3:06 pm
दुखद समाचार।
ईश्वर उनकी आत्मा को सद्गति दें।
MAROOF RAZA
November 21, 2020 at 6:55 pm
हंसमुख चेहरा,बातों मे धार,भावों मे अपनापन। ये पहचान थी पंकज शुक्ला की । सहकर्मी से ज्यादा दोस्त थे वो मेरे। बाद मे उन्होंने कुछ समय के लिए मेरे पड़ोस कालकाजी एक्सटेंशन मे फ्लैट भी ले लिया था तो पड़ोसी का रिशता भी उनसे रहा। उनका ताल्लुक भी पूर्वांचल से था। कई दफा वो मेरे घर भी आए और मै भी कई दफा उनके माता-पिता से मिलने उनके घर गया। जनमत और इंडिया न्यूज़ मे हमने साथ-साथ काम किया।
बेहद दिलचस्प,ज़िंदादिल और बेबाक गुफ्तगू के मालिक थे पंकज शुक्ला।मुझे बेहद अफसोस उनके यूं चले जाने पर।
“कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाउंगा
मै तो दरिया हूं समुंदर मे उतर जाऊंगा।”
प्रेम उपाध्याय
November 22, 2020 at 4:17 pm
पंकज शुक्ला जी से मुलाकात दिल्ली आने के बाद पहली नौकरी के दौरान जनमत में हुई थी ।
इलाबाद से हुं ये जान कर सिर्फ इतना ही पूछा था ….इलाहाबाद में कहां के .बताया तो पता चला की वे भी इलाहाबाद से ही थे ….2006 से 2007 तक उनके साथ काम करने और पत्रकारीता की बारिकियां सिखने को मिली ….एक आध बार गलती हुई तो सिर्फ इतना ही कहते थे ” जाने दो यार कौन सा कत्ल कर आए हो ” पंकज सर से आखरी मुलाकात भी फिल्म सिटी में 2014 में हुई थी जब वे किसी से मिलने हमारे दफ्तर में आए थे । उनका जाना दुखद है । भगवान पंकज सर की आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे और उनके परिवार को दुख सहने की शक्ति ।