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प्रधानमंत्री के चुनावी भाषण को अखबारों ने ‘लोकतंत्र की हत्या’ से ज्यादा महत्व दिया

झारखंड सरकार के फ्लोर टेस्ट जीतने की खबर अकेले द हिन्दू में लीड है

संजय कुमार सिंह

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में चुनावी भाषण दिया। आज के अखबारों में दिख रहा है कि उसे सिर-माथे लिया गया है। इसमें मुख्य न्यायाधीश ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में लोकतंत्र की हत्या पर नाराजगी जताई और कहा, लोकतंत्र की हत्या नहीं होने देंगे, उसे भी कम महत्व मिला है। झारखंड में लोकतंत्र की हत्या का प्रयास विफल रहा। फ्लोर टेस्ट में हेमंत सोरेन के उत्तराधिकारी पास हो गये और सरकार बनी रही, यह तो मामूली खबर है। आइये देखें प्रधानमंत्री ने 90 मिनट से ज्यादा के अपने भाषण में क्या कहा। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि 17वीं लोकसभा में उनका अंतिम भाषण कहा जा सकता है। चंडीगढ़ मेयर चुनाव का मामला और भी शर्मनाक है और वह व्यवस्था है जो देश में भाजपा राज में चल रही है और डबल इंजन की कोशिश में समर्थन पा रही है।

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महत्वपूर्ण यह है कि पांच साल के अपने दो कार्यकाल खत्म करने के बाद वे अपनी सरकार के काम और उपलब्धियां नहीं गिना रहे हैं, बल्कि बता रहे हैं कि इस बार उनकी सीटें और बढ़ जायेंगी। इसमें ईवीएम पर चर्चा करना या उससे संबंधित मामलों पर राय रखना भी उनके लिए जरूरी नहीं है। अखबारों के लिए पेटीएम का घोटाला भी खबर नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि नोटबंदी के समय से सीधे प्रधानमंत्री के नियंत्रण में काम करते दिखते रिजर्व बैंक ने पेटीएम के खिलाफ आदेश दिया है जिससे शेयर बाजार में निवेशकों के 20,500 करोड़ रुपये डूब चुके हैं। पेटीएम से प्रधानमंत्री के संबंध जगजाहिर हैं और कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कल उनके मालिक से साथ प्रधानमंत्री की कई तस्वीरें सार्वजनिक कर सवाले पूछे जो पहले पन्ने पर नहीं है। पेटीएम का मामला लगातार अनुपालन नहीं करने का है और किसी बड़ी हस्ती के समर्थन के बिना कोई भी ऐसा कर ही नहीं सकता है।

मामला इतना गंभीर है कि आज अमर उजाला के लीड का शीर्षक, “लूटा है तो लौटाना ही होगा” पढ़कर मुझे लगा कि यह पेटीएम के मामले में ही हो सकता है। बाद में पता चला यह भी प्रधानमंत्री के भाषण का अंश है और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब है। अदाणी की लूट पर तो बात हो नहीं सकती है। इसलिए, अखबार वालों ने कांग्रेस, नेहरू परिवार पर उनके हमले को प्राथमिकता दी है पर न्याय यात्रा की खबर नहीं छापी है। न्याय यात्रा झारखंड में है जहां कल फ्लोर टेस्ट था। आप जानते हैं कि यात्रा का नारा है, “न्याय का हक मिलने तक”। पार्टी का दावा है कि ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ देश के लोगों को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय दिलाने की दिशा में हमारा मजबूत कदम है।” आप इसे प्रयास ही कहिये और सरकारी पैसे के विज्ञापनों से दावा करने या घोषणाओं को बाद में जुमला कह देने के मुकाबले ठोस प्रयास और श्रम तो है ही।

अखबारों के लिए यह पहले पन्ने की खबर नहीं है (बाकी मैं नहीं देखता) यह बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात यह है कि 10 साल कुर्सी पर रहने के बाद अपने काम गिनाने की बजाय प्रधानमंत्री ने संसद में कहा (किसी चुनावी भाषण में नहीं) चुनावी साल था, जनता को कुछ संदेश देते …. पर इसमें भी फेल हो गये। अमर उजाला ने इसे कांग्रेस पर वार : स्लग से लीड के साथ प्रकाशित किया है और बताया है (कि उन्होंने कहा है) आज विपक्ष की जो हालत है, उसकी दोषी कांग्रेस है। उसने विपक्ष के होनहार लोगों को उभरने नहीं दिया। कई सासंद हैं, कहीं उनकी छवि उभर न जाये इसलिए उनको भी मौका नहीं दे रहे। भाजपा में नरेन्द्र मोदी का विकल्प नहीं है जिस उम्र में दूसरे लोग मार्ग दर्शक मंडल में चले गये उस उम्र में खुद तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं और उसी आलोचना कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री बनना चाहते जो झूठ बोले बगैर, जुमलों के बिना कब का बन चुका होता।

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कांग्रेस की दुकान और प्रधानमंत्री की चिन्ता

इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, कांग्रेस विपक्ष के रूप में नाकाम रही। दूसरों को भी बनने नहीं दिया। एक ही प्रोडक्ट बार-बार लांच करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान (में) ताला लगने की नौबत आ गई। कांग्रेस की सीटें 2014 में कम होने के बाद 2019 में बढ़ी है, कांग्रेस अब पहले के मुकाबले बेहतर स्थिति में है और भारत जोड़ो यात्रा के बाद अब न्याया यात्रा चल रही है। नया अध्यक्ष चुना है। राहुल गांधी अलग काम कर रहे हैं फिर भी दुकान में ताला लगने की नौबत है तो मोदी जी परेशान क्यों हैं। लग जाएगी और वे कांग्रेस मुक्त भारत का अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। चंडीगढ़ में जो करना पड़ा उसकी नौबत नहीं आयेगी। पर यह बात उन्हें समझ में नहीं आती होगी या वे राजनीति कर रहे हैं पर अखबार वालों को क्यों नहीं समझ में आती है मैं नहीं जानता।

