कनुप्रिया-
राहुल गाँधी को दुनिया में कहीं बोलने की ज़रूरत ही नहीं कि भारत मे लोकतंत्र को ख़तरा है. इन्होंने ख़ुद ही दुनिया को दिखा दिया कि भारत में असहमति के प्रति कितनी सहिष्णुता रह गई है.
असली गुनाहगारों अडानी, चौकसे, नीरव मोदी को तो कुछ नही हुआ, मगर मोदी का विरोध करने और उस से सवाल पूछने भर से यदि किसी राष्ट्रीय नेता को संसद से निष्कासित किया जा सकता है तो लोकतंत्र किस तरह के खम्बों पर टिका हुआ है.
गोदी मीडिया कुछ भी कहता रहे, दुनिया समझ चुकी है अमृतकाल की हक़ीक़त. डंके बज रहे हैं.

शीतल पी सिंह-
अब तेरी हिम्मत के चर्चे, ग़ैर की महफ़िल में हैं… सारे ज़माने को ख़बर है। डंका दुनिया में बज तो रहा है लेकिन वैसा नहीं जैसा क्रोनी कैपिटल के ज़रिए देसी दिमाग़ों में मीडिया/सोशल मीडिया ने भरा है बल्कि वैसा जैसे राहुल ने देस विदेश में कहा…ज़रा नज़र तो फेरिये।