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प्रधानमंत्री अचानक कतर क्यों जा रहे हैं, अखबारों ने नहीं बताया

आठ नौसैनिकों में से सात ही आये, आठवां क्यों नहीं आया – यह भी रहस्य है

संजय कुमार सिंह

आज के मेरे सभी अखबारों की लीड एक ही खबर है, कतर ने मौत की सजा पाये आठ नौसैनिकों को रिहा किया। इसके साथ की खबरों में प्रधानमंत्री कतर की राजधानी दोहा जायेंगे, नीतिश को विश्वास मत मिला, अशोक चव्हाण कांग्रेस से अलग हुए आदि खबरें हैं। पर यह नहीं पता चल रहा है कि प्रधानमंत्री का कतर जाने का प्रोग्राम अचानक क्यों और किसलिये बना। नौसैनिक रिहा हुए यह बड़ी खबर है और लीड है, तो ठीक है। इसके लिए प्रधानमंत्री की तारीफ और परिवार के लोगों का प्रधानमंत्री के प्रति आभारी होना – भी सामान्य है। सब कुछ बताया गया है तो खबर है। लेकिन यह भी बताया जाना चाहिये था कि प्रधानमंत्री को अचानक कतर की राजधानी दोहा क्यों जाना पड़ रहा है। कार्यक्रम पहले से तय होता तो यह सवाल ही नहीं उठता और जब अखबारों ने रिहाई को इतना महत्व दिया है तो उससे संबंधित लगने वाले इस पहलू पर कोई जानकारी क्यों नहीं है?

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इजराइल के लिए जासूसी का आरोप

हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि प्रधानमंत्री द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा के लिए दोहा जायेंगे। पर यह भी लिखा है कि रिहाई की घोषणा अचानक हुई। आठवें के वापस नहीं आने का कोई कारण पहले पन्ने पर जितनी खबर है उसमें नहीं है। टेलीग्राफ ने लिखा है कि विदेश सचिव ने यह बताने से मना कर दिया कि प्रधानमंत्री का दौरा नौसैनिकों की रिहाई से संबंधित है कि नहीं। एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड ने लिखा है कि दोहा जाने का प्रधानमंत्री  का निर्णय़ पर्दे के पीछे चल रहे प्रयासों को रेखांकित करता है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि ये आठ लोग निजी कंपनी के लिए काम कर रहे थे और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इजराइल के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किये गये थे। वापस नहीं आने वाले पूर्णेंदु तिवारी का परिवर कतर में रहता है। हिन्दू ने लिखा है कि मामले का विवरण मीडिया से साझा नहीं किया गया है और अधिकारियों ने यही कहा कि मामला संवेदनशील है।

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विदेश यात्राएं गोपनीय होती गईं

यहां उल्लेखनीय है कि नरेन्द्र मोदी से पहले प्रधानमंत्री की विदेशयात्रा में कुछ गोपनीय नहीं होता था। उनके साथ पत्रकारों की टोली जाती थी और लौटकर राष्ट्रपति को रिपोर्ट करने का रिवाज था। लौटते समय विमान में प्रेस कांफ्रेंस भी होती थी। नरेन्द्र मोदी ने पत्रकारों को ले जाना बंद किया। राष्ट्रपति को रिपोर्ट करते हैं ऐसी खबर तो नहीं दिखी पर यह मामला राष्ट्रपति को देखना है। समर्थकों के जरिये पत्रकारों को नहीं ले जाने का कारण यह प्रचारित किया गया कि कांग्रेस सरकार पत्रकारों को विदेश भ्रमण करवाकर खुश रखती थी मोदी सरकार को उसकी जरूरत नहीं है। मुद्दा यह था कि विमान की खाली सीट पर पत्रकार जाते तो नुकसान क्या था। पर बाद में पता चला कि प्रधानमंत्री के साथ व्यावसायी विदेश यात्रा पर जाते रहे हैं। और अब यह गोपनीयता। राष्ट्रपति को देखना है पर वो सरकार के काम से प्रसन्नता जता चुकी हैं इसलिए मुद्दा ही नहीं है।  

