राहुल की पीसी : भक्त मान लिए गए एक पत्रकार की शिकायत और उसे सलाह!

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संजय कुमार सिंह-

राहुल गांधी ने जिसे खींच दिया, उसकी भड़ास…

अगर सवाल लेना ही नहीं है तो प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का दिखावा क्यों करना Rahul Gandhi जी। अगर कोई पत्रकार आपकी सहूलियत के हिसाब से सवाल न पूछे तो वह बीजेपी का आदमी? दिक्कत पत्रकार में नहीं है, गांधी परिवार की खुद को संविधान से ऊपर रखने वाली सामंती सोच में है।

सलाह

अगर आप मुफ्त में गलत समझ लिये गए तो कुछ ज्ञान की बात नोट कर लीजिये … वैसे, मुझे प्रेस कांफ्रेंस बहुत अच्छी लगी और मैं समझता हूं कि राहुल गांधी अपनी काबिलियत दिखाने के लिए प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और आप नहीं जाने के लिए या जाकर भी सवाल नहीं पूछने के लिए स्वतंत्र हैं। वैसे, आपकी अंतिम लाइन एकदम पार्टी की लाइन के अनुसार है। मुझे पता है तो राहुल गांधी ने भांप ही लिया होगा। पर वह मुद्दा नहीं है। औरों की जानकारी के लिए बता दूं।

राहुल गांधी ने सामंती सोच या उसका ख्याल रखने के लिए कानून बनाने वाले अध्यादेश को फाड़ दिया था। इनदिनों उसकी पर्याप्त चर्चा है और उसपर सवाल पहले पूछा जा चुका था। 

अगर आपको वाकई अपने सवाल का जवाब चाहिए तो क्या यह नहीं जानते कि मोदी कोई जाति नहीं है। हो भी तो दूसरे लोग भी मोदी लिखते रहे हैं। उन्होंने तीन लोगों के नाम लिए थे तीनों को कोई शिकायत नहीं थी या वे अदालत में नहीं गए। जो चौथा व्यक्ति गया उसके बारे में और इस पूरे मामले में कांग्रेस की ओर से काफी कुछ कहा जा चुका है। कई वीडियो हैं। आपकी बीट है तो देखना चाहिए। संक्षेप में बता भी दूं – रुसी मोदी और पीलू मोदी – दोनों भाई थे, पीलू सांसद भी रहे, पारसी थे। मोदी नगर वाले मोदी ओबीसी हों भी तो क्रीमी लेयर में नहीं आयेंगे? दिल्ली का मोदी मिल अरबों की जमीन में बना हुआ है। 

वैसे भी, जो फैसला है वह अंतिम नहीं है और उसे चुनौती दी जा सकती है। इसलिए अभी वह मुद्दा नहीं है। आप इस मामले में इतने अधीर क्यों हैं? वैसे भी, इसका जवाब यह तो होना नहीं है, “हां, मैं यही करना चाह रहा था।“ अगर वो ये कहते कि नहीं मैं नहीं चाहता था तो उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि सजा हो चुकी है और वो पहले कह चुके थे कि लीगल मामले में लीगल टीम से संपर्क कीजिए। अगर आप मामला जानते हैं तो तथ्य यह भी है कि उन्होंने कहा नहीं है, पूछा है आदि आदि। इसके अलावा आप क्या उम्मीद कर रहे थे कि वो डिफेंसिव हो जाएंगे और आप वहीं कह सकेंगे कि देखो राहुल गांधी ने माफी मांग ली। वाकई आपका सवाल और आपकी सोच पार्टी लाइन के अनुसार है। 

80-90 के दशक में पत्रकारिता में आए मेरे जैसे कई लोग मानते हैं कि जनता पार्टी के प्रयोग और जयप्रकाश आंदोलन में नाकाम और बेकार रह गए बहुत सारे लोगों को पत्रकारिता (खासकर हिन्दी की) में खपा दिया गया और वही अब संपादकी कर रहे हैं और मीडिया हैंडल कर रहे हैं जो सीधे जाकर गोद में बैठ गया है। मेरे जैसे लोगों ने या मैंने बीच में ही छोड़ दिया। पर वह अलग मुद्दा है। पर तथ्य यह है कि अभी दूसरी पीढ़ी के भाजपा समर्थक पत्रकारिता कर रहे हैं। उनका कांग्रेस विरोध और भाजपा समर्थन उन्हें निष्पक्ष रहने नहीं देता है। वरना बेटे की शादी में प्रधानमंत्री का आना उपलब्धि नहीं है और यह सर्वविदित है कि रामनाथ गोयनका से कोई मुख्यमंत्री कह देता कि आपका रिपोर्टर अच्छा काम कर रहा है तो उसका क्या मतलब लगाया जाता था। 

