दीपांकर-
प्रजातंत्र अख़बार सुबह-सुबह क्रांति की मशाल लेकर दौड़ा था, लेकिन शाम होते होते जब मशाल का तेल खत्म हुआ तो उसने मशाल में ही मूत्र विसर्जन कर दिया.
सुबह प्रजातंत्र अख़बार ने देश के लिए हेलीकॉप्टर दुर्घटना में शहीद होने वाले जनरल विपिन रावत की शादी की फोटो छापकर लिखा था कि माफ कीजिएगा… हम कैटरीना की शादी की फोटो नहीं छाप रहे.
जाहिर है जब पूरा देश जनरल विपिन रावत के असमय निधन से भारी दुखी है ऐसे में उनकी शहादत के अवसर पर उनकी शादी की फ़ोटो छापना और उसमें जबरदस्ती कैटरीना की शादी का एंगल घुसेड़ना बिल्कुल बिना सिर-पैर के जबरदस्ती देशभक्ति का समीकरण बैठाने की कोशिश की लग रही थी.
इसकी कुछ लोगों ने आलोचना भी की और कुछ भक्त जीवों को ये दुख की घड़ी में वॉव मोमेंट सरीखा लगा.
परन्तु बाजार के अपने नियम होते हैं. इसलिए सुबह तेल बेचने वाला शाम तक तारकोल बेचने लगे तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए.
इसी प्रकार सुबह-सुबह प्रजातंत्र अख़बार को बाजार में देशभक्ति बेचनी थी तो प्रजातंत्र ने फर्जी तुकबंदी करके देशभक्ति बेचने की कोशिश की.
शाम तक मार्केट में कैटरीना-विकी चल रहा था तो प्रजातंत्र अख़बार का डिजिटल प्लेटफार्म कैटरीना के हनीमून पैकेज की डिटेल छापने लगा.
सोचिए सुबह जिस अख़बार को कैटरीना की शादी की फोटो भी नहीं छापनी थी वो शाम तक कैटरीना की शादी का हनीमून पैकेज गा रहा था.
मतलब जैसा हो मौसम वैसी ही गाएंगे सरगम.
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हरिओम गर्ग- देश में पत्रकारिता और पत्रकार आज भी जिंदा हैं।इंदौर शहर के 8 पृष्ठ के छोटे से समाचार पत्र “प्रजातंत्र” ने जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत के विवाह और निमंत्रण पत्र की फुल साइज फोटो आज इस शीर्षक के साथ छापी… “माफ कीजिएगा… हम कटरीना की शादी का फोटो नहीं छाप रहे हैं, क्योंकि आज उस ग्लैमर से ज्यादा जरूरी है यह पवित्र स्मरण।“ इस समाचार पत्र के स्वामी व संपादक को सादर नमन।
अणुशक्ति सिंह- आप देशभक्ति बेच रहे हैं। हाँ, केवल टीआरपी बेच रहे हैं अगर आप कोई भी एक्सक्लूसिव तस्वीर या कोई भी ख़बर जनरल रावत के नाम पर यह कहकर दिखा रहे हैं कि “देखो जी रावत साब को या सैनिकों को हमने यूँ याद किया, हम फ़िज़ूल की ख़बरें नहीं करते।”
आप बाज़ार के सबसे निर्लज्ज लोग हैं। आपकी इकलौती इच्छा टीआरपी है और आप नाम इसे देशभक्ति या संवेदना का लाख दें, है यह घोर बाज़ारवाद निर्लज्जता ही। आपकी मंशा आख़िरशः इस एक्सक्लूसिव तस्वीर के ज़रिए बाज़ार पर अधिकार करने की है। आप संवेदना का सरे आम मज़ाक़ बना रहे हैं।
आप से लाख बेहतर हैं वे जो रैट रेस में हैं और फ़ना हुए सैनिकों की ख़बर के हर हिस्से पर नज़र रखे हुए हैं। कम से कम वे ढोंग नहीं करते हैं।
मुआफ़ कीजिएगा, महा-अक्लमंद लोग आपको देशभक्त मान लेंगे। हमने देखा है आपकी आँखों के काँइयेपन को। यहाँ महा-अक्लमंद को व्यंजना में पढ़ा जाए।
(लगातार कुछ ख़बरिया वेबसाइट और अख़बार के हास्यास्पद सर्कस को देशभक्ति के नाम पर देखने के बाद की प्रतिक्रिया)
(होता है शब ओ रोज़ तमाशा मेरे आगे)