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विदेशी पत्रकार को देश निकाला और कांग्रेस के बैंक खाते, खबरों की प्रस्तुति या लीपापोती  

संजय कुमार सिंह

आज के अखबारों और खबरों की चर्चा से पहले यह बताना जरूरी है कि मदर ऑफ डेमोक्रेसी होने के दावों के बावजूद एक विदेशी महिला पत्रकार को देश निकाला दिया जा चुका है। इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी खबर के अनुसार कल वह देश छोड़कर रोते हुए सरकार ने जाने को मजबूर कर दिया कहकर चली गई। उसपर ‘संदिग्ध’ रिपोर्टिंग का आरोप है जो क्या था या क्यों संदिग्ध था, सार्वजनिक नहीं हुआ, देश के अखबारों ने आम जनता को नहीं बताया है। फ्रांस की यह महिला पत्रकार वनेसा डॉगनैक एक भारतीय से विवाहित है और 25 साल पहले एक छात्रा के रूप में भारत आई थी। पत्रकार के रूप में 23 वर्षों के दौरान भिन्न विषयों पर लिखा है और इनमें माओवादी बगावत शामिल है। किसी पत्रकार को देश निकाला देना और कारण स्पष्ट या बहुत जबरदस्त न होना अपने आप में महत्वपूर्ण है लेकिन उसकी खबर प्रमुखता से न छपना ज्यादा बड़ा मामला है। यह सब किसी इमरजेंसी या सेंसर के बिना है तो आप समझ सकते हैं कि ऐसी कार्रवाई से विदेश में भारत और यहां के लोकतंत्र के साथ नागरिकों और बहुमत के बारे में क्या राय बनती होगी।

भारतीय संस्कारों, अतिथि देवो भव: और वसुधैव कुटुम्बकम के साथ इस तरह की कार्रवाई तभी होनी चाहिये थी जब उसका लिखा बिल्कुल अझेल और नाकाबिले बर्दाश्त होता और चेतावनी के बाद भी पेटीएम की तरह जारी रहता। पर ऐसा कुछ लगता नहीं है। इसके बाद भी एक पत्रकार के प्रति अखबारों का जो तेवर होना चाहिये था वह दिख नहीं रहा है। फ्रेंच पत्रकार ने एक बयान में लिखा है, 16 महीने पहले मुझे पत्रकार के रूप में काम करने के मेरे अधिकार से वंचित कर दिया गया था। इसका कोई कारण नहीं बताया गया ना कोई सुनवाई हुई। खबर के अनुसार भारत ने फ्रांस को बता दिया है कि मामला देश के नियमों और कानूनों के अनुपालन का है और इससे लगता है कि कार्रवाई का संबंध उसकी पत्रकारिता से नहीं है। 

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चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने की भाजपाई कोशिश को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध करार दिये जाने के बाद कल दिन में जब खबर फैली कि आयकर वालों ने कांग्रेस के खाते बंद (फ्रीज) कर दिये हैं तो लगा कि यह सरकार क्या करने जा रही है। और जाहिर है यह कोई सामान्य कार्रवाई नहीं हो सकती थी। दिलचस्प यह रहा कि थोड़ी ही देर बाद खबर आई कि खातों पर लगी रोक हटा ली गई है। कहने की जरूरत नहीं है कि कार्यकाल समाप्ति के इस दौर में, चुनाव की घोषणा से कुछ पहले विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के खातों को बंद करने के बारे में निर्णय आयकर विभाग के किसी बाबू ने नहीं लिया होगा खासकर तब जब खाते पर लगी रोक मामला सार्वजनिक होते या किये जाते ही हटा ली गई। आइये देखिये आज अखबारों ने इसे किस तरह लीपा-पोता है और कैसे खरी-खरी सुनाई है।  

आप जानते हैं कि कांग्रेस की तरफ से भी चुनावी तैयारियां चल रही हैं और भले खबर कम या नहीं छपती है, राहुल गांधी न्याय यात्रा पर हैं। आज के अखबारों में न्याय यात्रा की खबर तो पहले पन्ने पर नहीं होनी थी लेकिन कांग्रेस का खाता बंद कर खोले जाने की खबर कैसे छपती है इसमें मेरी दिलचस्पी रोक लगाने – हटाने से ज्यादा थी। आज मेरे ज्यादातर अखबारों में यह खबर लीड है। द हिन्दू ने तो इस खबर को सात कॉलम में छापा है लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड मोदी के चार सौ पार के दावे को ही प्रचारित करने वाली है। इसमें एनसीआर में 9750 करोड़ की मेगा परियोजनाएं शुरू करने की सूचना भी है।

