Amitaabh Srivastava : स्वायत्त और ताकतवर कही-समझी जाने वाली हमारी दो बड़ी संस्थाओं की लाचारी देखिये। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कह रहे हैं कि अदालतें दंगे नहीं रोक सकतीं। चुनाव आयोग कह रहा है नेताओं के चुनावी ख़र्च का हिसाब नहीं रख सकते।
दरअसल, चुनाव जीत कर नेता बन बैठा व्यक्ति देश में सबसे बेलगाम और ताकतवर हो गया है। उसकी दबंगई से सब डरने लगे हैं। यह एक दिन में या पिछले कुछ सालों में ही नहीं हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि मोदी सरकार के राज में तमाम संवैधानिक संस्थाएँ अभूतपूर्व दयनीयता के स्तर पर पहुँच गई हैं।
वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
पिछले चार महीनों में बेरोज़गारी की दर सबसे अधिक बढ़ कर अब 7.78 प्रतिशत हो गई
Ravish Kumar : बेरोज़गारी की दर बढ़ कर 7.78 प्रतिशत हो गई है। चार महीनों में यह सबसे अधिक है।
जैसा कि हमारे मित्र नरेंद्र नाथ कहते हैं कि यह ग़ैर ज़रूरी ख़बर है।
ज़रूरी काम है कि आप फूलों की तस्वीर भी पोस्ट करें तो कमेंट में भद्दी तस्वीरें लगाना। एक मज़हब को गाली देना। झूठ को सत्य बताना।
CMIE के महेश व्यास ने बिज़नेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि फ़रवरी महीने के तीन महीनों में बेरोज़गारी की औसत दर 8.5 प्रतिशत रही है। फ़रवरी में बहुत लोगों की नौकरियाँ गई हैं।
जनवरी 2020 से फरवरी 2020 के बीच पचपन लाख नौकरियाँ घटी हैं। इसी दौरान सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश करने वालों की संख्या 25 लाख बढ़ी है। बाक़ी के 30 लाख वो हैं जिनकी नौकरी गई है। मार्केट में काम नहीं है। इसलिए काम खोजने वालों की संख्या में भी गिरावट आई है।
एनडीटीवी के संपादक रवीश कुमार की एफबी वॉल से.
Girish Malviya : इधर आप दिल्ली में हुई साम्प्रदायिक हिंसा में उलझे रहे और उधर मोदी सरकार ने अडानी – अम्बानी को कौड़ियों के भाव मे बड़ी संपत्तियां ओर कंपनियों को देने- दिलाने की तैयारियां पूरी कर ली. खबर आई कि आलोक इंडस्ट्रीज को मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने जेएम फाइनेंशियल असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड के साथ मिलकर खरीद लिया.
सबसे अधिक हैरत की बात यह है कि आलोक इंडस्ट्रीज पर बैंकों का कुल 30,000 करोड़ रुपए बकाया था। लेकिन रिलायंस को सामने देखकर एनसीएलटी की अहमदाबाद पीठ ने मार्च 2019 में रिलायंस-जेएम फाइनेंशियल एआरसी के मात्र 5,050 करोड़ रुपए की अकेली बोली को मंजूरी दे दी.
आलोक इंडस्ट्रीज ओने पौने दाम में रिलायंस खरीद सके इसलिए मोदी सरकार ने 2018 में कानून ही बदल डाला. दरअसल अप्रैल 2018 के मध्य में हुई बैठक में रिलायंस और जेएम एआरसी के 5,050 करोड़ रुपये के ऑफर पर 70 पर्सेंट कर्जदाता बैंकरों ने ही सहमति दी थी लेकिन तब ये सौदा नकार दिया गया था इसकी सबसे बड़ी वजह एक नियम था जिसके तहत ऐसे रिजॉल्यूशन प्लान की मंजूरी के लिए कम से कम 75 पर्सेंट कर्जदाताओं की सहमति जरूरी है. अब यहाँ मोदी सरकार का रोल शुरू होता है मोदी सरकार ने यह स्थिति इस 75 प्रतिशत ऋण दाताओं की मंजूरी वाले कानून में ढील देने वाला संशोधन पास कर दिया आईबीसी में संशोधन से योजना की मंजूरी के लिए न्यूनतम मत को 75 से घटाकर 66 फीसदी कर दिया गया। इससे आलोक इंडस्ट्रीज की संयुक्त समाधान योजना के मंजूर होने की राह आसान हो गई।
आरआईएल-जेएमएफ एआरसी द्वारा जमा कराई गई योजना के अनुसार दोनों कंपनियां संयुक्त रूप से 5005 करोड़ रुपये में आलोक इंडस्ट्रीज का अधिग्रहण करने जा रही हैं जिनमें से बैंकों को मात्र 4000 करोड़ रुपये मिलेंगे।
आलोक इंडस्ट्रीज पर वित्तीय कर्जदाताओं का करीब 30 हजार करोड़ रुपये बकाया है यानी इस सौदे से बैंकों को 86 फीसदी से ज्यादा का नुकसान उठाना होगा। आलोक इंडस्ट्रीज के खिलाफ इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया जून 2017 में एसबीआई ने शुरू की थी, जो कंपनी का लीड बैंक था। सबसे अधिक नुकसान उसे ही झेलना पड़ेगा.