और अंत में बीजेपी जो कह रही है उसे कहने दीजिए या पूछने दीजिए। बीजेपी इतनी कमजोर तो नहीं है कि उसे आपकी या मेरी सेवा की जरूरत पड़े। आपको लग रहा है कि मैं कांग्रेस की कर रहा हूं तो मान लीजिए कि वह विपक्ष में है इसलिए मुझे ऐसा करने की जरूरत लगती है। बीजेपी को जरूरत हुई तो एनडीटीवी की तरह कुछ भी खरीदवा लेगी। दो चार रिपोर्टर लगा देना कौन सा बड़ा काम है। आप उनमें नहीं हैं तो मेरी बातें गांठ बांध ललीजिए नहीं तो किसी को भी शक होगा। बाकी आपकी मर्जी। 

राहुल गांधी का कांफिडेंस तो ललचा गया

शेल कंपनियों के जरिए अदानी के पास आए 20,000 करोड़ रुपये किसके हैं – राहुल गांधी। जब सरकार हजारों शेल कंपनियां बंद कराने का दावा कर रही है तो अदानी की शेल कंपनियों का सक्रिय रहना और उनके जरिए इतना बड़ा निवेश आना निश्चत रूप से सरकार के काम-काज पर बड़ा सवाल है। अगर ये कंपनियां रक्षा मंत्रालय के लिए काम कर रही हैं तो निश्चित रूप से रक्षामंत्रालय को पता होने चाहिए कि कौन से लोगों की कंपनियां रक्षा मंत्रालय के लिए काम कर रही हैं।

सरकार को जवाब नहीं देने का कोई विशेषाधिकार नहीं है। लोग नहीं पूछते हैं, मीडिया जेब में है इसीलिए राहुल गांधी की सदस्यता खत्म करनी पड़ी – इसे भी वे सरकार द्वारा दिया जा सकने वाला सबसे अच्छा उपहार कह रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने विपक्ष को हथियार दे दिया है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने प्रश्न करने वाले से ही पूछा, क्या मैं आपको चिन्तित –परेशान लग रहा हूं। किसी से ये भी कहा कि मुझे जवाब दे लेने दीजिए बशर्ते कि आप मेरी ओर से न दे रहे हों और यह भी कि जो आप करते रहते हैं। 

राहुल गांधी ने कहा कि अदानी पर मैं यह सवाल पूछता रहूंगा। प्रेस कांफ्रेंस में तीसरी बार पूछा गया कि भाजपा आपके बयान को (सजा वाले) ओबीसी पर हमला बता रही है तो राहुल गांधी भड़क गए। हालांकि संयत तौर पर ही संवाददाता से पूछा कि आपको कहा गया है? इतना सीधे काम क्यों करते हो, घुमा कर पूछो आदि। अगर करना ही है तो भाजपा का बिल्ला लगा लो, मैं वैसे ही जवाब दूंगा। प्रेस के रूप में मत आया करो। इसके बाद यह भी कहा कि देखिए, सवाल पूछने वाला कैसे हंस रहा है। 

मैंने आज पहली बार राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस का वीडियो देखा। इससे पहले वही देखता रहा हूं जो हिस्सा मुझे कोई किसी खास बात के लिए भेजता रहा है। पता नहीं लोग यह अंश निकाल कर व्हाटसऐप्प पर फैलाएंगे कि नहीं, ट्रोल सेना ट्वीट करेगी कि नहीं – लेकिन एक डरे हुए गिरोही के मुकाबले राहुल गांधी का निडर होना तो दिखता है। और मेरा मानना है कि नरेन्द्र मोदी अपने मित्र को नहीं बचा पाए (उनके हजारों करोड़ लुट गए) तो हमें आपको क्या बचाएंगे।

देश के प्रधानमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस से वंचित, मन की बात को अझेल मानने वाले मेरे अंदर के मरे, डरे, छिपे और शर्म से गड़े पत्रकार को राहुल गांधी का अंदाज पसंद आया। राहुल गांधी को पप्पू और उनकी पार्टी को भ्रष्ट कहना पता नहीं अवमानना है कि नहीं औऱ पार्टी ने या पार्टी के किसी कार्यकर्ता अथवा समर्थक ने इसके खिलाफ मामला दर्ज कराया है कि नहीं और पार्टी भ्रष्ट है कि नहीं मैं नहीं जानता पर राहुल गांधी का कांफिडेंस तो ललचा गया। यह अखिलेश, तेजस्वी से ज्यादा है और शायद वंशवाद का कमाल है। 

