बीस लाख ईवीएम गायब होने को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका का जवाब चुनाव आयोग अभी तक दाखिल नहीं कर पाया है. इस लोकसभा चुनावों में ईवीएम में पड़े वोटों और गिनती के समय उसमें से निकले वोटों की संख्या में अंतर का अभी तक आयोग संतोषजनक व विश्वसनीय जवाब नहीं दे सका है. ढहती हुई विश्वसनीयता के बीच चुनाव आयोग को एक और झटका लगा है. रिटायर्ड और वरिष्ठ नौकरशाहों ने 2019 के लोकसभा चुनाव की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठा दिए हैं. उनका आरोप है कि 2019 का लोकसभा चुनाव पिछले 30 साल में हुए चुनावों में सबसे कम निष्पक्ष रहा है.
चुनाव आयोग को 64 पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों ने चिट्ठी लिख कर कहा है कि इस चुनाव में यह धारणा बनी है कि जिन संवैधानिक संस्थाओं पर निष्पक्ष चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी थी, उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दरकिनार करने का काम किया है. अतीत में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता, उनकी नीयत और योग्यता पर अपवाद स्वरूप ही सवाल खड़े किए गए. लेकिन मौजूदा चुनाव आयोग के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती है. पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों के अनुसार स्थिति की गंभीरता केवल इस तथ्य से समझी जा सकती है कि 2019 के चुनाव के दौरान आयोग की भूमिका पर पुराने चुनाव आयुक्तों ने भी दबी ज़ुबान में सवाल खड़े किए हैं.
चिट्ठी लिखने वालों में कई मुख्य सचिव, केंद्र सरकार में सचिव, अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव और राजदूत रह चुके हैं. इस चिट्ठी का 83 अन्य पूर्व नौकरशाहों, सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और सिविल सोसाइटी के प्रबुद्ध लोगों, प्रोफेसरों ने समर्थन किया है. बारह पृष्ठ की इस चिट्ठी में सिलसिलेवार तरीके से घटनाओं का वर्णन किया गया है और गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं. इस चिट्ठी के पैरा चार में साफ़ तौर पर कहा गया है कि आयोग, चुनाव की तारीख़ के एलान के साथ ही एक राजनीतिक दल विशेष के पक्ष में खड़ा हुआ दिखाई पड़ा.
इस चिट्ठी में चुनाव आयोग ने जिस दिन चुनाव का एलान किया, उस पर ही प्रश्न चिह्न लगाया गया है. 2004, 2009 और 2014 लोकसभा चुनावों का हवाला देते हुये पूछा गया है कि 10 मार्च 2019 को चुनाव का एलान क्यों किया गया? उनके मुताबिक़, 2004 में 29 फ़रवरी, 2009 में 1 मार्च, 2014 में 5 मार्च को चुनाव का एलान किया गया. लेकिन 2019 में यह घोषणा 10 मार्च को इसलिए की गई ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़रवरी 8 से मार्च 9 तक कुल 157 सरकारी योजनाओं के उद्घाटन का मौक़ा मिल जाए. ऐसा लग रहा था कि मानो चुनाव आयोग सरकार के अनुरूप चुनाव की तारीख़ों को एडजस्ट कर रहा था. इससे आयोग की तटस्थता पर सवाल खड़ा हो गया.
चिट्ठी में चुनाव आयोग पर पक्षपात का संगीन आरोप लगाया गया है और कहा गया है कि तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में जहां भाजपा कमज़ोर है और उसके जीतने की संभावना भी न के बराबर थी, वहाँ चुनाव एक चरण में कराया गया. लेकिन, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, जैसे राज्यों में जहाँ भाजपा का जनाधार है, वहाँ कई चरणों में चुनाव कराए गए ताकि प्रधानमंत्री को प्रचार के लिए ज़्यादा वक़्त मिल सके. इन राज्यों में भी लगभग उतनी ही सीटों पर चुनाव हो रहे थे जहां एक चरण में चुनाव कराए गए थे.
चिट्ठी में कहा गया है कि चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर कार्रवाई करने पर भी चुनाव आयोग की भूमिका संदिग्ध रही. विशेष तौर पर भाजपा के नेताओं पर आयोग ज़्यादा मेहरबान रहा. उदाहरण के तौर पर अमित शाह का बयान था “ग़ैर क़ानूनी प्रवासियों को बंगाल की खाड़ी में फेंक देना चाहिए.” चिठ्ठी के मुताबिक़ यह भारतीय दंड संहिता और प्रतिनिधित्व क़ानून का सरासर उल्लंघन था. लेकिन जब तक उच्चतम न्यायालय ने खिंचाई नहीं की, तब तक चुनाव आयोग की नींद नहीं टूटी. फिर भी आयोग ने प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष के उल्लंघनों को अनदेखा किया और उन पर कोई कार्रवाई नहीं की.
चिट्ठी में याद दिलाया गया है कि चुनाव आयोग ने बार बार कहा है कि ईवीएम में धांधली नहीं की जा सकती. पर चुनाव के दौरान ऐसी ख़बरें आईं कि दो कंपनियों की बनाई ईवीएम की संख्या और चुनाव आयोग के रिकार्ड में बड़ा अंतर था. मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़, आरटीआई से ऐसी जानकारी मिली कि लगभग 20 लाख ईवीएम इन कंपनियों ने बनाई थीं, लेकिन आयोग के रिकार्ड में वह दर्ज नहीं है. इस मामले में चुनाव आयोग का रवैया समझ के परे था. नियमतः इस बारे में पूरी जानकारी और आँकड़े लोगों के सामने रखे जाने चाहिये थे. चिट्ठी में वीवीपैट के मिलान का भी सवाल खड़ा किया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि आख़िरी चरण के मतदान और मतगणना के बीच ऐसी रिपोर्टें मीडिया में आई थी, जिनमें ईवीएम को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया लेकिन आयोग ने कभी इसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया.
पूर्व नौकरशाहों ने कहा है कि 2019 के जनादेश पर गंभीर सवाल हैं. ऐसा भविष्य में न हो, इसलिए इन तमाम अनियमितताओं के आरोपों पर चुनाव आयोग अपनी तरफ से सार्वजनिक सफ़ाई दे और ऐसे कदम उठाए कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो. यह कदम चुनावी प्रक्रिया में लोगों की आस्था बनाए रखेगा.
इसके पहले अप्रैल की शुरुआत में ही 66 पूर्व नौकरशाहों ने देश में लागू आचार संहिता के पालन के प्रति चुनाव आयोग की भूमिका को कठघरे में खड़ा किया था. देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के साथ ही आचार संहिता के पालन के प्रति चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर पूर्व नौकरशाहों ने गहरी चिंता जताई थी और इस संबंध में उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी भी लिखा था. चुनाव आयोग की शिकायत करते हुए नौकरशाहों ने अपनी चिट्ठी में ‘ऑपरेशन शक्ति’ के दौरान एंटी सैटेलाइट मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन, नरेंद्र मोदी पर बनी बायोपिक फिल्म, वेब सीरीज और बीजेपी के कई नेताओं के आपत्तिजनक भाषणों का जिक्र भी किया था, जिन पर चुनाव आयोग को की गई शिकायत के बावजूद महज दिखावे की ही कार्रवाई हुई. पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखने से पहले चुनाव आयोग को भी पत्र लिखकर आचार संहिता के उल्लंघन को रोकने की अपील की थी.
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.