अब अडानी जी के बारे भी कुछ पढ़ लीजिए कुछ दिनों पहले गौतम अडानी की अगुवाई वाली अडानी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को नई दिल्ली के अल्ट्रा पॉश इलाके लुटियंस जोन के भगवान दास रोड पर बने एक शानदार बंगले की नया मालिक बना दिया गया.. एक सदी से भी ज्यादा पुराने इस दो मंजिला बंगले को अदानी ग्रुप ने आदित्य एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड से दिवालिया कार्यवाही के बाद खरीद लिया.. नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने इस संपत्ति की कीमत केवल 265 करोड़ रुपये बताई जबकि कुछ साल पहले इसकी कीमत इसके मालिकों ने 1000 करोड़ रूपए लगाई थी। बंगला 3.5 एकड़ में फैला हुआ है, वर्तमान में इसका मूल्य और भी अधिक था लेकिन रस्ते का माल सस्ते में अडानी जी को सौंप दिया गया.
सच तो यह कि मोदी जी के सबसे बड़े आर्थिक सुधार कहे जाने वाले इंसोल्वेंसी एंड बैंककरप्सी कोड का मूल उद्देश्य ही यह है कि हजारों करोड़ के कर्ज डूबा कर बैठी कंपनियों को अडानी अम्बानी जैसे बड़े उद्योगपतियों को बेहद कम कीमत में बेच कर उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पुहचाया जाए और जनता को हाथ ऊँचे कर के दिखा दिए जाए कि हम क्या करे? यह ओपन बोली थी!
यह है असली ‘न्यू इंडिया’. आप इधर हिन्दू-मुस्लिम में उलझे रहिए, देश की बड़ी बड़ी सम्पतिया कौड़ियों के मोल में अडानी अम्बानी को सौप दी जाएगी. ऐसे ही नही मोदी राज में इन दोनों की संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ रही है.
देश में बेरोजगारी अब भयावह ढंग से बढ़ रही
अब आइए बेरोजगारी पर. देश मे बेरोजगारी अब भयावह ढंग से बढ़ रही है चेन्नई में पार्किंग अटेंडेंट की जॉब के लिए 1400 उम्मीदवारों ने अप्लाय किया था। आवेदन करने वाले इन उम्मीदवारों में से 70 फीसदी से ज्यादा ग्रेजुएट है और 50 फीसदी से ज्यादा इंजीनियरिंग पास है।
सबसे ज्यादा बुरी स्थिति उन युवाओं की है जो उच्च शिक्षा प्राप्त है ये युवा अब कोई भी नौकरी करने के लिए तैयार हैं। वह बस किसी भी तरह वर्किंग क्लास में शामिल होने चाहते है, जहां नौकरियां बेहद कम हैं
कल सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी CMIE ने नवीनतम आँकड़े जारी किये है। इन आकड़ों के अनुसार, फरवरी में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 7.78% हो गई, जो अक्टूबर 2019 के बाद से सबसे अधिक है। जनवरी में यह दर 7.16% थी।…… इससे पहले जो रिपोर्ट आई थी उसमे कहा गया था कि देश में बेरोजगारी दर (Unemployment Rate in India) 20 वर्षों में सबसे अधिक हो गई है
पिछले साल आई अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि भारत में जो करीब 53.4 करोड़ काम करने वाले लोग हैं उनमें से करीब 39.8 करोड़ लोगों को उनकी योग्यता के हिसाब से न तो काम मिलेगा, न नौकरी। इसके अलावा इन पर नौकरी जाने का खतरा भी मंडरा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट में यह अनुमान भी जताया गया था कि इस साल बेरोजगारी का आंकड़ा बढ़कर लगभग 2.5 अरब हो जाएगा।
शहरी भारत में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती जा रही है उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर पिछले तीन साल के मुकाबले सबसे खराब है। साल 2016 में उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर 47.1 प्रतिशत थी। वहीं, 2017 में यह 42 प्रतिशत और 2018 में 55.1 प्रतिशत थी इस मामले में नए आँकड़े तो आए ही नही है जो पुराने आँकड़े है उनके हिसाब से ही पता चला है कि 20 से 29 साल के ग्रेजुएट युवाओं में बेरोजगारी की दर 42.8 पहुंच गई है जो भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। सभी उम्र के ग्रेजुएट के लिए औसत बेरोजगारी दर 18.5 फीसदी पर पहुंच गई जो इसका उच्चतर स्तर है। कॉलेज से निकलकर जॉब मार्केट में आने वाले युवओं की स्थिति भी बेहतर नहीं है। 20 से 24 साल के उम्र के युवओं के बीच सितंबर से दिसंबर के दौरान बेरोजगारी की दर दोगुनी होकर 37 फीसदी पर पहुंच गई।
अब इस मामले में अब एक नया ट्रेंड देखने में आया है सरकार द्वारा घोषित भर्तियों में पदों की संख्या बेरोजगारों की भीड़ को देखते हुए ऊंट के मुंह में जीरे के समान होती है लेकिन इसके बावजूद लाखों युवाओं द्वारा दिया गया आवेदन शुल्क भरा जाता है जो सरकार के खजाने में जमा हो जाता है। सरकार नियत समय पर भर्ती की परीक्षा आयोजित नही करती हैं जिससे लाखो बेरोजगारों का जमा आवेदन शुल्क पड़े पड़े सरकार का राजस्व बढ़ा रहा होता है
मोदी जी कब तक अपने मन की बात सुनाएंगे!….. आखिर इन शिक्षित युवाओं के मन की बात कब समझेंगे?
आर्थिक मामलों के विश्लेषक इंदौर निवासी गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.