ऐसी खबरों का क्या मतलब

राहुल गांधी की मुसीबत और बढ़ेगी, बंगला खाली करना पड़ेगा – ऐसी खबरों का क्या मतलब है। सांसद के रूप में मिला बंगला सांसद नहीं रहने पर चला ही जाएगा, चला ही जाना चाहिए। इसमें खबर क्या है? लेकिन तमाम वरिष्ठ और गरिष्ठ लोग यह खबर दे रहे हैं। वह भी तब जब सदस्यता वाले मामले में ही कई झोल हैं और अदालत ने खुद ही 30 दिन का समय दे रखा है और लक्ष्यद्वीप के एनसीपी सांसद का ऐसा ही मामला पहले से चल रहा है। उसका हवाला दिये बगैर (शायद मालूम ही न हो) सिर्फ अटकल और प्रचार की खबर हो रही है और कोई ये नहीं बता रहा है कि किरण पटेल का भाजपा से क्या संबंध है, तस्वीरें सही हैं या फर्जी विज्ञान भवन के पास के उसके घर का पता सही है या गलत और सही है तो मकान सरकारी है या निजी और निजी है तो कितने का होगा और इतने पैसे वाला वह पहले से है या ठगी से ही कमाया है। उसपर पहले के जो दो मामले हैं उनका क्या हुआ, उनके बावजूद वह प्रधानमंत्री का करीबी कैसे था या नहीं था आदि आदि। यही नहीं, बेटे का संबंध किरण पटेल से होने के कारण गुजरात के मुख्यमंत्री के सलाहकार रहे हितेश पंड्या ने इस्तीफा दे दिया है। यह खबर आज इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर है। हितेश पंड्या नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे तो उनके भी सलाहकार रहे हैं।

जहां तक घर की बात है या बंगला खाली करने पर लुटियन की दिल्ली में रहने का सवाल है – राहुल की मां सोनिया गांधी को भी दिल्ली में बंगला मिला हुआ है। सांसद हैं और दुनिया जानती ही है कि अकेले ही रहती होंगी। ऐसे में अविवाहित राहुल, मां के साथ रह लेंगे, रहते होंगे। इसमें परेशानी क्या है या हो सकती है लेकिन खबर है। राहुल गांधी कई साल से सांसद है, उनपर भ्रष्ट पार्टी के नेता होने का आरोप है और कई प्रधानमंत्रियों के वंशज व उत्तराधिकारी हैं। उनके लिए दिल्ली में एक घर कौन सा मुद्दा है। अगर है तो खबर यह भी हो सकती है कि उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर के लिए आवेदन किया है लेकिन बंगला खाली करना पड़ेगा इसपर अटकल का क्या मतलब है। खबर होती कि यह आदेश है, आदेश फिर भी नहीं है या राहुल गांधी ने कहा है कि बिना आदेश खाली कर देंगे या आदेश होने के बाद भी नहीं खाली करेंगे। ऐसा कुछ नहीं है फिर भी पत्तल भरे पड़े हैं। मैं तो सिर्फ पहला पन्ना देखता हूं अब वह भी देखने लायक नहीं रहा।

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One comment on “राहुल की पीसी : भक्त मान लिए गए एक पत्रकार की शिकायत और उसे सलाह!”

  • Vishnu Rajgadia says:

    अच्छा लिखा आपने संजय जी। राहुल गांधी ने भी गोदी मीडिया को आईना दिखाकर राष्ट्रहित में बड़ा योगदान किया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी विपक्षी के सवाल का जवाब मांगना गलत नहीं। लेकिन पत्रकार को यह आकलन करना जरूरी है कि विपक्षी का सवाल प्रासंगिक है या कुप्रचार। क्या राहुल गांधी ने सारे OBC समुदाय का अपमान किया? यह सवाल पूछने से पहले पत्रकार को खुद समझना चाहिए कि क्या सारे मोदी OBC हैं? अगर हाँ, तो सारे मोदी को OBC आरक्षण का लाभ क्यों नहीं मिलता? सिर्फ इतना दिमाग लगा लिया होता, तो आज एक पत्रकार को सरेआम अपमानित होने की नौबत नहीं आती।

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