कौशलेन्द्र प्रपन्न की मौत के मामले में नेशनल हेरल्ड में प्रकाशित उस रिपोर्ट को सभी को पढ़ना चाहिए जिसे फिलहाल नेशनल हेरल्ड ने डिलीट कर दिया है पर भड़ास ने उसे अपना यहां प्रकाशित कर दिया है। नेशनल हेरल्ड में प्रकाशित वो रिपोर्ट, जिसे बाद में डिलीट कर दिया गया, फिर उसे Bhadas4media ने प्रकाशित किया, उसमें कई बातें हैं। यह विडंबना ही है कि शिक्षा की स्थिति पर चिन्ता जताने वाला यह लेख लिखने के लिए कौशलेन्द्र प्रपन्न को शिक्षक दिवस यानी 5 सितंबर को दिल का दौरा पड़ा और हिन्दी में जनसत्ता में लिखे अपने लेख के कारण मौत हिन्दी दिवस यानी 14 सितंबर को आई।
इस तरह शक्तिशाली लोगों ने 2019 के शिक्षक दिवस और हिन्दी दिवस को ‘सफल’ बनाया। रही सही कसर खबरें डिलीट करवाकर पूरी कर दी गईं। नेशनल हेरल्ड की रिपोर्ट के शीर्षक में कौशलेन्द्र को ईटी यानी इकनोमिक टाइम्स का पत्रकार बताया गया है। कृपया भ्रमित न हों वे हिन्दी ईटी को लांच कराने वाली टीम में थे और 2009 तक ईटी से जुड़े रहे।
नेशनल हेरल्ड की खबर के अनुसार ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के दो अधिकारी जनसत्ता में छपे कौशलेन्द्र के आलेख से खासे नाराज थे। इसका कारण यह समझ में आता है कि ईडीएमसी का टेक महिन्द्रा कॉरपोरेशन (या ट्रस्ट जो कंपनी की सीएसआर शाखा है) के साथ तीन साल का करार था और यह ट्रेन द टीचर्स प्रोग्राम के लिए था। कौशलेन्द्र प्रपन्न का काम एमसीडी के स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षण देना था। कहा यह जा रहा है कि टेक महिन्द्रा ने उन्हें हटा दिया पर तकनीकी रूप से (अपमान से आहत होकर) उन्होंने 26 अगस्त को इस्तीफा दे दिया था। जनसत्ता में लेख 25 अगस्त को प्रकाशित हुआ था।
उनके भाई राघवेन्द्र ने कहा कि (इस्तीफे के बाद) 10 दिन वे बेहद परेशान रहे और अवसाद में चले गए। 5 सितंबर को उनकी तबीयत खराब हुई और वे बेहोश हो गए। उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया लेकिन उनकी स्थिति खराब होती गई।
अखबार ने लिखा है कि टेक महिन्द्रा के उन अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई जिनके नाम परिवार वालों ने बताए। पर उनसे संपर्क नहीं हो सका। लिखित संदेश का भी कोई जवाब नहीं आया। हालांकि, कंपनी के सीओओ अस्पताल गए थे और सहायता की पेशकश की जिसे कौशलेन्द्र के परिवार वालों ने ठुकरा दिया।
मूल रिपोर्ट ये है-
प्रताड़ना से पत्रकार की मौत पर रिपोर्ट को ‘नेशनल हेराल्ड’ ने किया डिलीट, भड़ास पर पूरा पढ़ें
वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट.
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