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ऐसे में आज अमर उजाला की लीड और दिलचस्प है। प्रधानमंत्री ने कहा है और अमर उजाला ने छापा है, “कांग्रेस का ट्रैक रिकार्ड घोटालों और देश के बदले एक परिवार के हित का”। कहने की जरूरत नहीं है कि इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे, संजय गांधी का परिवार जब भाजपा में है तो नरेन्द्र मोदी ऐसा कह सकते हैं पर वे यह भी नहीं मानते हैं कि वे वंशवादी परिवारों की राजनीति करते हैं। वंशवाद का आरोप भी कांग्रेस पर ही लगाते हैं। यह भी कहा है (इंडियन एक्सप्रेस) कि हर कोई कांग्रेस छोड़ रहा है सिर्फ एक परिवार शिखर पर है। यह कैसे कहा जा सकता है और कहने की क्या जरूरत है यह तो नरेन्द्र मोदी जानें पर कहा है तो अखबारों ने छापा  जरूर है। इंडियन एक्सप्रेस ने कांग्रेस का खाता बंद करने की खबर के साथ यह खबर छाप कर मोदी जी को शायद यह बताने की कोशिश की है कि ऐसा ही है तो आप परेशान क्यों हैं और खाता चलने दीजिये, जो बकाया है उसे लेकर वे कहां भाग पायेंगे जब उन्हें देश में परिवार की ही राजनीति करनी है।   

अमर उजाला में कांग्रेस के खातों की खबर बॉटम है जबकि नवोदय टाइम्स में किसानों की खबर लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड को नवोदय टाइम्स ने बीच में रखा है और शीर्षक है, “कांग्रेस ने सारे मोर्चे खोले पर जनता का सुरक्षा कवच मेरे साथ : मोदी”। अखबारों को आज बताना चाहिये था कि इलेक्टोरल बांड जैसे असंवैधानिक चंदा वसूली उपाय से सैकड़ों करोड़ प्राप्त कर चुकी पार्टी के खिलाफ एक परिवार की पार्टी क्या कर पायेगी लेकिन इंडियन एक्सप्रेस को छोड़कर किसी और अखबार में आज इलेक्ट्रोरल बांड की चर्चा भी नहीं है। मोदी के आज छपे दावों के मद्देनजर उनसे पूछा जाना चाहिये था कि वे जीत के प्रति इतने आश्वस्त हैं तो कांग्रेस के खाते बंद करवाकर क्या मिलेगा? और उनने बंद नहीं करवाये हैं तो खुलवा क्यों नहीं देते हैं। पर आप जानते हैं कि वे सवालों के जवाब नहीं देते हैं और उनसे कुछ पूछना लगभग असंभव है। वे मन की बात करते हैं।

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चुनावी तैयारियों और भाषणों के बीच उद्घाटन ही नहीं आज 84560 करोड़ की रक्षा खरीद की खबर भी है। नवोदय टाइम्स ने बताया है कि इससे सैन्य शक्ति सशक्त होगी। चर्चा यह थी कि विकास और संरचना के बहुत सारे काम कर्ज लेकर रवाये गये हैं पर उससे संबंधित कोई खबर नहीं है। किसानों का आंदोलन संभलता नहीं दिख रहा है। बेरोजगार छात्र और युवा तो छोड़िये पढ़ने के लिए कोटा भेजे जाने वाले बच्चों की आत्म हत्या के मामले नहीं रुक रहे हैं और आज आईआईटी के एक छात्र की खुदकुशी  की खबर है। इंडियन एक्सप्रेस ने आंसू गैस के बीच भागते युवकों (किसानों) को दिखाने वाली एक फोटो छापी है और इसके कैप्शन का शीर्षक है, वार्ता के बाद की सुबह। फोटो के बारे में लिखा है, पंजाब-हरियाणा सीमा पर शंभू में प्रदर्शनकारी किसानों पर आंसू गैस के गोले दागते सुरक्षा बल के जवान। केंद्र के साथ वार्ता के बाद किसानों ने ‘युद्धविराम’ की घोषणा कर रखी है। वार्ता फिर इतवार को शुरू होनी है।