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किसान आंदोलन के महत्त्व नहीं मिला
आज एक और खबर महत्वपूर्ण है जो कुछेक अखबारों में तो है पर कइयों में नहीं है या इसे वो महत्व नहीं दिया गया है जो ऐसी खबर को ऐसे समय में मिलना चाहिये। अगर सभी अखबारों को लगा कि कतर की खबर ही लीड है तो किसानों की खबर लीड नहीं है – भी वैसा ही मामला है। आप जानते हैं कि पिछली बार किसानों का आंदोलन क्यों और कैसे हुआ था तथा कैसे खत्म हुआ। सरकार का क्या आश्वासन था और उसके बाद वह पूरा हुआ या नहीं। किसानों की मौत पर सत्यपाल मलिक से प्रधानमंत्री ने क्या कहा, करीब साल भर चले आंदोलन में 700 किसान शहीद हो गये थे और अब फिर इतनी जल्दी या देरी से या चुनाव के पहले ऐसी स्थितियां बन रही हैं तो उसका कारण, सरकारी पक्ष, चुनाव पर प्रभाव, सरकार की चिन्ता आदि के कारण यह बड़ी खबर है लेकिन अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है।

ठीक है कि यहां ऊपर से लेकर नीचे तक चार कॉलम का विज्ञापन है पर पहले पन्ने की खबरों में एक, सुप्रीम कोर्ट की खबर है। इसका शीर्षक है, दिल का टूटना रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा है, आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं। आज किसानों की खबर को महत्व नहीं देकर यह भी नहीं बताना कि प्रधानमंत्री अचानक दोहा क्यों जा रहे हैं – अखबार का काम पूरा नहीं करना ही है। बेशक, नौसैनिकों की रिहाई भारत की कूटनीतिक जीत भी है। अमर उजाला का शीर्षक यही है लेकिन यह जीत कैसे और क्यों हासिल हुई से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री का अचानक कार्यक्रम क्यों और कैसे बना? अमर उजाला में एक खबर है, पूर्व नौसैनिक बोले – मोदी के बिना नहीं लौट पाते। इसमें हाईलाइट किया गया है, पीएम का दखल काम आया। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार का यह काम है और सरकार ने अपना काम किया है।

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प्रधानमंत्री के स्तर का काम?

प्रधानमंत्री के स्तर का काम था कि नहीं वह अपनी जगह है पर प्रधानमंत्री सरकार का प्रतिनिधि है और नागरिकों के लिए सरकार का यह काम है। सरकार होती ही इसलिए है। फिर भी प्रचार करना हो, श्रेय देना हो तो दिया जा सकता है पर यह काम दोहा जाकर करना पड़ रहा हो तो खबर है और वह खबर भी दी जानी चाहिये। पता करके बताया जाना चाहिये क्योंकि जो जानना चाहता है, प्रधानमंत्री से प्रभावित है वह भी जानना चाहेगा कि एक नागरिक के लिए प्रधानमंत्री स्वयं जाकर निजी तौर पर काम करते हैं या पत्र-फोन और प्रतिनिधियों से काम हो जाता है। प्रधानमंत्री या सरकार के बारे में अच्छी राय बनाने के लिए भी यह जानकारी जरूरी है। नवोदय टाइम्स ने लिखा है कि 2015 से यह सातवां दौरा है। 2014 से क्यों नहीं यह बताया नहीं गया है पर संभवतः 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार 2015 में गये होंगे। इसलिए ऐसा लिखा गया है लेकिन यह तरीका ठीक नहीं है।

