मृत्युंजय कुमार-
शाम को ऑफिस से फुरसत पाकर ददन भाई के यहां पोहा-जलेबी खाने पहुंचे। संयोग से उसी वक्त उनकी दुकान पर पेटीएम वाले आए हुए थे; ऑनलाइन पेमेंट के लिए क्यूआर कोड चस्पा करने। खूब भीड़ थी; फिल्म सिटी के तमाम पत्रकार अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।
तभी पेटीएम वाले बंदे ने पोस्टर के किनारे में क्यूआर कोड चस्पा कर दिया। जिससे IIMC, IIMCA और फूले ढंक गए। ग्राहकों में तत्काल तीखी प्रतिक्रिया हुई। पोहा जलेबी छोड़ पत्रकारगण IIMC, IIMCA और फूले को आजाद कराने की मुहीम में लग गए। पेटिएम वाले बंदे को कई तरफ से डांट पड़ी। वो बेचारा इस तर्क पर अड़ा रहा कि ‘नाम तो दिख ही रहा है!’
खैर; पत्रकारों की सामने उसकी एक न चली। लोगों ने उस क्यूआर कोड को उखड़वाकर दूसरी जगह चस्पा कराया। IIMC, IIMCA और फूले पुनः दृष्टव्य हुए। तब जाकर लोगों ने पोहा खाना शुरू किया। कहानी का सार यही है कि यहां IIMC, IIMCA ही प्रधान तत्व है।
ददन भाई को बहुत शुभकामनाएं। उनसे पहली बार मिला। बातें जलेबी जैसी मीठी करते हैं। उम्मीद है यहां हमेशा ऐसी ही भीड़ बनी रहेगी।
ददन विश्वकर्मा-
आज इनका आशीष मुझे मिला, लोगों को महीनों-सालों लग जाते हैं इनका स्नेह पाने में. खुद आकर मुझे आशीर्वाद देकर गए। इन्होंने जिनको नवाज़ा और तराशा आज वो बेहतर मुक़ाम पर हैं। सौरभ द्विवेदी सर की जय हो।
विवेक शुक्ला-
Dadan Vishwakarma वो शख्स हैं जो ऑफिस में रहते हुए मुझे कभी बिना खाये जाने नहीं देते थे। मिठाई, नमकीन, बिस्किट, मठरी, कचौड़ी, समोसे मतलब जो भी उनके पास होता था बिना खिलाये नहीं जाने देते।
आज जिस काम की शुरुआत हमारे इन्दोरी मित्र ने की है इसके लिए जिगरा चाहिए।
मैं कल से देख रहा हूँ बहुत लोग ददन जी की इस शुरुआत को लेकर उन्हें समर्थन दे रहे है और कुछ लोग मज़ाक भी बना रहे है और कुछ तो तरस दिखा रहे हैं।
आप कुछ भी सोचें कुछ भी कहें ददन जी के लिए मैं यही बात कहूंगा कि ददन जी हर काम में बेस्ट हैं।
न उनके अंदर का पत्रकार खत्म हुआ है और न ही इस शुरुआत से उनका कद छोटा होगा।
दावे के साथ कह सकता हूँ आने वाले दिन में बहुत लोग आपको फॉलो करेंगे और आप पर हर कोई स्टोरी करेगा।
और एक कड़वी बात… इस शुरुआत को करने के लिए बहुत लोग रोज़ सोचते हैं लेकिन कर नहीं पाते।
जल्द आकर पोहा और साबूदाने की खिचड़ी का आनंद लूंगा।
संदीप भम्मारकर-
जिंदगी जब हिचकोले खाती है… नामवरी हिज्जे-हिज्जे होकर बिखरने लगती है… अपने-परायों से बेकद्री हासिल होने लग जाए… कमरे में अकेले बैठे हुए शख्स को खिड़कियों से आने वाली शरद की भीनी-भीनी हवाएं भी तूफानी थपेड़ों का एहसास कराती हैं। ऐसे वक्त में टूटता नहीं है तो वो है पत्रकार।
आदमी एमपी का हो तो बिना से कुछ कहे आंधियों के साथ या खिलाफ छाती तानकर खड़ा हो जाता है… Dadan Vishwakarma कोई स्टार्ट अप कहेगा, कोई अगंभीर मानेगा। इस हिम्मतवर कदम के लिए जयश्रीमहाकाल नर्मदेहर…
विजय रावत-
Dadan Vishwakarma aajtak में मिले सबसे काबिल साथियों में से एक रहे हैं. उनके हाथ के खाने का जायका भी कई बार ऑफिस में लंच का हिस्सा बना. अब वो जायका आप सबके लिए भी फिल्म सिटी में उपलब्ध है. ददन को उनके इस नए स्टार्ट अप के लिए बधाई अपनी दुकान…
वैसे प्रचलित धारणा के हिसाब से ही ददन के लिए भी पत्रकार का मतलब सिर्फ ‘एडिटर’ और ‘रिपोर्टर’ ही रहे. ‘सब एडिटर’ से लेकर ‘डिप्टी एडिटर’ तक की हमारी जमात यहां भी उपेक्षित रही, जिसकी कड़ी निंदा मौके पर पहुंचकर ही की जाएगी. बाकी जमाती भी आकर विरोध दर्ज कराने से न चूकें.