अमर उजाला में किसानों की खबर कही जा सकने वाली जो खबर है, उसका शीर्षक है, पंजाब के बाहर नहीं दिखा भारत बंद का असर, शंभू सीमा पर तनाव। हरियाणा व पश्चिमी यूपी में कुछ जगह किसानों का धरना प्रदर्शन। इस खबर से याद आया कि कल किसानों का बंद भी था और पहले पन्ने पर खबर नहीं होने से लगता है कि किसानों की अपील शायद बेअसर रही। लेकिन गनीमत है कि अखबारों ने यह नहीं लिखा और पहले पन्ने पर, “भारत बंद बेअसर” जैसा शीर्षक नहीं है। खबर के साथ छपी फोटो का कैप्शन है, जालंधर-फगवाड़ा नेशनल हाइवे पर महिलाओं ने जाम लगाकर प्रदर्शन किया। यही नहीं, इसी के साथ एक खबर है, शंभू सीमा पर उपनिरीक्षक व किसान की मौत। इसके बावजूद प्रधानमंत्री ने कहा है और अमर उजाला ने बगल में ही छापा है, कांग्रेस से अपनी सरकारें नहीं संभल रही, देश क्या संभालेगी। मुझे नहीं पता अपनी सरकारें नहीं संभव रहीं से प्रधानमंत्री का क्या तात्पर्य है। संभव है वे कहना चाहते हों कि विधायक पाला बदल रहे हैं, पार्टियां टूट रही हैं, भारत रत्न से दिल जीते जा रहे हैं, समर्थन खरीदे जा रहे हैं तो कांग्रेस ऐसा कुछ क्यों नहीं कर रही है। और यह सब नहीं कर रही है तो देश कैसे चलायेगी?

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आप जानते हैं कि हमारे यहां जो व्यवस्था है उसमें असंवैधानिक इलेक्टोरल बांड से चुनावी चंदा इकट्ठा करना अपराध नहीं है। इसके लिये किसी को सजा नहीं हुई है और इलेक्टोरल बांड को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध ठहराया तो लोग पूछ रहे हैं कि आप यह क्यों नहीं बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका किसने दायर की थी। इसी तरह पेटीएम का मामला आप जानते ही हैं। मोटे तौर पर यहां भी भारतीय रिजर्व बैंक के आदेशों का पालन नहीं किये जाने का उदाहरण है पर इसके लिए किसी कार्रवाई की खबर नहीं है उल्टे आज अमर उजाला में खबर है, 15 मार्च तक जारी रहेंगी, पेटीएम बैंक की सेवाएं। खबर के अनुसार पहले का आदेश 29 फरवरी के बाद जमा या टॉप अप स्वीकार नहीं करने का था अब इसे बढ़ाकर 15 मार्च कर दिया गया है। पेटीएम को यह सुविधा आदेश नहीं मानने पर भी मिली है। कांग्रेस का खाता आयकर विभाग की ऐसी मांग की वसूली के लिए बंद किया गया था जिसके खिलाफ दावा लंबित है और सुनवाई पांच दिन बाद यानी 21 फरवरी को होनी है।

आइये अब कांग्रेस का खाता बंद करने और फिर खोलने से संबंधित खबरों पर एक नजर डाल लें। इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को दो कॉलम में छापा है। शीर्षक है, टैक्स बकाया का उल्लेख करते हुए आयकर (विभाग) ने कांग्रेस के खाते फ्रीज किये, पार्टी ने इसे बदले की कार्रवाई कहा। उपशीर्षक है, “खड़गे, राहुल ने कहा – लोकतंत्र पर हमला; आईटी ट्रिब्यूनल से आंशिक राहत। इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, 210 करोड़ रुपए की टैक्स की मांग। एक्सप्रेस ने इसके साथ अंदर के पन्ने पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवक तनखा का इंटरव्यू होने की सूचना दी है और बताया है कि इसमें उन्होंने कहा है, आयकर विभाग ने कांग्रेस पर 135 करोड़ रुपए का असंगत जुर्माना लगाया है। हमने किया क्या है?  जाहिर है, कोई पुराना मामला है जिसमें जुर्माना गैर आनुपातिक है और उसे चुनौती दी गई है। इसमें दो बातें तय होनी होंगी, जुर्माना जायज है कि नहीं, राशि आनुपातिक होनी चाहिये और देने के लिए समय मिलना चाहिये। इसपर फैसला हुए बगैर खाता बंद करना या यह शर्त लगाना कि खाते में इतने पैसे रहें मनमानी है। मेरा मानना है कि कानून में ऐसा प्रावधान हो भी तो हटाया जाना चाहिये चाकि इसका दुरुपयोग कर वसूली की संभावना न रहे। पर वह सब मुद्दा ही नहीं है। सोचिये, आम कारोबारियों-व्यावसायियों के लिए यह कितनी मुश्किल स्थिति है और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के दावों के बाजूद चल रहा है। जब कांग्रेस के खातों के साथ ऐसा किया जा सकता है तो आम व्यवसायी की क्या दुर्गति होगी।