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फिर भी नौ साल में सात बार कतर जाना मायने रखता है और इसका कारण बताया ही जाना चाहिये था। वैसे नहीं बताते, पर जब रिहाई की खबर कूटनीतिक जीत है तो यह और महत्वपूर्ण है। इसलिए भी कि आठ में से सात ही वापस आये हैं। एक, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी नहीं लौटे हैं। कारण यही बताया गया है कि कुछ कागजी कार्रवाई लंबित है। तो क्या प्रधानमंत्री उसके लिए जा रहे हैं? ऐसी क्या कार्रवाई होगी जो प्रधानमंत्री ही करेंगे या जिसके लिए उन्हें जाना पड़े। कहने की जरूरत नहीं है कि नौसैनिकों का मामला इतना पुराना भी नहीं है। उन्हें पिछले साल 26 अक्तूबर को सजा सुनाई गई थी और रिहाई 18 महीने बाद हुई है। आज ही खबरों में कहा गया है कि भारतीय अधिकारी उन्हें यात्री उड़ान से लेकर आये। जाहिर है, अधिकारी वहां थे जो आठ में से सात लोगों को ले आये।

कमांडर पूर्णेंदु तिवारी नहीं लौटे

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आठवें की कागजी कार्रवाई पूरी नहीं थी और प्रधानमंत्री जा रहे हैं। अधिकारी क्यों नहीं रुके। ऐसा तो हो नहीं सकता कि रिहा नौसैनिकों के साथ अधिकारियों का आना जरूरी था। अगर कागजी कार्रवाई बाकी रह गई है तो फिर किसी अधिकारी को जाना है।  कागजी कार्रवाई क्या होनी है यह भी पता नहीं है और प्रधानमंत्री को क्यों जाना पड़ रहा है या वे स्वेच्छा से जा रहे हैं – यह सब खबर क्यों नहीं है? यह सवाल इसलिए भी है कि विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा है कि सरकार आठवें नौसैनिक की वापसी के लिए कतर सरकार के साथ मिलकर काम करेगी। ऐसे में मुझे लगता है कि रोके जाने का कारण भी बताया जाना चाहिये। यह निजी कारण नहीं हो सकता है। वापस नहीं आने का स्पष्ट कारण और वापस आने में लग सकने वाला समय जरूर बताया जाना चाहिये और सरकार ने नहीं बताया है तो यह लिखा जाना चाहिये था कि नहीं बताया गया। पर पूछा तो जाता। हालांकि सबसे महत्वपूर्ण है प्रधानमंत्री का जाना।

तमिलनाडु के राज्यपाल की भूमिका

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आज एक और खबर महत्वपूर्ण है जो सभी अखबारों में नहीं है और सरकार की प्रशंसा वाली खबर को ही लीड बनाने की मजबूरी नहीं होती तो अपनी तरह की पहली खबर है और दक्षिण भारत की है तथा प्रधानमंत्री ने हाल में आरोप लगाया था कि कांग्रेस देश को बांटने का काम कर रही है। ऐसे में दक्षिण भारत के एक राज्य में भाजपा सरकार के प्रतिनिधि ने कुछ नया और अलग किया है तो वह सामान्य खबर से ज्यादा महत्वपूर्ण है। चेन्नई से भाषा की एक खबर के अनुसार, तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने सोमवार को विधानसभा में अपने पारंपरिक अभिभाषण को पूरा पढ़ने से इनकार कर दिया और इसमें ‘गुमराह करने वाले तथ्य’ होने का दावा किया। सदन में राष्ट्रगान बजाये जाने के मुद्दे को लेकर द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) सरकार की आलोचना भी की। उनकी कुछ टिप्पणियों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया। यह राज्यपाल तथा राज्य सरकार के बीच तकरार का एक और उदाहरण है।

पटना में जन्मे 72 साल के रवीन्द्र नारायण रवि रिटायर आईपीएस हैं और 2014 से 2021 तक इसाक मुइवा के नेतृत्व वाले नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-आईएम) के साथ भारत सरकार के वार्ताकार के रूप में काम कर चुके हैं। 20 जुलाई 2019 को उन्हें नागालैंड का राज्यपाल बनाया गया था। सितंबर 2021 से वे तमिलनाडु के राज्यपाल है। सरकार के काम काज में हस्तक्षेप के लिए विश्लेषकों ने उनकी आलोचना की है। नगालैंड में भी ऐसा ही था और तमिलनाडु में तैनाती तरक्की है।

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