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सुख-दुख

प्रेस क्लब आफ इंडिया के 36 से ज्यादा सदस्यों को कोरोना निगल चुका है!

अमरेन्द्र राय-

कल बहुत समय बाद प्रेस क्लब जाना हुआ। अप्रत्याशित रूप से पुराने मित्र और देश के जाने माने ब्यंगकर आलोक पुराणिक से मुलाकात हुई। चाचा गोपाल पांडे भी हमेशा की तरह मिले। जब भी मिलते हैं बहुत प्रेम और स्नेह से घर परिवार सबका हाल पूछते हैं। जब भी क्लब पहुंचते हैं वीरेंद्र जी, धनकड़ जी और अग्रज शंकर भाई होते ही हैं।

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सबसे अच्छा तो तब लगता है जब शंकर भाई चलने में तकलीफ होने के बावजूद गाड़ी में अपनी कुर्सी रखकर पहुंच जाते हैं। यह खास कुर्सी है जो चलने और बैठने दोनों के ही काम आती है। इस बार देहरादून से आए अमरनाथ जी और लोकसभा टीवी में काम कर चुकीं ममता सिंह से भी आमने सामने मुलाकात हुई। परिचय तो पहले से ही था। बहुत दिनों बाद उर्मिलेश जी से भी मुलाकात हुई। थोड़ी देर ज्ञानेंद्र पांडे भी साथ बैठे।

सबसे ज्यादा कमी अरुण वर्धन की खली। जाते ही मुस्कराते हुए मिलते थे और भोजपुरी में पूछते थे ” का हो का हाल बा।” उन्हीं के साथ यदाकदा शेष नारायण जी भी मिल जाते थे। इन दोनों लोगों को कोरॉना ने हमसे छीन लिया। प्रेस क्लब के 36 से ज्यादा सदस्यों और 300 से ज्यादा पत्रकारों को corona हमसे छीन चुका है। इन सबकी बहुत याद आती है।

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सहारा टीवी में अपने पुराने साथी रह चुके सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव और दैनिक हिंदुस्तान के विद्युत पी मौर्य भी भुलाए नहीं भूलते। इन दोनों को भी corona ने लील लिया। Corona काल में सत्येंद्र ने बहुत अच्छी अच्छी रचनाएं व्हाट्स एप पर भेजकर पढ़वाई। कवि तो बहुत अच्छे थे ही। विद्युत पी मौर्य तो corona काल में मुझसे सिर्फ मिलने घर भी आए थे। न चाय पीते थे न कॉफी। न ही मिठाई खाते थे न कोई दूध उत्पाद। इम्यूनिटी बनाए रखने के लिए ड्राई फ्रूट्स जरूर लेते थे। बहुत ज्यादा हेल्थ कन्सस थे।

मैंने उन्हें सलाह भी दी कि वजन बढ़ता है तो बढ़ने दें लेकिन इस दौरान पौष्टिक चीजें जरूर खाएं। पर होनी को कौन टाल सकता है।

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मित्र दिनेश तिवारी भी बहुत याद आए। हमेशा मिलते थे और बिना साथ बैठे जाने नहीं देते थे। भले रात को कितनी ही देर हो जाए। बहुत ज्ञानी, प्रेमी और खुशमिजाज मित्र थे। उन्हें दिल की बीमारी ले डूबी। इसी corona काल में किसी दूसरी बीमारी से ऊषा श्रीवास्तव भी दोस्तों को अलविदा कह गईं। हम अमर उजाला के कारोबार अखबार में साथ में काम करते थे। चाय की शौकीन थीं और मौसम के मिजाज के अनुसार तरह तरह के कपों में घर बुलाकर चाय पिलाया करती थीं। उनका घर दफ्तर के बिलकुल पास था। जब भी पॉयनियर देखता हूं उनकी याद आती है।

मृत्यु के समय वे हिंदी पॉयनियर की संपादक थीं। उन्हें जब पता चला कि मेरी पुस्तक “गंगा तीरे” आई है तो विशेष रूप से मंगवाकर समीक्षा छापी थी। तुम सभी कल बेइंतहा याद आए मित्र। एक बार फिर विनम्र श्रद्धांजलि।

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प्रेस क्लब की कुछ तस्वीरें-

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