एडी साहू-
आईआईएमसी स्टूडेंट कई बड़ी मीडिया संस्थाओं में सेवा देने वाले ददन विश्वकर्मा ने नया स्टार्टअप खोला है. वह मूलत: इंदौर के रहने वाले है। रेहड़ी पटरी किनारे होने वाला व्यवसाय अब सिर्फ समाज के छोटे वर्गों तक सीमित नहीं रहा .ये अब स्टार्टअप की शक्ल ले चुका है. बड़े और सम्भांत घरों के पढ़े लिखे लोग अब ऐसे कार्यों में अपना हाथ अजमा रहे है. ये बदलते भारत की नई तस्वीर है, इसे में पॉजिटिव बदलाब के तौर में देखता हूं।
अनिल दीक्षित-
कमाल की दुनिया है। अपने करियर में सफल एक पत्रकार ने अचानक कारोबार शुरू किया। एमबीए चायवाला और समोसा किंग जैसे इनीशिएटिव लेकर तमाम लोग अपना प्रोफेशन छोड़कर कुछ अनूठा करते हैं, एक पत्रकार ने भी किया। पर, जाने पत्रकार ही क्यों निशाने पर रहते हैं। अनर्गल प्रलाप होने लगे। असफल बताया जाने लगा तो कुछ को लगा कि यह पत्रकारिता के दुर्दिन हैं। मैं मित्र Dadan Vishwakarma को इस साहस के लिए सलाम करता हूं। इस अभिनव प्रयोग को वह सफलता के चरम तक ले जाएं, इसके लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
अभिषेक मेहरोत्रा-
यहां सवाल एक Dadan Vishwakarma का नहीं, बड़ा सवाल मीडिया इंडस्ट्री पर है। Dadan Zee News Digital Team का हिस्सा थे, उनकी काबिलियत पर कोई संदेह नहीं, साहस और उनकी प्रैक्टिकल अप्रोच सर्वविदित है। उनको शुभकामनाएं कल ही प्रेषित की और उम्मीद है कि वो उसी शिद्दत से आगे जाएंगे जो उनकी usp है।
कल इस अहम मुद्दे पर कई संपादकों से भी चर्चा हुई। अनेक बिंदुओं पर बात हुई। पहली बात तो ये निकली कि मीडिया इंडस्ट्री का विस्तार उस रेश्यो में नहीं हुआ जिस तरह मीडिया इंस्टीट्यूट खुले, दूसरा कि हर पत्रकार को एक B plan रखना चाहिए, पर पत्रकारिता की नौकरी न इसके लिए समय देती है और ना उतना पैसा। ऐसे में संघर्ष तो सभी को करना है। हम सब उस दौर से गुजरे हैं या गुजर रहे हैं।
IIMC जैसे संस्थान जिसकी एलुमनी काफी ताकतवर है, Dadan भी उसी प्रतिष्ठित संस्थान के छात्र रहे हैं।
कल से लिखने से बच रहा था क्योंकि जब भी कुछ लिखता हूं, किसी न किसी को चुभता जरूर हैं। पर कई बार चुभन ही मंथन का आगाज करती है।
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Jis tarah zindgi chalti rahti hai...thik usi tarah patrakar hamesha zinda rahta hai..phir woh chahe aalishan office ki kursi pe ho ya chai ki tapri per...Dadan ji se kabhi mulakat toh nahi hui...lekin aub unse mulakat karne aur unke pohe ka zayka lene ki prable icha jaag gayi...umeed hai pohe ka zayaka aur patrakar ki ye kranti dono dhamal machyege....