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इंडियन एक्सप्रेस का उपशीर्षक है, देश का मूड जान सकता हूं, एनडीए को 400 से ज्यादा सीटें आयेंगी, भाजपा को 370। मुझे लगता है कि इस तरह के अनुमान का मतलब तभी तक है जब आप पहली बार लगा रहे हैं या पहले कभी गलत नहीं हुए हैं। जब पेशेवर गच्चा खा जा रहे हैं (भले ईवीएम के कारण) तो प्रधानमंत्री के ऐसा कहने का कोई आधार भी हो तो अखबारों में प्रचारित करने का कारण नहीं है। फिर भी आज कई अखबारों में उनकी यह भविष्यवाणी लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने भाजपा के लिए चुनाव का लक्ष्य 370 रखा, एनडीए के 400 से ज्यादा। प्रधानमंत्री के इस आकलन का आधार जो भी हो, पिछली बार से ज्यादा है जबकि पिछली बार पुलवामा हो गया था और प्रधानमंत्री ने इस आधार पर पहली बार के वोटर से वोट मांगा था। इस बार भी ऐसी कोई योजना हो तो सीटें भले आ जायें पर वह गलत होगा।

पेटीएम का मामला ऐसे गायब है जैसे कुछ हुआ ही नहीं

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टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में का शीर्षक लगभग एक है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने चंडीगढ़ में लोकतंत्र की हत्या की खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड के बराबर में छापा है। पेटीएम की खबर सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम में है।  टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में का शीर्षक लगभग एक है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने चंडीगढ़ में लोकतंत्र की हत्या की खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड के बराबर में छापा है। पेटीएम की खबर सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम में है। इस मामले में रिजर्व बैंक का ताजा आदेश कहता है कि 11 मार्च 2022 की प्रेस विज्ञप्ति के जरिये कहा गया था …. अब पाया गया है कि …. इसलिये आदेश दिया जाता है। इसमें दोनों तारीखें गौर कीजिये, लगभग दो साल का अंतराल है। जब पता था कि गड़बड़ी हो रही है या प्रतिबंध की जरूरत है, आदेश दे दिया गया तो दो साल इंतजार किसलिये किये गया और किया तब जाता जब आदेश का पालन हो रहा होता। बैंक ने खुद ही लिखा है कि पालन नहीं हो रहा था। पूरे मामले में दो साल ज्यादा नहीं है? मुद्दा पेटीएम की मनमानी है और सवाल यह है कि उसे ऐसा करने क्यों दिया गया? रिजर्व बैंक की मजबूरी तो समझ में आती है मीडिया के लिए यह खबर क्यों नहीं है?     

चंडीगढ़ : 36 में आठ वोट अवैध हो जाना

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चंडीगढ़ का मामला यह है कि कुल 36 वोट थे।  इनमें से आठ अवैध घोषित कर दिये गये और बाकी बचे वोट में 16 भाजपा को 12 इंडिया गठबंधन को मिले। नवभारत टाइम्स ने लिखा था कि 2022 से सबक नहीं लिया। हार का कारण बने अवैध वोट के खतरे को इंडिया गठबंधन ने आत्मविश्वास में नजरंदाज कर दिया। शायद इसी वजह से एक बार कांग्रेस और आप का गठजोड़ चंडीगढ़ नगर निगम की कुर्सी पर काबिज होने से चूक गया। पिछले साल जनवरी में 29 वोट पड़े थे, इनमें से बीजेपी के अनूप गुप्ता ने आम आदमी पार्टी के जसबीर सिंह लाडी को केवल एक वोट से हराकर मेयर का चुनाव जीता था। गुप्ता को 15, जबकि सिंह को 14 वोट मिले थे। तब कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने मतदान में भाग नहीं लिया था।

कुल मिलाकर, अखबार यह कहता लग रहा है कि वोट अवैध कर दिया जाना गलत था। कोर्ट में पहले भी सुनवाई नहीं हुई थी इसलिए इस बार पार्टी (या उम्मीदवारों) को ही सतर्क रहना था। इसके तहत क्या करना था या किया जा सकता है मुझे नहीं मालूम लेकिन एक वोट में बेईमानी और फिर आठ वोट से वही बेईमानी निश्चित रूप से शर्मनाक है। 29 में एक और 36 में आठ वोट (वो भी पार्षदों, विधायकों और सांसदों के) को अवैध घोषित किया जाना सामान्य नहीं है। पिछली बार कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई तो इस बार भी नहीं होती यह भी सामान्य नहीं है और ऐसे में मुख्यन्यायाधीश की नाराजगी खबर नहीं है तो आप समझ सकते हैं कि मीडिया किस हद तक इस सरकार के समर्थन में अंधा हुआ जा रहा है। यह खबर भी नहीं है। पुराना संदर्भ तो भूल ही जाइये और भी प्रधानमंत्री का दावा लीड बन सकता है और बन गया।

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बीते हुए दिनों की अखबारी समीक्षाएँ पढ़ने के लिए इसे क्लिक करें–https://www.bhadas4media.com/tag/aaj-ka-akhbar-by-sanjay-kumar-singh/

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