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सुख-दुख

प्राण साहब कॉमिक्स के हर पेज का बेसिक स्केच खुद ही बनाते थे

लगभग दो साल पुरानी बात है. मुझे प्राण साहब का प्रज्ञा चैनल के लिए एक इंटरव्यू करना था। मैं पी.आर. में शुरू से ही कमजोर रहा हूँ, मुझे याद है तब हमारी तेजतर्रार और प्रतिभावान एंकर/प्रोड्यूसर Vidhu Seth ने उनसे मेरा अपॉइंटमेंट फिक्स कराया था।  हमारा क्रू उनके घर पर गया था। उन्हें पहली बार सामने देखकर मैं अभिभूत था… उन कुछ पलों में शायद मैंने अपने बचपन को फिर से जी लिया था… वो हम जैसे करोड़ों युवाओं का बचपन ही तो थे…..दीदी को पिंकी ज्यादा पसंद थी मुझे बिल्लू… चाचा चौधरी दोनों को ही पसंद थे… और वो एड तो लाजवाब लगता था “पापा पढ़ते डायमंड कॉमिक्स, मम्मी पढ़ती डायमंड कॉमिक्स….” .

<p>लगभग दो साल पुरानी बात है. मुझे प्राण साहब का प्रज्ञा चैनल के लिए एक इंटरव्यू करना था। मैं पी.आर. में शुरू से ही कमजोर रहा हूँ, मुझे याद है तब हमारी तेजतर्रार और प्रतिभावान एंकर/प्रोड्यूसर Vidhu Seth ने उनसे मेरा अपॉइंटमेंट फिक्स कराया था।  हमारा क्रू उनके घर पर गया था। उन्हें पहली बार सामने देखकर मैं अभिभूत था... उन कुछ पलों में शायद मैंने अपने बचपन को फिर से जी लिया था... वो हम जैसे करोड़ों युवाओं का बचपन ही तो थे.....दीदी को पिंकी ज्यादा पसंद थी मुझे बिल्लू... चाचा चौधरी दोनों को ही पसंद थे... और वो एड तो लाजवाब लगता था "पापा पढ़ते डायमंड कॉमिक्स, मम्मी पढ़ती डायमंड कॉमिक्स...." .</p>

लगभग दो साल पुरानी बात है. मुझे प्राण साहब का प्रज्ञा चैनल के लिए एक इंटरव्यू करना था। मैं पी.आर. में शुरू से ही कमजोर रहा हूँ, मुझे याद है तब हमारी तेजतर्रार और प्रतिभावान एंकर/प्रोड्यूसर Vidhu Seth ने उनसे मेरा अपॉइंटमेंट फिक्स कराया था।  हमारा क्रू उनके घर पर गया था। उन्हें पहली बार सामने देखकर मैं अभिभूत था… उन कुछ पलों में शायद मैंने अपने बचपन को फिर से जी लिया था… वो हम जैसे करोड़ों युवाओं का बचपन ही तो थे…..दीदी को पिंकी ज्यादा पसंद थी मुझे बिल्लू… चाचा चौधरी दोनों को ही पसंद थे… और वो एड तो लाजवाब लगता था “पापा पढ़ते डायमंड कॉमिक्स, मम्मी पढ़ती डायमंड कॉमिक्स….” .

तब उनके घर रेनोवेशन का काम चल रहा था , घर की सबसे ऊपर की मंजिल पर एक कमरे में उन्होंने अपनी ये जादुई दुनिया बना रखी थी। सारा सामान अस्त-व्यस्त होने के कारण कैमरामैन late Surat Singh Negi ji को फ्रेम बनाने में दिक्कत हो रही थी तो प्राण साहब खुद सहायक की तरह फ्रेम सेट करने में उनकी मदद करने लगे।  मैंने इंटरव्यू शुरू किया… उनके करियर की शुरआत से लेकर तब तक की यात्रा पर उन्होंने बेबाकी से बात की. उन्होंने गर्व से कहा था “मैंने आज कल के कार्टून सीरियल्स की तरह कभी बच्चों को गलत बात नहीं सिखाई.” मुझे ये जान कर हैरानी हुई की वो तब भी कॉमिक्स के हर पेज का बेसिक स्केच खुद ही बनाते थे… गज़ब की ऊर्जा थी उनमे…

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इंटरव्यू के अंत में एक तस्वीर भी मैंने उनके साथ खिचाई थी जो चिर आलसी होने के कारण चैनल की लाइब्रेरी से कभी मेरे लैपटॉप में नहीं आ सकी…. ना जाने क्यों आज वो तस्वीर याद आ रही है… आज बिल्लू, पिंकी, चाचा चौधरी , चन्नी चाची याद आ रहें हैं…. आज अपना बचपन याद आ रहा है … कल तक मुझे लगता था की दिल के किसी कोने में अब भी बचपन ज़िंदा है …. लेकिन आज लग रहा है की बचपन के प्राण चले गए हैं…….. मेरे बचपन के प्राण चले गए हैं….. RIP #praan Sahab…

पत्रकार Arvind Sharma के फेसबुक वॉल से.

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