
संजय कुमार–
प्रेस क्लब के सभी साथियों से विनम्र अपील। ख़ासकर उन साथियों के नाम ये अपील है जो प्रेस क्लब में लंबे समय से चल रही व्यवस्था से आहत हैं। मैं आपकी पीड़ा समझ सकता हूं और महसूस भी कर सकता हूं।
प्रेस क्लब से कई सदस्यों की सदस्यता रद्द किए जाने के फैसले को सही नहीं ठहरा सकता। किसी पत्रकार को उसके हक से महरूम नहीं किया जाना चाहिए। हां, अगर कोई ऐसी परिस्थिति पैदा होती है तो उसे सही रास्ते में लाने और क्लब के नियमों का पालन कराने के और भी कई और रास्ते हो सकते हैं।
प्रेस क्लब के सदस्यों की गाढ़ी कमाई को केस मुकदमों में खर्च नहीं किया जाना चाहिए। इससे बेहतर होगा कि प्रेस क्लब युवा पत्रकारों और यहां के कामगारों के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया कराएं। लोकतंत्र, संविधान और धर्मनिरपेक्षता को जिंदा रखने के लिए सतत काम करे। साथ ही पत्रकारों और पत्रकारिता की आजादी को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करे। पत्रकारों पर हो रहे हमलों का जमकर प्रतिरोध करे।
मैं ये भी नहीं कहता है कि वर्तमान कमेटी इन सबमें नाकाम रही है। लेकिन कई बार समय परिवर्तन की मांग करता है ताकि एक नई दृष्टि, एक नई सोच भी सामने आ सके। और अंत में, अगर कोई पैनल मजबूत है, उसके लोग दबंग हैं तो क्या उनके खिलाफ चुनाव लड़ना गुनाह है। कहीं से तो शुरूआत करनी पड़ेगी ना!
वैसे मैंने पहले जो कहा-लिखा उन बातों को दोहराना नहीं चाहता। और आनेवाल पैनल से ये उम्मीद रखूंगा कि वो जिन सदस्यों की सदस्यता रद्द की गई है उनपर खुले दिल से पुनर्विचार करे।
जीनव छोटा है और उसमें इतनी कटुता भरी होगी तो ब्लैक लेवल भी नहीं चढ़ेगा। उम्मीद है साथी हमारी इन बातों के मर्म को समझेंगे।
फिलहाल हबीब जालिब साहब का ये शेर हम सबके काम आ सकता है और दिल को सुकून पहुंचा सकता है-
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था..
-संजय कुमार
पूर्व कार्यकारी निर्माता
राज्यसभा टीवी