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हिन्दुस्तान टाइम्स में आज की खबर का शीर्षक है, कांग्रेस के खातों पर आईटी की कार्रवाई से विवाद हुआ। इसके साथ युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन की एक तस्वीर भी है। द हिन्दू में इस खबर का शीर्षक है, कांग्रेस को खातों पर आयकर के वैध अधिकार पर अपील के बाद राहत मिली। इस खबर के उपशीर्षक में बताया गया है, 2018-19 के रिटर्न में असंगति  के लिए आयकर विभाग द्वारा उच्च अधिकार तय किये जाने के बाद ट्रिब्यूनल ने कार्रवाई की। दूसरा उपशीर्षक है, 115 करोड़ रुपए अलग छोड़कर अब खाते चलाये जा सकते हैं, इस मामले में अपील पर सुनवाई 21 फरवरी को होनी है। तीसरा उपशीर्षक है, पार्टी के नेताओं ने गुस्सा जताया; कहा, सत्ता के नशे में चूर मोदी सरकार ने लोकतंत्र को निलंबित कर दिया है।

मुझे लगता है कि इस मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया की प्रस्तुति सबसे अच्छी है। अखबार में ओपन टॉप जीप पर राहुल गांधी की यात्रा की खबर के साथ कांग्रेस का खाता बंद करने की खबर छापी गई है। शीर्षक है, कांग्रेस ने आरोप लगाया खाता फ्रीज किया गया, सरकार ने कहा, आईटी ने 115 करोड़ रुपये जब्त किये हैं। उपशीर्षक है, राशि लंबित टैक्स मांग का भाग है, ट्रिब्यूनल की अंतिम सुनवाई 21 फरवरी को है। अखबार ने अपनी लीड खबरों की तरह इस लीड खबर के साथ भी जो खास सूचनाएं छापी हैं उनमें कांग्रेस का दावा सरकारी सूत्रों का जवाब आमने-सामने है। इसके अनुसार , शुक्रवार को जारी किये गये चेक बैंक ने लौटा दिये थे जवाब है कांग्रेस के खाते फ्रीज नहीं किये गये हैं। इससे यह पता नहीं चल रहा है कि चेक क्यों लौटे या लौटे कि नहीं। कायदे से इसे भी स्पष्ट किया जाना चाहिये था। दूसरा मुद्दा है, शुरू में लगा जैसे पार्टी के सभी खाते फ्रीज किये गये हैं। टैक्स ट्रिब्यूनल ने अगली सुनवाई तक 115 करोड़ जब्त (अटैच) किये हैं। अगली सुनवाई 21 को है। इसलिए मुद्दा यह है कि इतनी जल्दी क्या थी? अगर थी तो 18-19 का मामला अभी तक क्यों लटका है?

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कांग्रेस का तीसरा दावा है, कार्यकर्ताओं के वेतन के लिए पैसे नहीं है। जवाब है, 2018-19 की टैक्स मांग के मामले में कार्रवाई की गई है। इससे चार दिन नहीं रुक पाने का कारण स्पष्ट नहीं है। यहां चौथा और अंतिम दावा है, आयकर का पुराना मामला अचानक सक्रिय किया गया है ताकि चुनाव में विपक्षी दलों को परेशान किया जा सके। जवाब है, कांग्रेस के आयकर अधिवक्ताओं के साथ तालमेल में आदेश जारी किया गया था। हालांकि इससे जल्बाजी का कारण स्पष्ट नहीं होता है और यह व्यवस्था ही अनुचित है। क्या किसी का कारोबार-धंधा बंद करवाकर आयकर वसूली होगी? क्या आयकर वसूली वेतन या आपूर्तिकर्ताओं के भुगतान से ज्यादा जरूरी है। अगर ऐसे आगे-पीछे सोचे बिना आदेश दिये जा सकेंगे तो कारोबार कैसे होगा, इन अधिकारों के दुरुपयोग का क्या होगा और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के दावों का क्या मतलब है। 

 द टेलीग्राफ में इस खबर का मुख्य शीर्षक है, आयकर (द्वारा) खाता फ्रीज किये जाने पर कांग्रेस का गुस्सा (फूटा)। फ्लैग शीर्षक है, ट्रिब्यूनल के आंशिक राहत से बात नहीं बनी। अमर उजाला की खबर का शीर्षक है, कांग्रेस के खाते फ्रीज, ट्रिब्यूनल से मिली राहत। 210 करोड़ की आयकर की मांग पर कार्रवाई, बुधवार तक संचालित करने की अनुमति। इसके साथ खरगे ने कहा, ‘लोकतंत्र पर हमला’ भी है। लेकिन शीर्षक से ऐसा लगता है कि कांग्रेस आयकर नहीं दे रही है इसलिए कार्रवाई की गई और विरोध करने पर बुधवार तक राहत मिली है। जबकि मामला ऐसा नहीं है। बुधवार को फैसला होना है और खाता बंद करने की कार्रवाई उससे पहले ही फ्रीज कर दी गई थी और राहत खाते में 115 करोड़ रुपए छोड़कर दी गई है मतलब इतने पैसे न हों तो राहत है ही नहीं। पर अंदाज अपना-अपना।

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