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सियासत

प्रचार युद्ध से किसान आंदोलन को परास्त करेगी मोदी सरकार

रवीश कुमार-

जनता अपने जन-मृत्यु के महाभोज की तैयारी करे, ख़ुश रहे… सरकार ने किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ भयंकर प्रचार युद्ध शुरू कर दिया है। किसान सम्मेलनों और प्रेस कांफ्रेंस के ज़रिए क़ानून का प्रचार होगा। जल्दी ही सुरक्षा का एंगल किसान आंदोलन के आस-पास खड़ा कर दिया जाएगा। चीन और पाकिस्तान का नाम लेकर। किसान घिर गए हैं। ऊपर से ठंड और सामने से प्रोपेगैंडा।

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इस बीच किसान मोर्चा ने भी सरकार के प्रचार युद्ध का सामना करने की तैयारी की है। कल ट्विटर पर अकाउंट खोलने का एलान हुआ। इस हैंडल का पता @kisanektamorcha है। फ़ेसबुक पर भी एक पेज बना है। आई टी सेल से लड़ना आसान नहीं है। गोदी मीडिया की ताक़त एक ऐसी दीवार है जिसके सामने जनता का कोई वर्ग टिक नहीं पाएगा। जनता की संख्या कितनी है इसका महत्व पहले ही ख़त्म हो चुका है। न इसका असर है। अपनी किताब बोलना ही है में विस्तार से बता चुका हूँ और अक्सर बोलता लिखता रहता हूँ।

किसानों की लड़ाई शाहीन बाग़ की तरह हो गई है। धरना तो है लेकिन उसके बाद कुछ नहीं। सरकार को फ़र्क़ नहीं पड़ता है। इसके पहले बेरोजगार लड़ कर हिन्दू मुसलमान में बंट चुके हैं। गाँवों में हिन्दू मुसलमान की जो खेती हुई है उससे किसान अलग नहीं है। किसानों की लड़ाई अपने भीतर के बँटवारे से है। मुझे नहीं लगता कि अब किसी भी वर्ग में इतनी बौद्धिक ताक़त बची है कि वह आई टी सेल और गोदी मीडिया के प्रोपेगैंडा से लड़कर अपने भीतर के बँटवारे को बांट सकेगा।जनता अपना जनतापन हार चुकी है। हार कर अपना हार बना चुकी है। ये वो जनता है जो अपनी हार का हार पहनकर घूम रही है।

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किसानों के इरादों को देखते हुए कुदरत से ही प्रार्थना है कि ठंड का क़हर कुछ कम कर दे। सरकार अविजित है। कालजयी है। भारत की जनता के सहयोग से लोकतंत्र की आचार संहिता ख़त्म की गई है। किसी को भी मुसलमान बता दिया जा रहा है। इसका मतलब है मुद्दा एक ही है। मुसलमान होना और मुसलमान नहीं होना। जो भी इस विभाजन रेखा को पार करेगा मुसलमान बता दिया जाएगा। किसानों को आतंकवादी और पाकिस्तानी बता दिया गया है। यही विभाजन रेखा किसानों के भीतर भी है। जनता के लिए वापस जनता होने के रास्ते बंद हो चुके हैं। बस वो जनता होने का पुराना कुर्ता पहन कर जनता होना चाह रही है। जैसे हम सर्दी के कपड़े निकाल कर बीती सर्दी को याद करते हैं। उसे महसूस करते हैं। भारत की जनता को अपने जन मृत्यु के महाभोज की तैयारी करनी चाहिए। परम्पराओं के अनुसार लोग जीते जी भी श्राद्ध कर जाते हैं।

जो देख रहा हूँ वो बीते कालखंड में जन के होने का अवशेष है।जनता की जन-मृत्यु ऐच्छिक थी। जनता ने ख़ुशी ख़ुशी गले लगाया था। जन विहीन लोकतंत्र में आपका स्वागत है। आंदोलन में आए किसान एक मुट्ठी भर बची धान है। सरकार धान के बीज अब फ़ैक्ट्री में बना सकती है और किसान भी ! सरकार को फ़र्क़ नहीं पड़ता। जो लिख रहा हूँ वो कालजयी सत्य है।

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देखें ये वीडियो-

https://youtu.be/laX-0Jx0rLI

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